Preserved ancient Memorial and heritage in Uttarakhand

उत्तराखंड में संरक्षित प्राचीन स्मारक और धरोहर – देहरादून मंडल द्वारा

Table of Contents

चमोली जनपद में स्थित संरक्षित प्राचीन स्मारक

1. रूद्रनाथ (गोपीनाथ) मन्दिर गोपेश्वर, जनपद – चमोली

ऊखीमठ चमोली मार्ग पर चमोली से 10 किमी0 दूर स्थित गोपेश्वर प्राचीन काल में एक महत्वपूर्ण स्थल था। मुख्य मन्दिर परिसर से प्राप्त 21 विभिन्न आकारों की आमलकों की और अधिक संख्या में अन्य मन्दिरों की मौजूदगी के संकेत देती हैं। हालांकि वर्तमान में केवल कुछ ही मन्दिर बचे हैं। भगवान शिव को समर्पित यहां का मुख्य मन्दिर रूद्रनाथ/गोपीनाथ नाम से विख्यात है। यह मंदिर नागर शैली में निर्मित मन्दिर है। इसकी वास्तु योजना त्रि-रथ है तथा सामने से देखने पर इसके शिखर पर चारों तरफ भद्रमुख चैत्य अलंकरण सजे हुये हैं। ऊंची सुकानासा की चन्द्रशिला पर शिव नटराज स्वरूप में दिखाये गये हैं। शैली में यह मंदिर जागेश्वर के मृत्युंजय, मन्दिर के सामान हैं जिसके कारण इन्हें भी 8वीं शताब्दी ई0 में दौरान निर्मित माना जा सकता है। मन्दिर का मण्डप बाद में जोड़ा गया हैं इसके अतिरिक्त यहां तीन लघु देवालय भी हैं जिनमें से एक बलभी शैली में निर्मित 10वीं शताब्दी ई0 का है। इनके साथ-साथ दो अन्य भवन इमारतें भी हैं जिनको रावल निवास कहा जाता है।

2. त्रिशूल (गोपेश्वर) जनपद – चमोली

मन्दिर परिसर में स्थित विशाल धातु निर्मित त्रिशूल ऐतिहासिक एवं पुरातात्त्विक दृष्‍टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं जिसमें विभिन्न कालों के अभिलेख उत्कीर्ण हैं।

सबसे प्राचीन अभिलेख छठी शताब्दी ई0 में गणपतिनाग द्वारा उत्कीर्ण कराया जिसमें यहां रूद्र के मन्दिर की स्थापना का वर्णन मिलता है। 1119 ई0 के एक अन्य अभिलेख में नेपाल के राजा अशोक चल्ल द्वारा उक्त त्रिशूल की पुर्नस्थापना करने का उल्लेख मिलता है। मन्दिर परिसर से प्राप्त लगभग पांचवी-छठी शताब्दी ई0 में उत्कीर्ण मूर्ति शिल्प तत्कालीन समय में इस स्थल के धार्मिक महत्व को इंगित करता है।

3. दो प्राचीन मन्दिर, पाण्डुकेश्वर, जनपद – चमोली

बद्रीनाथ मार्ग पर जोशीमठ से 20 किमी0 दूरी पर स्थित पाण्डुकेश्वर में भगवान विष्णु को समर्पित दो मन्दिर योग ध्यान बद्री और वासुदेव बद्री स्थित हैं। योगध्यान बद्री मन्दिर में गर्भगृह, अंतराल तथा मंडप है। दोनों गर्भगृह तथा मंडप चौरस(चौकोर) है।

दूसरा मन्दिर वासुदेव मन्दिर रेखा शिखर शैली का है। यह मंदिर 9 -10वीं शताब्दी ईसवी के हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण देहरादून मण्डल ने कुछ समय पूर्व परिसर में एक तीसरे मन्दिर खोजा है तथा उसका संरक्षण किया गया है। स्थानीय लोग इसको लक्ष्मीनारायण मन्दिर के नाम से जानते हैं।

4. प्राचीन मन्दिरों के अवशेष-आदिबद्री, जनपद चमोली

द्वाराहाट कर्णप्रयाग मार्ग पर स्थित इस मन्दिर समूह को आदिबद्री धाम कहा गया है। मान्यता के अनुसार यहां 16 मन्दिर थे लेकिन वर्तमान में 14 शेष बचे है।

