प्लेटो कौन था - प्लेटो का शिक्षा सिद्धांत, प्लेटो के अनुसार न्याय क्या है

प्लेटो कौन था – प्लेटो का शिक्षा सिद्धांत, प्लेटो के अनुसार न्याय क्या है

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प्लेटो कौन था

प्लेटो (अंग्रेजी में : Plato) यूनान का प्रथम राजनीतिक दार्शनिक था जिसे अफलातून के नाम से भी जाना जाता है। प्लेटो ने पश्चिमी जगत में दार्शनिक पृष्ठभूमि को तैयार करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। प्लेटो का जन्म 428 ईसा पूर्व में एथेंस के समीप एजीना नामक एक द्वीप में हुआ था। उन्होंने पश्चिमी क्षेत्र में शिक्षा हेतु पहली संस्था की स्थापना की थी जो उच्च शिक्षा के लिए बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है। प्लेटो को एक प्रसिद्ध दार्शनिक के साथ-साथ तर्कशास्त्री, नीतिशास्त्री एवं महान गणितज्ञ के रूप में भी जाना जाता है। प्लेटो ने अपने जीवन काल में कई रचनाएं की थी जिसके द्वारा उच्च शिक्षा पद्धति को प्रोत्साहन मिला।

प्लेटो किसका शिष्य था

माना जाता है कि प्लेटो सुकरात के शिष्य थे। प्लेटो की तरह ही सुकरात भी एक विख्यात यूनानी दार्शनिक थे। कई इतिहासकारों के अनुसार सुकरात एक कुरूप व्यक्ति थे जिन्हें मौलिक शिक्षा देना बेहद पसंद था। वह सदैव शिक्षा पद्धति एवं मानव सदाचार पर जोर देने के साथ-साथ पुरानी कुरीतियों पर भी प्रहार किया करते थे। सुकरात को 469-399 ईसा पूर्व के दौरान सबसे बुद्धिमान लोगों में गिना जाता था।

प्लेटो का शिक्षा सिद्धांत

प्लेटो का मानना था कि एक आदर्श राज्य में न्याय की प्राप्ति हेतु समाज में शिक्षा का प्रचलन बेहद महत्वपूर्ण है। प्लेटो के अनुसार शिक्षा वह मार्ग है जिसके द्वारा समाज में भ्रातृभाव एवं एकता की भावना का जन्म होता है। प्लेटो ने अपने जीवन काल में शिक्षा के महत्व को सामान्य नागरिकों तक पहुंचाने का सफल प्रयास किया। उनका मानना था कि शिक्षा प्रणाली लोगों को श्रेष्ठ व चरित्रवान बनाने हेतु बेहद आवश्यक है। प्लेटो ने शिक्षा के महत्व को अपनाकर लोगों की अध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाने का प्रयास किया था। प्लेटो की शिक्षा पद्धति के पीछे एक दार्शनिक दृष्टिकोण था। उनके अनुसार मनुष्य की आत्मा एक सक्रिय तत्व है जिसके कारण एक व्यक्ति का मन स्वयं को पर्यावरण में मौजूद सभी तत्वों की ओर अग्रेषित करता है। प्लेटो ने अपनी शिक्षा योजना का निर्माण दो महत्वपूर्ण सिद्धांत के द्वारा किया था जो कुछ इस प्रकार है:-

