Preserved ancient Memorial and heritage in Uttarakhand

उत्तराखंड में संरक्षित प्राचीन स्मारक और धरोहर – देहरादून मंडल द्वारा

Table of Contents

देहरादून जनपद में स्थित संरक्षित प्राचीन स्मारक

1. अशोक शिलालेख-कालसी जनपद – देहरादून

मगध के मौर्य वंशी सम्राट अशोक (273 ई0पू0 232 ई0पू0) ने अपनी चैदह राजाज्ञाओं को इस शिलालेख पर उत्कीर्ण करवाया जिसे जाॅन फाॅरेस्ट द्वारा सन् 1860 में प्रकाश में लाया गया। इस अभिलेख की भाषा प्राकृत तथा लिपि ब्राह्मी है। यह अभिलेख बौद्ध-धर्म के मुख्य सिद्धान्तों का संग्रह है जिसमे अहिंसा पर सबसे अधिक बल दिया गया है। सम्राट अशोक ने इस राजाज्ञा में नैतिक तथा मानवीय सिद्धान्तों का वर्णन किया है, यथा-जीव हत्या निशेध, जन साधारण के लिए चिकित्सा व्यवस्था, कुएं खुदवाने, वृक्ष लगवाने, धर्म प्रचार करने, माता-पिता तथा गुरू का सम्मान करने, सहनशीलता तथा दयालुता आदि श्रेष्ठ मूल्यों का प्रचार करने का निर्देश दिया है। लेख के अंत में पांच यवन राजाओं का भी वर्णन किया गया है।

2. शिव मन्दिर लाखामण्डल, जनपद – देहरादून

लाक्षेश्वर के नाम से विख्यात, शिव को समर्पित यह मन्दिर 12-13वीं शताब्दी में निर्मत नागर शैली का मन्दिर है यहां के अभिलेखों में छगलेश एवं राजकुमारी ईश्वरा की प्रशस्ति (5वीं-6वीं शताब्दी ईसवीं) का उल्लेख मिलता है जिससे ज्ञात होता है कि इस स्थान के पुरावशेष वर्तमान मन्दिर से पूर्व काल के है तथा मंदिर की प्राचीनता 5-6वीं श0 ई0 तक जाती है। राजकुमारी ईश्वरा की प्रशस्ति से भी यहां एक शिव मन्दिर के निर्माण की पुष्टि होती है।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा की गयी वैज्ञानिक सफाई में काफी बड़ी संख्या में वास्तु संरचनाओं के खण्ड प्राप्त हुये हैं जिनमें 5-6वीं शताब्दी की सपाट छत के अवशेष प्रमुख उल्लेखनीय है। यह खोज मध्य हिमालय के मन्दिर संचनाओं की प्राचीनता को नया आयाम प्रदान करती हैं।

3. महासू मन्दिर, हनोल जनपद – देहरादून

राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक महासू देवता का मन्दिर जनपद देहरादून के हनोल में स्थित है। महासू देवता के मंदिर न सिर्फ देहरादून जनपद के जौनसार बावर तक सीमित हैं अपितु उससे कहीं आगे हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जनपद शिमला आदि में भी अवस्थित हैं। ये चार देवता -महासू, बासिक, पवासी और चाल्दा का क्षेत्र कहा जाता है जिनको संयुक्त रूप से महासू कहा जाता है। इनमें प्रथम तीन मन्दिरों में रहते हैं जबकि चाल्दा घुमक्कड प्रवृति का होने के कारण अलग-अलग स्थानों पर अपनी डोली में घूमता रहता है।

हनोल स्थित महासू मन्दिर पत्थर और लकड़ी के समायोजन का दुर्लभ उदाहरण है। मन्दिर का गर्भ पत्थर से निर्मित रेखा शिखर शैली का है। हालांकि ग्रीवा के ऊपर के शिखर को बहुत सुन्दर और भव्य लकड़ी की संरचना से ढका गया है। सम्पूर्ण लकड़ी की संरचना को ऊंची ढालदार स्लेट पत्थर की छत से ढका गया है। छज्जे को काफी भव्यता से लकड़ी की घंटी और लटकन से सजाया गया है। पुरातत्व की दृष्टि से असली मूल प्रसाद कहीं ज्यादा प्राचीन है जिसका निर्माण (9-10वीं शताब्दी) के मध्य हुआ होगा। मंडप और मुख मंडप बाद में जोड़़े गये तथा कालांतर में कई बार बदले गये

4. प्राचीन स्थल जगत ग्राम, बाड़वाला जनपद – देहरादून

इस पुरास्थल का उत्खनन भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण द्वारा सन् 1952-54 में कराया गया। उत्खनन में पकी ईंटों से निर्मित यज्ञ वेदिकाओं के अवशेष के साथ ही इंटों पर ब्राह्मी लिपि तथा संस्कृत भाषा के अभिलेख प्राप्त हुए हैं जिनसे तीसरी शताब्दी ई0 में राजा शीलवर्मन द्वारा इस स्थल पर 4 अश्वमेध यज्ञ करने का वर्णन मिलता है।

