पंचायती राज क्या है - पंचायती राज के कार्य, महत्व, स्तर

पंचायती राज क्या है – पंचायती राज के कार्य, महत्व, स्तर

पंचायती राज क्या है, पंचायती राज के कार्य, पंचायती राज का महत्व, पंचायती राज के कितने स्तर है (त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था क्या है), पंचायती राज किस भाग में है, भारत में पंचायती राज की भूमिका आदि प्रश्नों के उत्तर यहाँ दिए गए हैं।

पंचायती राज क्या है

पंचायती राज वह व्यवस्था प्रणाली है जिसके अंतर्गत ग्रामीण स्तर पर अनेकों कार्य किए जाते हैं। जिस प्रकार नगरपालिका द्वारा शहरी क्षेत्रों का स्वशासन होता है उसी प्रकार पंचायती राज संस्था के माध्यम से भी ग्रामीण क्षेत्रों का स्वशासन संभव होता है। पंचायती राज को ग्रामीण स्थानीय सरकार के रूप में भी जाना जाता है। यह भारतीय सरकार की वह शाखा है जिसके अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्र के प्रत्येक गांव अपनी गतिविधि एवं विकास के लिए स्वयं जिम्मेदार होते हैं। यह एक प्रकार का स्थानीय निकाय है जो ग्रामीण क्षेत्रों का कल्याण करने का कार्य करती है।

भारत में सर्वप्रथम 2 अक्टूबर सन 1959 में पंचायती राज व्यवस्था को लागू किया गया था जिसका नेतृत्व भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के द्वारा किया गया था। भारत में पंचायती राज व्यवस्था को 73वें संविधान संशोधन अधिनियम 1992 के तहत लागू किया गया था।

पंचायती राज के कार्य

प्राचीन काल से ही भारत में पंचायती राज का कार्य ग्रामीण क्षेत्रों का आर्थिक रूप से विकास करना होता है। यह सामाजिक न्याय प्रणाली को मजबूती प्रदान करने के साथ-साथ केंद्र एवं राज्य सरकार की सभी लाभकारी योजनाओं को ग्रामीण इलाकों में स्थापित करने का कार्य करता है। पंचायती राज त्रिस्तरीय ढांचे की स्थापना करके एक नवीन ग्राम सभा की भी स्थापना करता है जिसका लाभ ग्रामीण क्षेत्रों के नागरिकों को सीधे तौर पर मिलता है।

पंचायती राज का महत्व

भारत में पंचायती राज की शुरुआत लगभग 25 वर्ष पहले हुई थी जिसे दूसरे शब्दों में स्थानीय स्वशासन के नाम से भी जाना जाता है। पंचायती राज व्यवस्था को एक लोकतांत्रिक व्यवस्था भी कहा जाता है। इसके अंतर्गत आम जनता की सत्ता में भागीदारी को सुनिश्चित किया जाता है जिससे वह अपनी आवश्यकतानुसार शासन संचालन में अपना भरपूर योगदान दे सकें। भारतीय संविधान के 73 वें एवं 74 वें संशोधन में पंचायती राज व्यवस्था के महत्व को स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है। पंचायती राज व्यवस्था को भारतीय संविधान में एक महत्वपूर्ण स्थान इसीलिए दिया गया है ताकि सरकार के द्वारा चलाए जाने वाली सभी योजनाओं को आम जनता तक समय पर पहुंचाया जा सके।

पंचायती राज व्यवस्था या संस्थाएं स्थानीय स्तर पर जनता का प्रतिनिधित्व करने का कार्य करती हैं जिसके द्वारा जनता की सभी समस्याओं को दूर करने का प्रयास किया जा सके। इसके अलावा पंचायती राज सभी विकास कार्यों का बिना किसी रूकावट के निर्वहन भी करती है जिसके द्वारा लोगों का विश्वास सरकार के प्रति सुदृढ़ होता है।

पंचायती राज के कितने स्तर है (त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था क्या है)

पंचायती राज को मुख्यतः तीन स्तर में बांटा गया है जिसे त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था भी कहा जाता है। पंचायती राज का मुख्य कार्य ग्रामीण स्तर पर आर्थिक विकास करना, सामाजिक न्याय प्रणाली को मजबूती प्रदान करना एवं ग्रामीण क्षेत्रों में केंद्र व राज्यों की सभी योजनाओं को समय–समय पर लागू करना होता है। पंचायती राज के स्तर कुछ इस प्रकार हैं:-

  • ग्रामीण स्तर पर ग्राम पंचायत
  • ब्लॉक या तालुका के स्तर पर पंचायत समिति
  • जिला स्तर पर जिला परिषद

