पाठ्यक्रम और पाठ्यचर्या में अंतर

पाठ्यक्रम और पाठ्यचर्या में अंतर

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Table of Contents

पाठ्यक्रम किसे कहते हैं

पाठ्यक्रम (Syllabus) किसी भी विषय की वह संपूर्ण सामग्री होती है जिसके माध्यम से किसी भी क्षेत्र की संपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। पाठ्यक्रम वह साधन है जिसके द्वारा शिक्षा एवं जीवन के लक्ष्यों की प्राप्ति आसानी से की जा सकती है। पाठ्यक्रम शिक्षा पद्धति का एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है जिसके द्वारा शिक्षार्थी के व्यक्तित्व का विकास होता है। केवल इतना ही नहीं एक बेहतर पाठ्यक्रम की सहायता से विद्यार्थियों को जीवन का अनुभव एवं ज्ञान प्राप्त करने के कई अवसर प्राप्त होते हैं। विभिन्न प्रकार के विद्यालयों में पाठ्यक्रम की सहायता से विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान करने का अवसर दिया जाता है जिसे पूर्ण करने हेतु कई प्रकार के नियमों की सहायता ली जाती है। किसी भी क्षेत्र की परीक्षा को उत्तीर्ण करने हेतु शिक्षालय विभिन्न प्रकार की विषय सामग्रियों की सूची तैयार करते हैं जिसके माध्यम से विद्यार्थियों की परीक्षा को आयोजित किया जाता है। इस प्रकार की प्रक्रिया से विद्यार्थियों के जीवन स्तर में सुधार होता है।

पाठ्यक्रम के प्रकार

पाठ्यक्रम के निम्न प्रकार होते हैं जैसे:-

  • विषय केंद्रित पाठ्यक्रम (Subject Centred Curriculum)
  • बाल केंद्रित पाठ्यक्रम (Child Centred Curriculum)
  • अनुभव केंद्रित पाठ्यक्रम (Experience centred curriculum)
  • कार्य अथवा क्रिया केंद्रित पाठ्यक्रम (work/activity centred curriculum)
  • कोर पाठ्यक्रम (core curriculum)
  • शिल्पकला केंद्रित पाठ्यक्रम (Craft Centred curriculum)
  • व्यवसाय केंद्रित पाठ्यक्रम (Business Centred Curriculum)

विषय केंद्रित पाठ्यक्रम (Subject Centred Curriculum)

जो पाठ्यक्रम किसी विषय वस्तु पर आधारित होते हैं उन्हें विषय केंद्रित पाठ्यक्रम के नाम से जाना जाता है। यह मुख्य रूप से विद्यार्थियों को अलग-अलग क्षेत्र एवं विषयों का ज्ञान देने का कार्य करते हैं। विषय केंद्रित पाठ्यक्रम की विशेषता यह है कि इसमें विद्यार्थियों की अपेक्षा विषय को अधिक महत्व दिया जाता है। इस प्रकार के पाठ्यक्रम का निर्माण विद्यार्थियों में रुचि, प्रवृत्ति एवं उनकी क्षमता को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है। इसके अलावा विषय केंद्रित पाठ्यक्रम में केवल विषय को ही आधार मानकर विभिन्न प्रकार के पाठ्यक्रमों को प्रस्तुत किया जाता है।

बाल केंद्रित पाठ्यक्रम (Child Centred Curriculum)

बाल केंद्रित पाठ्यक्रम में किसी विषय को महत्व देने की अपेक्षा बालकों अथवा विद्यार्थियों को अधिक महत्व दिया जाता है। इस प्रकार के पाठ्यक्रम में मुख्य रूप से बालकों की मनोदशा को समझते हुए शिक्षा पद्धति में उचित व्यवस्था की जाती है जिससे बालकों की शिक्षा संबंधी अधिकतर कठिनाइयां दूर होती हैं। इसके अलावा बाल केंद्रित पाठ्यक्रम में समस्त शिक्षा सामग्री एवं क्रियाएं बालक की योग्यता, अभिरुचि, प्रकृति, मानसिक स्तर एवं क्षमता के अनुसार ही तैयार की जाती हैं।