5. उत्खनित स्थल, वीरभद्र ऋषिकेश जनपद – देहरादून

इस पुरास्थल का उत्खनन भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण द्वारा सन् 1973 से 1975 के मध्य कराया गया। उत्खनन में तीन सांस्कृतिक अनुक्रम प्रकाश में आये जिनमे प्रारम्भिक काल प्रथम शताब्दी ई0 से तृतीय शताब्दी ई0, मध्य काल 4 से 5वीं शताब्दी ई0 तथा तृतीय व अंतिम काल 7वीं से 8वीं शताब्दी ई0 रखा जाता है। पकी मिट्टी की ईंटों से निर्मित अवशेषों के अतिरिक्त प्रथम शताब्दी ई0 में निर्मित शिव मन्दिर के अवशेष मुख्य आर्कषण का केन्द्र हैं।

6. कलिंगा (खलंगा) स्मारक – सहस्त्रधारा रोड़, देहरादून

यह स्मारक अंगे्रजों व गोरखाओं के मध्य हुए 1814 के युद्धोपरांत विजयी अंग्रेज सेना ने अपने नायक जनरल ग्लेस्पी, अन्य सैनिकों और अपने प्रतिद्वंदी गोरखा सेनानायक बलभद्र थापा को श्रद्धांजली देते हुए बनाया। 1814 में नालापानी का युद्ध (देहरादून) गोरखा फौज जिसका नेतृत्व बलभद्र थापा कर रहे थे एवं जनरल ग्लेप्सी जो अंग्रेज सेना की कमान संभाले थे, के बीच हुआ। इस युद्ध में अंग्रेजों के खिलाफ गोरखा सैनिकों के अलावा बच्चों और महिलाओं ने भी गोरखा सेना का साथ दिया। जनरल ग्लेस्पी 13 अक्टूबर 1814 को अन्य सहयोगी सैनिकों के साथ वीरगति को प्राप्त हुये। लगातार हो रहे अंग्रेजी आक्रमण से आखिरकार गोरखा जनरल बलभद्र थापा को सेना सहित नालापानी का किला छोड़कर जाना पड़ा।

हरिद्वार जनपद में स्थित संरक्षित प्राचीन स्मारक

1. अंग्रेजों का कब्रिस्तान, रूड़की, जनपद – हरिद्वार

इस परिसर में 19वीं शताब्दी ई0 से 20वीं शताब्दी ई0 तक की विभिन्न आकार-प्रकार व स्थापत्य की अनेक कब्रें विद्यमान हैं, जिनमें जनरल हेरोल्ड विलियम की कब्र भी सम्मिलित है। इन कब्रों के शीर्ष विभिन्न प्रकार के अलंकृत पत्थरों से निर्मित हैं जिन पर समाधिस्थ व्यक्तियों का संक्षिप्त परिचय आंग्ल भाषा की विभिन्न शैलियों में लिखा गया है। गौथिक स्थापत्य शैली में निर्मित प्रवेश द्वार मुख्य आकर्षण का केन्द्र है।

नैनीताल जनपद में स्थित संरक्षित प्राचीन स्मारक

1. प्राचीन स्मारकों के ध्वंसावशेष, वैराट पट्टन, ढिकुली, जनपद – नैनीताल

गोविषाणा की प्राचीन राजधानी वैराट पट्टन के पुरावशेष ढिकुली में जिम कार्बेट राष्ट्रीय आरक्षित वन क्षेत्र में फैले हुये हैं। 7वीं शताब्दी ई0 में चीनी यात्री ह्वेनसांग यहां आया था, उसने भी अपने यात्रा विवरण में इस स्थल का उल्लेख किया है। घने जंगल होने के कारण इस पुरास्थल पर आसानी नहीं पहुंचा जा सकता। लेकिन पूर्व में प्रकाश में आए पत्थरों से निर्मित कुछ चबूतरों के अवशेष, पत्थर के स्तंभ के नमूने, शेर व अन्य प्रस्तर मूर्तियां, अलंकृत स्तम्भ के अवशेष वर्तमान मन्दिर के निकट पहाड़ की ढाल पर प्राप्त हुये। चूंकि यह स्थल मध्य हिमालय पहाडि़यों के द्वार पर अथवा तराई क्षेत्र में स्थित है अतः उस समय व्यापारियों के लिए ठहरने में उपयोग होता होगा इसी कारणवश इसका नाम पट्टन पड़ा।

2. प्राचीन मन्दिर सीताबनी, जनपद – नैनीताल

मन्दिर जिस स्थान पर बना है इस जगह ऋषि बाल्मीकि की कुटिया बतायी जाती है। कई आमलक पत्थर, सिर विहीन नृत्य करती हुई गणेश की खण्डित मूर्ति, द्वार शाखायें , अलंकृत स्तम्भ एवं आमलक वर्तमान मन्दिर के आस-पास से प्रकाश में आने से इसके पुरास्थल होने के स्वतः प्रमाण देते हैं, हालांकि यहाँ निर्मित वर्तमान सीता मन्दिर काफी बाद के काल में निर्मित हुआ।

Source – भारतीय पुरातत्तव सर्वेक्षण देहरादून मंडल (उत्तराखण्ड)