  • एथेंस की शिक्षा पद्धति
  • स्पार्टा की शिक्षा पद्धति

एथेंस की शिक्षा पद्धति

एथेंस की शिक्षा पद्धति के अंतर्गत केवल समृद्ध वर्ग के लोगों को ही शिक्षा प्रदान की जाती थी। इस प्रकार की शिक्षा पद्धति सरकार द्वारा संचालित नहीं किए जाते थे। इसके अंतर्गत राज्य सरकार शिक्षा प्रणाली में कोई हस्तक्षेप नहीं करती थी। एथेंस की शिक्षा पद्धति मुख्य रूप से तीन स्तर में विभाजित की गई थी प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा एवं तृतीय स्तरीय शिक्षा। प्राथमिक शिक्षा में केवल प्राचीन कवियों का साहित्य, पढ़ना-लिखना, संगीत एवं व्यायाम से संबंधित पाठ्यक्रम आयोजित किए जाते थे। यह केवल 6-14 वर्ष के विद्यार्थियों हेतु अनिवार्य किए गए थे। माध्यमिक शिक्षा मुख्य रूप से 14-18 वर्ष के विद्यार्थियों को प्रदान किए जाते थे जिसमें अलंकार शास्त्र, राजनीति विज्ञान एवं भाषण कला जैसे पाठ्यक्रम निहित थे। तृतीय शिक्षा व्यवस्था 18-20 वर्ष के विद्यार्थियों को प्रदान किए जाते थे जिसके अंतर्गत विद्यार्थियों को मुख्य रूप से सैन्य शिक्षा, मानसिक शिक्षा एवं शारीरिक शिक्षा प्रदान की जाती थी जिसके अंतर्गत व्यक्ति को पूर्ण नागरिक अधिकार भी दिलाए जाते थे।

स्पार्टा की शिक्षा पद्धति

स्पार्टा की शिक्षा पद्धति पूर्णतः सरकारी थी। स्पार्टा की शिक्षा पद्धति में अमीर और गरीब सभी को शिक्षा प्रदान की जाती थी तथा महिलाओं को भी शिक्षा का अधिकार थ। स्पार्टा की शिक्षा पद्धति में सैनिक शिक्षा भी दी जाती थी।

 

प्लेटो के अनुसार न्याय क्या है

प्लेटो ने समाज में न्याय का एक नया सिद्धांत दिया था जो उनके दर्शन की आधारशिला है। प्लेटो का मानना था कि प्रत्येक नागरिक को अपने प्रकृति एवं प्रशिक्षण के अनुकूल अपने सभी कार्यों को कुशलतापूर्वक करना चाहिए एवं दूसरों के जीवन या कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। प्लेटो के अनुसार एक आदर्श राज्य का मुख्य उद्देश्य न्याय की स्थापना करना होता है। एक आदर्श राज्य में न्याय व्यवस्था की प्राप्ति हेतु शासन व्यवस्था, न्याय प्रणाली, राज्य नियंत्रित शिक्षा व्यवस्था एवं साम्यवादी व्यवस्था का प्रावधान किया जाना बेहद अनिवार्य होता है। दरअसल सोफिस्टो (सोफिस्ट नीति मीमांसा आत्मनिष्ठतावाद पर बल देती है, सबसे प्रसिद्ध सोफिस्ट विचारक प्रोटोगोरस के कथनानुसार “होम मेनसुरा” अर्थात मनुष्य ही सभी वस्तुओं का मापदंड है और इस आत्मनिष्ठता का आधार है, यहाँ मनुष्य का अर्थ व्यक्ति से है नीति मीमांसा में इस कथन का तात्पर्य यह हुआ कि ‘प्रत्येक व्यक्ति अपने अनुसार यह तय करेगा कि क्या शुभ है और क्या अशुभ।) के प्रचार के बाद यूनान के नागरिकों में स्वार्थ एवं व्यक्तिवाद की भावना ने जन्म लिया था जिसके कारण प्लेटो बेहद चिंतित था। इसके बाद प्लेटो ने तत्कालीन नगर राज्यों से बुराइयों को समाप्त करने के लिए राज्य में एकता एवं सामाजिक भ्रातृभाव को स्थापित करने हेतु न्याय सिद्धांत का प्रतिपादन किया था।

प्लेटो ने न्याय के कितने रूप बताएं

प्लेटो के अनुसार न्याय के दो ही मुख्य रूप होते हैं:-

  • सामाजिक न्याय
  • व्यक्तिगत न्याय

सामाजिक न्याय

प्लेटो का मानना था कि समाज में सभी वर्ग के लोगों के मध्य समानता का स्तर स्थापित होने के बाद ही सामाजिक न्याय की स्थापना संभव होती है। प्लेटो का कहना था कि न्याय का संबंध संपूर्ण राज्य में प्रत्येक नागरिक से होता है। प्रत्येक वर्ग अपने कर्तव्यों का पालन करके सामाजिक रूप से न्याय की स्थापना कर सकता है। प्लेटो के अनुसार एक राज्य में न्याय व्यवस्था सैनिक वर्ग के लोगों में साहस, दार्शनिक वर्ग के लोगों में विवेक एवं व्यवसायिक वर्ग के लोगों में तृष्णा के तत्वों की प्रधानता को स्वीकृति देता है। प्लेटो के अनुसार सैनिक वर्ग, दार्शनिक वर्ग एवं व्यवसायिक या उत्पादक वर्ग के लोगों द्वारा अपने-अपने कर्तव्यों का निर्वाह करना एक सामाजिक न्यायिक व्यवस्था को दर्शाता है।