अनुभव केंद्रित पाठ्यक्रम (Experience centred curriculum)

अनुभव केंद्रित पाठ्यक्रम वह पाठ्यक्रम होते हैं जिसमें मुख्य रुप से बालकों के मानसिक एवं सामाजिक विकास हेतु अनुभवों को अधिक महत्व दिया जाता है। यह विषयों की तुलना में अनुभव पर आधारित पाठ्यक्रम होते हैं। इसका संबंध बालकों या विद्यार्थियों की आवश्यकताओं, रुचियों एवं योग्यताओं से होता है। अनुभव केंद्रित पाठ्यक्रम को प्रगतिशील पाठ्यक्रम भी कहा जाता है क्योंकि इसके द्वारा बालकों का कई प्रकार के क्षेत्रों में विकास संभव होता है। इस प्रकार के पाठ्यक्रम में सामाजिक एवं भौतिक वातावरण का अधिक से अधिक उपयोग किया जाता है। यह विद्यालयों के साथ-साथ समाज में भी बालकों के संबंध को स्थापित करता है।

कार्य अथवा क्रिया केंद्रित पाठ्यक्रम (work/activity centred curriculum)

कार्य अथवा क्रिया केंद्र पाठ्यक्रम का निर्माण क्रियाओं के आधार पर किया जाता है। इस प्रकार के पाठ्यक्रम में बालकों या विद्यार्थियों से विभिन्न प्रकार की क्रियाएं कराई जाती हैं जिससे उनमें समाज के हित एवं मांग के प्रति रूचि का विकास हो सके। इसके अलावा क्रिया केंद्रित पाठ्यक्रम में विभिन्न प्रकार के सामाजिक कार्यों को भी विशेष स्थान दिया जाता है जिसके माध्यम से बालकों को सामाजिक मूल्य का अनुसरण करने में सहायता मिलती है। इसमें विद्यार्थियों को सामाजिक अथवा आर्थिक शिक्षा प्रदान करने की क्षमता होती है। कार्य अथवा क्रिया केंद्र पाठ्यक्रम के अंतर्गत आने वाले कार्यों का चयन विभिन्न शिक्षा संस्थानों एवं शिक्षकों की सहायता से किया जाता है।

कोर पाठ्यक्रम (core curriculum)

कोर पाठ्यक्रम वह पाठ्यक्रम होते हैं जिनका निर्माण बालकों की परिस्थितियों के अनुकूल किया जाता है। कोर पाठ्यक्रम को मूलभूत पाठ्यक्रम के नाम से भी जाना जाता है। इस प्रकार के पाठ्यक्रम में कुछ विशेष विषय होते हैं जो सभी छात्रों के लिए समान रूप से अनिवार्य किए जाते हैं। इसके अलावा कोर पाठ्यक्रम में कुछ ऐसे भी विषयों को तैयार किया जाता है जिनका चयन विद्यार्थी स्वयं अपनी रूचि एवं क्षमतानुसार कर सकते हैं। कोर पाठ्यक्रम की सहायता से सभी विद्यार्थियों को समान रूप से शिक्षा प्रदान की जाती है जिससे उनका सामाजिक रूप से विकास किया जा सके।

शिल्पकला केंद्रित पाठ्यक्रम (Craft Centred curriculum)

शिल्पकला केंद्रित पाठ्यक्रम वह होते हैं जिनमें विभिन्न प्रकार की शिल्प कलाओं की सहायता से विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान की जाती है जैसे बुनाई, कढ़ाई, कताई, चमड़े, लकड़ी के कार्य आदि। इस प्रकार के पाठ्यक्रमों में शिल्प को विषय मानकर विद्यार्थियों को उसकी जानकारी प्रदान की जाती है। माना जाता है कि यह पाठ्यक्रम महात्मा गांधी के विचारधाराओं पर आधारित है क्योंकि उनका मानना था कि विद्यार्थियों को सामाजिक एवं किताबी ज्ञान देने के साथ-साथ शिल्प कला की जानकारी भी देनी चाहिए जिससे भविष्य में वह अपनी जीविका का बेहतर ढंग से निर्वहन कर सकें।

