Preserved ancient Memorial and heritage in Uttarakhand

उत्तराखंड में संरक्षित प्राचीन स्मारक और धरोहर – देहरादून मंडल द्वारा

Table of Contents

11. बद्रीनाथ मन्दिर समूह द्वाराहाट जनपद – अल्मोड़ा

यह समूह तीन मन्दिरों को मिलाकर बना है, जिनमें प्रमुख मन्दिर भगवान विष्णु को समर्पित है जिनकी यहां पर बद्रीनाथ के रूप में पूजा होती है। गर्भगृह, अंतराल एवं मण्डप युक्त पूर्वाभिमुखी यह मन्दिर में वर्तमान में मंडप विहीन है। सामने से कुंभ-कलश और कपोट पटिका एवं उसके ऊपर शिखर दिखायी देता है। शिखर में भूमि आमलक और कलश है। यहां स्थित काले पत्थर की विष्णु की मूर्ति (जिस पर सम्वत 1105 अंकित है) की पूजा होती है। प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर मन्दिर निर्माण सन् 1048 शताब्दी ई0 निर्धारित की गई है। परिसर में दो और लघु देवालय भी हैं जिनमें एक देवी लक्ष्मी को समर्पित है तथा दूसरा मूर्ति विहीन है।

12. वनदेव मन्दिर, द्वाराहाट, जनपद – अल्मोड़ा

स्थानीय नदी खीर गंगा के तट पर निर्मित यह मन्दिर मध्य हिमालय के प्राचीन विकसित फांसना शैली के मन्दिरों में से एक है। क्षैतिज योजना में आयाताकार इस मन्दिर का शिखर भाग क्रमशः घटते हुए क्रम में ऊपर की ओर बढ़ता है जिसे पीड़ा देवल शैली के नाम से भी जाना जाता है।

13. गुर्जर देव मन्दिर द्वाराहाट जनपद – अल्मोड़ा

13वीं शताब्दी ई0 में निर्मित यह मन्दिर मध्य हिमालय में नागर शैली मन्दिरों का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। पंचायतन शैली में निर्मित यह मन्दिर एक ऊंचे चबूतरे पर स्थित है जिसका अधिष्ठान एवं जंघा भाग देव प्रतिमाओं, नर्तकों एवं पशु प्रतिमाओं से अलंकृत है। इस मन्दिर के स्थापत्य व ध्वसांवशेषों से ज्ञात होता है कि यह अत्यन्त भव्य मन्दिर था।

14. कचहरी मन्दिर समूह, द्वाराहाट, जनपद – अल्मोड़ा

इस मन्दिर समूह में कुल 12 छोटे-बड़े मन्दिर हैं जिनका निर्माण 11-13वीं शताब्दी ई0 के मध्य हुआ। यह सभी मन्दिर नागर शैली में निर्मित हैं जो गर्भगृह, अन्तराल तथा अर्धमण्डप युक्त हैं। वर्तमान में सभी मन्दिर प्रतिमा विहीन हैं।

15. कुटुम्बरी मन्दिर द्वाराहाट, जनपद – अल्मोड़ा

वर्तमान में यह मन्दिर अस्तित्व में नहीं है। यह मन्दिर पहाड़ की ऊंची ढलान पर स्थित था जो वर्तमान में पूरी तरह से समाप्त हो चुका है परन्तु मन्दिर के वास्तु संरचनाओं के अवशेष निकटवर्ती घरों में किए गये निर्माणों में यदा-कदा दृष्टिगोचर होते हैं। देहरादून मण्डल द्वारा सन् 2000 में किए गए एक विस्तृत सर्वेक्षण से ज्ञात हुआ कि सन् 1960 तक कुतुम्बरी मन्दिर अस्तित्व में था। प्राप्त पुराने छाया चित्र से ज्ञात हुआ कि यहां पर रेखा शिखर शैली का अति जीर्ण-शीर्ण अवस्था का मन्दिर था, जो कि सन् 1960 के पश्चात ध्वस्त हो गया। सम्भवतः वास्तु के नमूने गांव वालों द्वारा अपने निर्माण के उपयोग के लिये ले जाये गये।

16. मनियान मन्दिर समूह, द्वाराहाट, जनपद – अल्मोड़ा

पूर्व में यह सात मन्दिरों का समूह था लेकिन कुछ समय पूर्व विभाग द्वारा करायी गयी वैज्ञानिक सफाई के फलस्वरूप दो अन्य मन्दिरों के अवशेष प्रकाश में आये हैं, इस प्रकार यह 9 मन्दिरों का समूह है। इनमें से चार मन्दिर ऐसे निर्मित हैं कि वो चारों मिलकर एक जुड़ा हुआ दृश्य प्रस्तुत करते हैं जिसके आगे एक प्रांगण है। तीन देवालयों के सरदल पर जैन तीर्थकारों की मूर्तियां इस बात की ओर इंगित करती हैं कि यह मन्दिर जैन धर्म से सम्बन्धित है जो सामान्यतः इस क्षेत्र में नहीं पाये जाते हैं, शेष देवालय हिन्दू देवी-देवताओं को समर्पित हैं। यह मन्दिर समूह लगभग 11-12वीं शताब्दी ई0 में निर्मित हुआ।