व्यक्तिगत न्याय

प्लेटो के अनुसार व्यक्तिगत न्याय वह व्यवस्था है जिसके अंतर्गत व्यक्ति अपनी आत्मा के साहस एवं बल के द्वारा अनुशासन को स्थापित करता है। व्यक्तिगत न्याय सामान्य रूप से सामाजिक न्याय की नीतियों को अपनाता है। प्लेटो के कथनानुसार एक राज्य की स्थापना वृक्ष एवं चट्टानों से नहीं बल्कि उस में निवास करने वाले व्यक्तियों के चरित्र के द्वारा होती है। व्यक्तिगत न्याय में एकता, सहयोग एवं सामंजस्य जैसे गुण निहित होते हैं जिसके आपसी सहयोग द्वारा व्यक्तिगत न्याय की संकल्पना की जा सकती है।

प्लेटो के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य

प्लेटो ने अपने जीवन काल में शिक्षा प्रणाली को अत्यधिक महत्व दिया था। प्लेटो का मानना था कि शिक्षा व्यक्तियों को आंतरिक रूप से विकसित करने का कार्य कर सकती है। उनके अनुसार शिक्षा वह साधन है जो व्यक्तियों के जीवन से परिश्रम को कम कर सकती है। दर्शन के दृष्टिकोण से शिक्षा एक सत्य आत्मा का दर्शन होने के साथ-साथ निरपेक्षता का साधन भी है।

प्लेटो एक महान दार्शनिक होने के साथ-साथ एक राजनीतिक विचारक भी थे जिनका मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य न्यायिक व्यवस्था को साकार करना होता है। यह राजनीतिक रूप से अभिभावक वर्ग के लोगों को प्रशासनिक एवं संरक्षण के कार्यों में विशेषज्ञ बनाने का कार्य करता है। प्लेटो के अनुसार शिक्षा सामाजिक रूप से संरक्षित वर्ग के लोगों में साहस की भावना को उत्पन्न करता है। इसके अलावा शिक्षा प्रणाली व्यक्तियों के शारीरिक एवं आत्मिक बल को भी विकसित करने का प्रशिक्षण देता है।

प्लेटो के राजनीतिक विचार

प्लेटो एक महान व्यक्तित्व के व्यक्ति थे जिसके कारण उनके विचारों को राजनीतिक क्षेत्र में सर्वोच्च स्थान दिया गया था। प्लेटो द्वारा दिए गए राजनीतिक विचार विश्व भर में प्रसिद्ध हैं क्योंकि उनके द्वारा दिए गए प्रत्येक विचारों के आधार पर राजनीति को कई प्रकार से परिभाषित किया जाता है। प्लेटो द्वारा दिए गए राजनीतिक सिद्धांतों को कई भागों में बांटा गया है जो कुछ इस प्रकार हैं:-

  • प्लेटो के राजा संबंधी विचार
  • प्लेटो के राज्य संबंधी विचार
  • प्लेटो के साम्यवाद संबंधी विचार

प्लेटो के राजा संबंधी विचार

प्लेटो के अनुसार एक कुशल राजा या शासक वह होता है जिसमें दार्शनिक एवं आदर्शवादी गुण होते हैं। उनका मानना था कि एक कुशल राजा के अंदर साहस, विवेक एवं तृष्णा का भाव होना चाहिए। इसके अलावा राजा के अंदर सर्वाधिक ज्ञान का भंडार भी होना चाहिए जो एक राजा को हर क्षेत्र में कुशल बना सके।