मुख्य मन्दिर भगवान विष्णु को समर्पित है जबकि शेष अन्य मन्दिर लक्ष्मीनारायण, अन्नपूर्णा, सूर्य, सत्यनारायण, गणेश, शिव, गरूड़, दुर्गा, जानकी को समर्पित हैं। वास्तुशैली के आधार पर इन मंदिरों का निर्माण 8-12वीं शताब्दी ईसवीं के मध्य का है।

5. चांदपुर गढ़ किला, जनपद – चमोली

ऐसी मान्यता है कि यह राजा कनकपाल का किला था जो कि वर्तमान गढ़वाल राजवंश के संस्थापक था तथा जिनके उत्तराधिकारी अजय पाल ने गढ़वाल राज्य को मजबूत किया। यह किला सड़क से 100 मीटर की ऊंचाई पर एक टीले की चोटी पर स्थित है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा करवायी गयी वैज्ञानिक तरीके की सफाई ने चोटी पर किले के अवशेष तथा ढाल पर आवासीय संरचनाएं प्रकाश में आयी। यह दुर्ग बहुमंजिला स्थापत्य का उदाहरण है जिसमें सहायकों के कमरों की व्यवस्था की गयी है। इसके अलावा काम करने की जगह, पानी संग्रहण हेतु गोल आकार का कुंआ जिसमें चूना का लेप किया गया है, आदि प्राप्त हुए हैं। इसका निर्माण काल 14वीं शताब्दी ईसवीं का माना जाता है।

6. प्रस्तर शिलालेख-मण्डल जनपद – चमोली

मण्डल ग्राम से 6 कि0मी0 दूर सती अनुसूइया मन्दिर मार्ग पर स्थित है। उत्तर भारतीय ब्राह्मी लिपि तथा संस्कृत भाषा के उत्कीर्ण लेख में सर्ववर्मन नामक राजा द्वारा जलाशय के निर्माण हेतु निर्देश देने का उल्लेख मिलता है।

चम्पावत जनपद में स्थित संरक्षित प्राचीन स्मारक

1. बालेश्वर मन्दिर समूह, जनपद – चम्पावत

यह मन्दिर समूह चन्द्र राजाओं द्वारा 14वीं शताब्दी ईसवी में निर्मित किये गये। मन्दिर लेटिना शिखर और सेकरी शिखर शैली के हैं। इनकी विशेषता यह है कि परिसर के दो मुखी मन्दिर दो मूल प्रसादों (गर्भगृहों) जिनमें प्रत्येक के आगे मंडप से जुड़ें है। सम्पूर्ण अलंकृत मन्दिर परिसर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में तथा स्थापत्य के नमूने ध्वंसावशेष अवस्था में है। पत्थर की काफी मूर्तियां अभी भी स्मारक स्थल पर उपलब्ध है दोनों मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।

2. कोतवाली चबूतरा, जनपद – चम्पावत

यह पत्थर का चौकोर चबूतरा है जिसकी लम्बाई 2.75 मी0 तथा ऊंचाई 0.83मी0 है। स्थानीय लोग इसे चोमरा या चबूतरा कहते हैं। सम्पूर्ण मध्य हिमालय क्षेत्र में इस तरह के स्थापत्य के नमूने मिलते हैं। प्राप्त साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि ये चबूतरा काफी अलंकृत था तथा इसके ऊपर एक भव्य छतरी रही होगी। ऐसे चबूतरों का उपयोग किस लिए होता था, ज्ञात नहीं है। हालांकि स्थानीय मान्यता है कि इस स्थान पर राजा बैठता होगा तथा न्याय करता होगा। ऐसे चबूतरे सम्पूर्ण उत्तराखण्ड में प्रकाश में आते हैं।

3. बालेश्वर मन्दिर के निकट स्थित नौला, जनपद – चम्पावत

यह इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण जल संरचना है जो मन्दिर के दक्षिणी भाग में स्थित हैं जो चौकोर रूप में निर्मित धरातल के नीचे स्थित है, जिसमें धरती से निकलता हुआ पानी एकत्रित होता है। नौले के दो तरफ जमीन से थोड़ी ऊपर तक एक दीवार बनायी गयी है ताकि वर्षाकाल का पानी अन्दर न आ सके। सम्पूर्ण संरचना अलंकृत पत्थर से निर्मित है। इस प्रकार के स्थापत्य सम्पूर्ण मध्य हिमालय में प्राप्त होते हैं।

Source – भारतीय पुरातत्तव सर्वेक्षण देहरादून मंडल (उत्तराखण्ड)