व्यवसाय केंद्रित पाठ्यक्रम (Business Centred Curriculum)

व्यवसाय केंद्रित पाठ्यक्रम में विद्यार्थियों को पाठ्यक्रम के माध्यम से विभिन्न प्रकार के व्यवसायों की जानकारी प्रदान की जाती है जिससे भविष्य में वे आत्मनिर्भर बन सकें एवं जीवन यापन करने के लिए जीविकोपार्जन प्राप्त कर सकें। इस प्रकार के पाठ्यक्रम में विद्यार्थियों को व्यवसायिक एवं तकनीकी कार्य के गुण सिखाए जाते हैं। वर्तमान समय में कई विद्यालय एवं विश्वविद्यालयों में व्यवसाय केंद्रित पाठ्यक्रम को सामान्य रूप से लागू किया जाता है जिससे बालकों के कौशल का विकास होता है।

पाठ्यक्रम के सिद्धांत

पाठ्यक्रम मुख्य रूप से विभिन्न प्रकार के सिद्धांतों का अनुसरण करता है जैसे:-

  • क्रियाशीलता का सिद्धांत (Concept of Productivity)
  • मानसिक स्तरानुकूल (Psychological Adjustment)
  • उपयोगिता का सिद्धांत (Theory of Utility)
  • समवाय का सिद्धांत (Principle of Coordination)
  • शैक्षिक वातावरण (Educational Environment)

क्रियाशीलता का सिद्धांत (Concept of Productivity)

पाठ्यक्रम मुख्य रूप से क्रियाशीलता के सिद्धांत का अनुसरण करता है जो भाषा के प्रयोगों के आधिकारिक अवसरों एवं सृजनात्मकता की ओर ध्यान केंद्रित करता है। इस प्रकार के पाठ्यक्रम का निर्माण विद्यार्थियों को सक्रिय बनाने हेतु किया जाता है। इसके माध्यम से विद्यार्थी स्वयं प्रयास करके कार्य करने के अवसर प्राप्त करते हैं।

मानसिक स्तरानुकूल (Psychological Adjustment)

वर्तमान शिक्षा प्रणाली में मानसिक स्तरानुकूल शिक्षा पद्धति का एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है जिसकी सहायता से विद्यार्थियों को विभिन्न क्षेत्रों एवं विषयों का ज्ञान प्रदान किया जाता है। यह विद्यार्थियों में प्राकृतिक दृश्य एवं घटनाओं के प्रति रुचि को बढ़ावा देता है जिससे प्राकृतिक दृश्य का चित्रण आसान हो जाता है। माना जाता है कि वर्तमान शिक्षा पद्धति बाल केंद्रित है एवं इसका निर्माण बालकों में बौद्धिक एवं मानसिक विकास को ध्यान में रखकर किया गया है।

उपयोगिता का सिद्धांत (Theory of Utility)

उपयोगिता का सिद्धांत पाठ्यक्रम का वह गुण है जिसके माध्यम से विद्यार्थियों को समस्त सुख की प्राप्ति होने के साथ-साथ कई प्रकार के दुखों का निवारण भी होता है क्योंकि उपयोगिता का सिद्धांत यह बताता है कि एक कुशल विद्यार्थी को किसी समस्या का उपाय करने हेतु क्या करना चाहिए एवं क्या नहीं करना चाहिए। उपयोगितावाद विद्यार्थी के जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में पदार्पण करने में सहायक होता है। इस पाठ्यक्रम के माध्यम से विद्यार्थियों को भावी जीवन के लिए तैयार किया जाता है जिसके माध्यम से वह आगे चलकर एक बेहतर समाज की रचना कर सकें।

समवाय का सिद्धांत (Principle of Coordination)

समवाय के सिद्धांत का संबंध उच्च शिक्षा पद्धति से होता है जिसमें मुख्य रूप से विद्यार्थियों को धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक, व्यवसायिक एवं औद्योगिकी के क्षेत्रों में शिक्षा प्रदान की जाती है। इस प्रकार के पाठ्यक्रम की सहायता से एक विद्यार्थी शिक्षा प्राप्ति के पश्चात इन सभी क्षेत्रों में आसानी से प्रगति कर सकता है। इसके अलावा यह बालकों के कौशल को विकसित करने में भी सहायता प्रदान करता है।