प्लेटो के राज्य संबंधी विचार

प्लेटो का मानना था कि एक राज्य केवल तभी एक आदर्शवादी राज्य का निर्माण कर सकता है जब वहां की न्यायिक व्यवस्था एवं राजनीतिक व्यवस्था कुशल हो। प्लेटो के अनुसार एक राज्य व्यक्तियों का व्यापक रूप होता है जिसके अंतर्गत व्यक्ति एवं राज्य के मध्य कोई अंतर नहीं होता। उनके अनुसार एक राज्य का कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता बल्कि राज्य में रहने वाले व्यक्तियों के अस्तित्व के कारण ही राज्य के स्वतंत्र अस्तित्व का निर्माण होता है।

प्लेटो के साम्यवादी विचार

प्लेटो ने अपने साम्यवादी विचारों को दो भागों में विभाजित किया है पहला संपत्ति का साम्यवाद एवं दूसरा परिवार का साम्यवाद। संपत्ति के साम्यवाद के अंतर्गत सैनिक वर्ग एवं शासक वर्ग के लोगों को संपत्ति के अधिकार से वंचित रखा जाता है क्योंकि प्लेटो के अनुसार संपत्ति मनुष्य की बुद्धि को भ्रष्ट करने का कार्य करता है। पत्नियों के साम्यवाद के अंतर्गत सैनिक वर्ग एवं शासक वर्ग के लोगों को उनके परिवार से दूर रखा जाता है क्योंकि प्लेटों का मानना था कि परिवार मनुष्य में अंतर करने के भाव को उत्पन्न करता है। परिवार के कारण एक व्यक्ति के अंदर स्वार्थ का भाव प्रकट होता है जिसके कारण प्लेटो इसका विरोध करते थे।

प्लेटो का अनुकरण सिद्धांत

प्लेटो के अनुसार काव्य मिथ्या जगत की एक मिथ्या अनुकृति है। यह एक भ्रामक अनुकृति होने के साथ-साथ ऐसी मिथ्या है जिसका अनुकरण करना पूर्ण रूप से संभव नहीं हो सकता। प्लेटो का मानना था कि एक कवि या कलाकार मिथ्या जगत की एक भ्रामक अनुकृति करता है जिसके कारण वह परम सत्य से वंचित रहता है। इसी कारण प्लेटो कवि की रचना एवं कला को अनैतिक मानते थे। प्लेटो के अनुसार कवि व्यक्तियों की बौद्धिक क्षमता को प्रभावित करके उनकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ करते हैं जिसके कारण प्लेटो मुख्य रूप से कवियों का बहिष्कार करते थे।

प्लेटो की प्रमुख रचनाएँ

प्लेटो ने अपने जीवन काल में कई प्रमुख रचनाएं की जिनमें दी रिपब्लिक, द लोज, इयोन, द स्टैट्समैन, अपोलॉजी, क्रीटो, जोर्जियस, मीनो, जोर्जियस, सिंपोजियम, प्रोटागोरस, फेड्रस, पार्मिनीडिज, सोफिस्ट आदि शामिल है। यह सभी रचनाएं प्लेटो की सर्वश्रेष्ठ रचनाएं मानी जाती हैं।

प्लेटो की मृत्यु कब हुई थी

प्लेटो की मृत्यु 347 ईसा पूर्व में हुई थी। प्लेटो का अंतिम समय उनके द्वारा स्थापित संस्था में लेखन कार्य करते हुए व्यतीत हुआ। निश्चित तौर पर ऐसा माना जाता है कि प्लेटो के मृत्यु के समय उनकी आयु 80 वर्ष के लगभग थी।

प्लेटो के अनुसार उदात्त झूठ क्या है

प्लेटो के अनुसार उदात्त झूठ वह होता है जब लोक कल्याणकारी कार्यों हेतु झूठ का सहारा लिया जाता है। इसके अलावा प्लेटो का मानना था कि धरती या धातु से जुड़ा हुआ कोई भी मिथक उदात्त झूठ कहलाता है। प्लेटो कहते थे कि एक व्यक्ति अपनी क्षमताओं को बनाए रखने के लिए झूठ का सहारा लेता है जिससे शासक वर्ग बेहद प्रभावित होता है।

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