17. मृत्युजंय मन्दिर समूह, द्वाराहाट, जनपद – अल्मोड़ा

प्रमुख मन्दिर भगवान शिव-मृत्युजंय (मृत्यु पर विजय पाने वाला) को समर्पित है। नागर शिखर शैली में निर्मित पूर्वाभिमुखी यह मन्दिर त्रि-रथ योजना में निर्मित है, जिसमें गर्भगृह, अंतराल और मंडप युक्त है। कालक्रम के अनुसार यह मन्दिर 11-12वीं शताब्दी का है। मन्दिर परिसर में स्थित दो अन्य मन्दिर जो क्रमशः भैरव को समर्पित है दूसरा लघु देवालय जीर्ण-शीर्ण अवस्था है।

18. रतनदेव मन्दिर समूह, द्वाराहाट, जनपद – अल्मोड़ा

प्रारम्भ में रतनदेव मन्दिर नौ मन्दिरों का समूह था। वर्तमान में सिर्फ 6 मन्दिर बचे हैं इनमें से तीन मन्दिर एक सामूहिक चबूतरे पर स्थित हैं जिनके आगे उत्तरमुखी मंडप है जो सम्भवत् ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश को समर्पित थे। अन्य देवालयों में एक पश्चिम तथा दो पूरब में एक दूसरे को मुख करके अन्य हिन्दू देवी-देवताओं को समर्पित हैं। यह मन्दिर 11-13वीं शताब्दी में निर्मित किए गये।

बागेश्वर जनपद में स्थित संरक्षित प्राचीन स्मारक

1. मन्दिर समूह, बैजनाथ, जनपद – बागेश्वर

गोमती नदी के बायें तट पर स्थित यह मंदिर समूह उत्तराखण्ड के इतिहास में प्रमुख स्थान रखता है। इस क्षेत्र की पहचान प्राचीन कत्यूर घाटी से की जाती है। यह मान्यता है कि कत्यूर शासकों द्वारा जिला चमोली के जोशीमठ से लगभग 8वीं0 शताब्दी ई0 में अपनी राजधानी यहां स्थानान्तरित की गयी। परिसर का मुख्य मन्दिर भगवान शिव को समर्पित है जो मूल रूप में नागर शैली में निर्मित है जिसका शिखर भाग ध्वस्त होने से वर्तमान में धातु की चादरों से अच्छादित है। इसके अतिरिक्त यहाँ 17 मन्दिर विभिन्न देवी देवताओं को समर्पित हैं। इन मन्दिरों का निर्माण 9-12वीं शताब्दी ई0 के मध्य कत्यूरी राजाओं द्वारा कराया गया।

2. लक्ष्मी नारायण, राक्षस देवल एवं सत्य नारायण मन्दिर तल्लीहाट, जनपद – बागेश्वर

यह मन्दिर बैजनाथ मन्दिर समूह से पश्चिम दिशा में तल्लीहाट गांव में स्थित है। लक्ष्मी नारायण मन्दिर एक चारदीवारी के अन्दर स्थित है। मन्दिर में रेखाशैली का गर्भगृह तथा उसके पीछे पिरामिड के आकार की छत वाला मंडप है। इस मन्दिर की निर्माण शैली उड़ीसा के मन्दिरों के सामान है। मन्दिर का द्वार पर शक 1214 (1292 शताब्दी ई0) का अभिलेख अंकित है।

राक्षस देवल मन्दिर को रक्षक देव भी कहा जाता है। चारदीवारी के भीतर स्थित इसमें रेखा प्रकार का गर्भगृह, उसके पीछे पिरामिडनुमा शैली का मंडप है। मुख्य मन्दिर का शिखर आमलक युक्त है। अलंकरणों के अभाव में और स्थापत्य कला के विश्लेषण पर यह मन्दिर लक्ष्मी नारायण मन्दिर से कुछ समय पूर्व के प्रतीत होते हैं।

गांव से थोडी दूरी पर सत्यनारायण मन्दिर स्थित है। मौजूद स्थापत्य में शिखर एवं गर्भगृह के पत्थर विलुप्त हैं, हालांकि प्राप्त मूर्तिशिल्प और शिल्प के टुकड़ों से ज्ञात होता है कि यह भगवान विष्णु का विशाल मन्दिर रहा होगा।

Source – भारतीय पुरातत्तव सर्वेक्षण देहरादून मंडल (उत्तराखण्ड)