शैक्षिक वातावरण (Educational Environment)

शैक्षिक वातावरण किसी भी विद्यालय की संपूर्ण सफलता में बेहद सहायक माना जाता है। यह बालकों एवं सहपाठियों के साथ बेहतर संबंध स्थापित करने का कार्य करता है जिससे उनके मानसिक स्तर को बढ़ावा मिलता है। इसके अलावा शैक्षिक वातावरण के कारण विद्यार्थियों में  कक्षाओं की विविधता कि समझ भी विकसित होती है। इसमें विद्यार्थियों के जीवन से संबंधित सभी घटनाओं को शामिल किया जाता है जिससे वह सामाजिक वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित कर सके।

पाठ्यक्रम की विशेषताएं

पाठ्यक्रम का स्वरूप परिवर्तनशील होता है जिसमें समाज की आवश्यकतानुसार एवं शिक्षा के उद्देश्य के आधार पर निरंतर बदलाव किए जाते हैं। पाठ्यक्रम की सहायता से ही विद्यार्थियों के व्यक्तित्व का विकास किया जाता है। यह विद्यार्थियों के मानसिक एवं सामाजिक स्थिति को विकसित करने हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके माध्यम से बालकों में समस्या समाधान की प्रवृत्ति विकसित होती है। इसके अलावा पाठ्यक्रम के द्वारा विद्यार्थियों में भावनात्मक, ज्ञानात्मक एवं क्रियात्मक कुशलताओं का विकास किया जाता है।

 

पाठ्यचर्या किसे कहते हैं

जो विषय वस्तु पढ़ने अथवा सीखने योग्य होती है उसे पाठ्यचर्या (Curriculum) के नाम से जाना जाता है। पाठ्यचर्या शब्द पाठ्य एवं चर्या शब्द से मिलकर बना है जिसका अर्थ होता है पढ़ने योग्य या पढ़ाने योग्य। शिक्षा के क्षेत्र में पाठ्यचर्या का नियमपूर्वक अनुसरण किया जाता है। इसमें उन सभी क्रियाओं को शामिल किया जाता है जिसकी सहायता से एक विद्यालय में शिक्षार्थियों को संपूर्ण शिक्षा प्रदान की जाती है। यह विभिन्न शिक्षा संस्थानों के अंतर्गत आने वाले शिक्षा व्यवस्था का केंद्र बिंदु होता है। पाठ्यचर्या वह साधन होता है जिसके माध्यम से छात्र एवं अध्यापक के बीच एक संबंध स्थापित होता है एवं इसकी सहायता से ही शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति की जाती है। एक अध्यापक पाठ्यचर्या की सहायता से छात्रों को शारीरिक, मानसिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक एवं नैतिक विकास के लिए प्रेरित करता है। अतः पाठ्यचर्या की मदद से ही विद्यार्थियों को जीवन व्यतीत करने की शिक्षा प्राप्त होती है।

पाठ्यचर्या के प्रकार

पाठ्यचर्या के निम्न प्रकार होते हैं:-

  • समेकित पाठ्यचर्या (Inclusive Curriculum)
  • सैद्धांतिक पाठ्यचर्या (Theory Curriculum)
  • कोर पाठ्यचर्या (Core Curriculum)
  • पुनर्संरचनात्मक पाठ्यचर्या (Reconstructive Curriculum)
  • क्रिया केंद्रित पाठ्यचर्या (Activity Centered Curriculum)

समेकित पाठ्यचर्या (Inclusive Curriculum)