ग्रामीण स्तर पर ग्राम पंचायत

ग्राम पंचायत वह संस्था है जिसका गठन ग्राम स्वराज के लिए किया गया है। भारत में ग्राम पंचायत सदियों पुरानी स्वशासन प्रणाली का एक विकसित रूप है जिसे आम भाषा में गांव की सरकार के नाम से भी जाना जाता है। यह मुख्य रूप से ग्रामीण स्तर पर कार्य करती है जिसके कारण इसे ग्राम पंचायत के नाम से भी संबोधित किया जाता है। यह स्थानीय स्वशासन की एक ऐसी संस्था है जो एक कार्यपालिका, न्यायपालिका एवं विधायिका के रूप में भी कार्य कर सकती है।

ब्लॉक या तालुका के स्तर पर पंचायत समिति

पंचायत समिति वह व्यवस्था प्रणाली है जो ग्राम पंचायत एवं जिला परिषद के मध्य एक संबंध को स्थापित करने का कार्य करती है। इसके अलावा पंचायत समिति ग्राम पंचायत द्वारा किए गए विकास कार्यों की निगरानी भी करता है जिससे भ्रष्टाचार का अंत होता है। पंचायत समिति का गठन प्रत्येक 5 वर्ष के बाद पंचायती राज के चुनाव के बाद किया जाता है। इसकी खास बात यह है कि इसमें महिला सदस्यों की अनिवार्यता होती है। यह समिति ब्लॉक (तालुका) से संबंधित कार्यों का निर्वहन कुशलतापूर्वक करती है।

जिला स्तर पर जिला परिषद

पंचायत समिति की तरह ही जिला परिषद का भी एक अपना प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र होता है। इसके अंतर्गत प्रत्येक प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र से जिला परिषद सदस्य के पद पर एक प्रतिनिधि का निर्वाचन किया जाता है। जिला परिषद का चुनाव पंचायत समिति के चुनाव के बाद संपन्न होता है। इसके अंतर्गत महिलाओं एवं अनुसूचित जाति व जनजाति के सदस्यों के लिए कुछ सीटें आरक्षित होती हैं जिसके द्वारा समाज में समानता को स्थापित करने का प्रयास किया जाता है। इसके अलावा जिला परिषद में जिला स्तरीय बैठक को भी आयोजित किया जाता है जिसका एकमात्र उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों का विकास करना होता है।

पंचायती राज किस भाग में है

पंचायती राज व्यवस्था भारतीय संविधान संशोधन अधिनियम में संविधान के भाग-9 में व्यवस्थित किया गया है। इसे 1992 में 73 वें संविधान संशोधन अधिनियम के तहत लागू किया गया है। भारत में पंचायती राज 24 अप्रैल 1993 से प्रभाव में आया था। भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश माना जाता है जिसके कारण देश में मौजूद सभी संस्थाओं की कार्यप्रणाली स्वतंत्र रूप से कार्य करती है। पंचायती राज एक ऐसी व्यवस्था है जो निम्न स्तर पर विकास का कार्य करती है। भारत में पंचायती राज को वर्ष 2004 में अलग मंत्रालय का दर्जा दिया गया था। इसका गठन देश को सशक्त करने एवं महात्मा गांधी के विचारधाराओं का पालन करने हेतु किया गया था। महात्मा गांधी के कथनानुसार एक राज्य गांव के प्रत्येक व्यक्ति के सहयोग से चलता है ना कि केंद्र में बैठकर।

भारत में पंचायती राज की भूमिका

भारत में पंचायती राज की भूमिका बेहद अहम मानी जाती है। यह देश में एक संस्था के रूप में कार्य करती हैं जिसका उद्देश्य विभिन्न राजकीय कार्यक्रमों की योजना बनाना, समन्वय करना एवं केंद्र व राज्य सरकारों के द्वारा लागू किए गए योजनाओं की निगरानी करना होता है। पंचायती राज देश में स्वच्छता, लघु सिंचाई, सार्वजनिक शौचालय, सार्वजनिक सड़कों की सफाई, प्राथमिक स्वास्थ्य की देखभाल, पेयजल आपूर्ति, टीकाकरण, ग्रामीण विद्युतीकरण, सार्वजनिक नलकूप का निर्माण, शिक्षा आदि से संबंधित कार्यों की निगरानी करता है। इसके अलावा पंचायती राज देश के ग्रामीण क्षेत्रों में हुए विकास कार्यों की निगरानी कर समय-समय पर सरकार को सूचना पहुंचाने का कार्य भी करता है।

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