समेकित पाठ्यचर्या या एकीकृत पाठ्यचर्या वह होते हैं जिनमें विभिन्न प्रकार के विषयों में आपसी संबंध होता है। इस प्रकार के पाठ्यचर्या में कई प्रकार के विषयों का एकीकरण किया जाता है जिससे ज्ञान को विभिन्न खंडों में विभाजित ना करके एक ही रूप में प्रस्तुत किया जा सके। यह प्रक्रिया विद्यार्थियों के दृष्टिकोण से बेहद प्रभाव सरल एवं उपयोगी होती है। समेकित पाठ्यचर्या की सहायता से शिक्षार्थियों को जीवन यापन करने की शिक्षा प्रदान की जाती है।

सैद्धांतिक पाठ्यचर्या (Theory Curriculum)

सैद्धांतिक पाठ्यचर्या शिक्षा पद्धति के प्रति एक सैद्धांतिक दृष्टिकोण रखता है जिसमें मुख्य रूप से आदर्श जीवन के सिद्धांतों एवं नैतिक जीवन के सिद्धांतों के विकास पर बल दिया जाता है। इस प्रकार की पाठ्यचर्या में गणित, विज्ञान, व्याकरण, धर्मशास्त्र, नीति शास्त्र, ज्योतिष विद्या, विभिन्न भाषाओं आदि के विषयों को विशेष महत्व दिया जाता है। इसके अंतर्गत विद्यार्थियों के निजी जीवन को सामाजिक जीवन में सम्मिलित किया जाता है।

कोर पाठ्यचर्या (Core Curriculum)

कोर पाठ्यचर्या वह होती है जिसमें शिक्षार्थियों को कुछ विशेष विषय अनिवार्य रूप से पढ़ाए जाते हैं। इसके अलावा इसमें विद्यार्थियों को कुछ अन्य विषयों के चयन का चुनाव करने की भी अनुमति प्रदान की जाती है जिससे उनके बौद्धिक क्षमताओं में विकास होता है। यह पाठ्यचर्या शिक्षार्थियों को सामाजिक जीवन यापन करने की शिक्षा प्रदान करता है। इसके अलावा कोर पाठ्यचर्या विद्यार्थियों या बालकों के सामान्य विकास पर भी ध्यान केंद्रित करता है।

पुनर्रचनात्मक पाठ्यचर्या (Reconstructivistic Curriculum)

पुनर्रचनात्मक पाठ्यचर्या महात्मा गांधी के बुनियादी शिक्षा पद्धति पर आधारित है। इसके अंतर्गत एक विद्यार्थी को संपूर्ण शिक्षा प्रदान करने का प्रयास किया जाता है। इस प्रकार की पाठ्यचर्या में मुख्य रूप से हस्तकला एवं भौतिक पर्यावरण के साथ-साथ सामाजिक पर्यावरण को भी विशेष स्थान दिया गया है। यह एक बेहतर शिक्षा पद्धति का निर्माण करने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

क्रिया केंद्रित पाठ्यचर्या (Activity Centered Curriculum)

क्रिया केंद्रित पाठ्यचर्या के अंतर्गत बाल्यवस्था से ही किसी बालक की क्रियाओं को विकसित करके उसे शिक्षा प्राप्त करने हेतु प्रोत्साहित किया जाता है। इसका निर्माण प्राथमिक एवं माध्यमिक दोनों स्तर पर किया जाता है। इसके अलावा क्रिया केंद्रित पाठ्यचर्या विद्यार्थियों की आवश्यकता, समस्या एवं अभिरुचि के अनुभव पर आधारित होता है। इस प्रकार की पाठ्यचर्या में उन सभी कार्यक्रमों को आयोजित किया जाता है जो शिक्षार्थियों के सामाजिक मूल्यों एवं उनके सर्वांगीण विकास में सहायक होता है।

पाठ्यचर्या के सिद्धांत

पाठ्यचर्या के निर्माण में विभिन्न प्रवृत्तियों एवं सिद्धांतों को शामिल किया गया है जो कुछ इस प्रकार हैं:-

  • बाल केंद्रित सिद्धांत
  • रचनात्मक शक्तियों के उपयोगिता का सिद्धांत
  • मनोवैज्ञानिकता का सिद्धांत
  • संस्कृति एवं सभ्यता के ज्ञान का सिद्धांत
  • सामुदायिक जीवन जीने का सिद्धांत
  • जनतंत्रीय भावना के विकास का सिद्धांत
  • शैक्षिक उद्देश्यों से अनुरूपता का सिद्धांत

बाल केंद्रित सिद्धांत

बाल केंद्रित सिद्धांत के अंतर्गत शिक्षार्थियों की मनोदशा को समझते हुए उचित शिक्षण की व्यवस्था करने एवं शिक्षा संबंधी समस्याओं को दूर करने की प्रक्रिया की जाती है। इसमें मुख्य रूप से विद्यार्थियों की रुचि को ध्यान में रखते हुए शिक्षा प्रदान की जाती है जिससे विद्यार्थियों के जीवन में परिवर्तन आता है। इसके अलावा बाल केंद्रित सिद्धांत में विद्यार्थी अपनी रूचि के अनुसार विषयों का चुनाव कर सकते हैं।

रचनात्मक शक्तियों की उपयोगिता का सिद्धांत

विभिन्न शिक्षा संस्थानों को पाठ्यचर्या के माध्यम से विद्यार्थियों को कुछ ऐसे अवसर प्रदान किए जाते हैं जिसकी सहायता से विद्यार्थियों की रचनात्मक एवं सृजनात्मक शक्तियों का विकास होता है। इसके अलावा शिक्षा संस्थान शिक्षा पद्धति में समय-समय पर परिवर्तन करके विद्यार्थियों को सामाजिक कार्यों के प्रति प्रेरित भी करते हैं।

मनोवैज्ञानिकता का सिद्धांत

पाठ्यचर्या में बालकों की मनोवैज्ञानिक दशा को समझकर उनके व्यवहार में परिवर्तन करने की क्षमता होती है। यह शिक्षार्थियों की आवश्यकतानुसार समय-समय पर पाठ्यचर्या में बदलाव की प्रक्रिया करके उनके बौद्धिक क्षमता को प्रभावित करते हैं जिससे उनका मानसिक विकास होता है। विद्यार्थियों को इस सिद्धांत का लाभ विभिन्न शिक्षा संस्थानों एवं शिक्षकों के माध्यम से प्राप्त होता है।

संस्कृति एवं सभ्यता के ज्ञान का सिद्धांत

माना जाता है कि संस्कृति का संबंध मानव के संस्कारों एवं सभ्यता से होता है। शिक्षा पद्धति के अंतर्गत पाठ्यचर्या वह साधन होता है जिसकी सहायता से विद्यार्थियों के साथ-साथ लोगों में भी संस्कृति एवं सभ्यता का विकास होता है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि पाठ्यचर्या में संस्कृति एवं सभ्यता के ज्ञान को शामिल करने से बालकों के जीवन में सकारात्मक बदलाव आ सकता है। इसके अलावा विद्यार्थियों को अपनी संस्कृति एवं सभ्यता का ज्ञान होने से उनका जीवन स्तर भी बेहतर होता है।

सामुदायिक जीवन जीने का सिद्धांत

माध्यमिक शिक्षा संस्थानों के अनुसार पाठ्यचर्या का संबंध सामुदायिक जीवन से अनिवार्य रूप से होता है इसीलिए यह बेहद अनिवार्य होता है कि पाठ्यचर्या का निर्माण करते समय सामाजिक प्रथाओं, समस्याओं, मानवतावादी का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। यह विद्यार्थियों को सामुदायिक जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है जो सामाजिक दृष्टिकोण से बेहतर माना जाता है।

जनतंत्रीय भावना के विकास का सिद्धांत

विभिन्न शिक्षा संस्थानों का मानना है कि पाठ्यचर्या में जनतंत्र की भावना को निहित करने से जनतांत्रिक मूल्यों का विकास किया जा सकता है। यह शिक्षार्थियों में देश के प्रति प्रेम की भावना को विकसित करने का कार्य करता है। इसके अलावा पाठ्यचर्या में जनतंत्रीय भावना के विकास के सिद्धांत को शामिल करने से विद्यार्थियों के साथ-साथ नागरिकों का जीवन भी सकारात्मक रूप से प्रभावित होता है।

शैक्षिक उद्देश्यों से अनुरूपता का सिद्धांत

पाठ्यचर्या को शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण साधन माना जाता है इसीलिए पाठ्यचर्या का निर्माण करते समय शिक्षा के उद्देश्यों का विशेष रूप से ध्यान रखा जाता है। इसमें केवल उन्हीं विषयों एवं क्रियाओं को समाहित किया जाता है जो शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति कर सकें।

पाठ्यचर्या की विशेषताएं

पाठ्यचर्या के माध्यम से शिक्षा के सभी उद्देश्यों की पूर्ति की जाती है। यह वह साधन है जो विद्यार्थी को शिक्षक से जोड़ने का कार्य करता है। एक शिक्षक या अध्यापक पाठ्यचर्या के द्वारा विद्यार्थियों के शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक, नैतिक, आध्यात्मिक एवं सामाजिक क्षेत्रों में विकास करने का प्रयास करता है। इसके अलावा पाठ्यचर्या को विद्यार्थियों के जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग भी माना जाता है क्योंकि इसका उद्देश्य छात्रों की शिक्षा के प्रति रुचि, क्षमताओं एवं योग्यताओं को जागृत करना होता है। यह वह साधन है जिसके माध्यम से शिक्षार्थियों में सभी प्रकार के सामाजिक गुणों का विकास किया जा सकता है।

 

पाठ्यक्रम और पाठ्यचर्या में अंतर

पाठ्यक्रम और पाठ्यचर्या में निम्न प्रकार के अंतर देखे जा सकते हैं:-

  • पाठ्यक्रम की प्रकृति वर्णनात्मक होती है जबकि पाठ्यचर्या की प्रकृति निर्देशात्मक होती है।
  • पाठ्यक्रम का क्षेत्र संकुचित या छोटा होता है परंतु पाठ्यचर्या का क्षेत्र व्यापक एवं विस्तृत होता है।
  • पाठ्यक्रम किसी विषय वस्तु का केवल एक क्रम मात्र होता है जबकि पाठ्यचर्या संपूर्ण विद्यालय जीवन की एक चर्या होती है।
  • पाठ्यक्रम के माध्यम से विद्यार्थियों के ज्ञानात्मक पक्ष का विकास होता है जबकि पाठ्यचर्या के माध्यम से छात्रों का सर्वांगीण विकास होता है।
  • पाठ्यक्रम में पाठ्यचर्या का केवल एक अंग मौजूद होता है परंतु पाठ्यचर्या में संपूर्ण पाठ्यक्रम के साथ-साथ शिक्षण संस्थानों की अन्य क्रियाएं भी शामिल होती है।
  • पाठ्यक्रम का निर्माण शिक्षार्थियों की रूचि, क्षमता एवं ज्ञान को ध्यान में रखकर किया जाता है जबकि पाठ्यचर्या का निर्माण समाज एवं देश की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किया जाता है।
  • पाठ्यक्रम में उपलब्धियों का मापन किया जा सकता है परंतु पाठ्यचर्या में उपलब्धियों का मापन नहीं किया जा सकता है।
  • पाठ्यक्रम का निर्धारण शिक्षा संस्थानों के वरिष्ठ अधिकारियों एवं परीक्षा समिति के द्वारा किया जाता है परंतु पाठ्यचर्या का निर्धारण विश्वविद्यालय, संस्थानों एवं विद्यालयों के द्वारा किया जाता है।
  • पाठ्यक्रम मुख्य रूप से बाल केंद्रित होता है जबकि पाठ्यचर्या समाज केंद्रित होता है।
  • पाठ्यक्रम का संबंध केवल शिक्षक एवं विद्यार्थियों से होता है परंतु पाठ्यचर्या का संबंध शिक्षक एवं विद्यार्थियों के साथ-साथ विद्यालय के अन्य कर्मचारियों से भी होता है।
  • पाठ्यक्रम के निर्माण के बाद उसमें बदलाव की प्रक्रिया करना एक कठिन कार्य माना जाता है जबकि पाठ्यचर्या में आसानी से परिवर्तन किए जा सकते हैं।

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