राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 और 1986 में अंतर

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 और 1986 में अंतर

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राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 (National Education Policy 1968)

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 के अंतर्गत पूरे देश में एक ही प्रकार की शिक्षा पद्धति का पालन करने के निर्देश दिए गए थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात यह राष्ट्रीय शिक्षा के विकास के दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण पहल थी जिसका उद्देश्य शिक्षा नीति को राष्ट्रीय रूप से स्थापित करना था। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का सुझाव केंद्र सरकार के सम्मुख कोठारी आयोग ने रखा था। इस नीति के अंतर्गत शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक परिवर्तन करने एवं शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ावा देने पर विशेष बल दिया गया था। राष्ट्रीय शिक्षा नीति लगभग 17 आधारभूत सिद्धांतों पर आधारित है। केंद्र सरकार का यह मानना था कि इस नीति को स्थापित करने के पश्चात पूरे देश में शिक्षा के स्तर में वृद्धि होगी।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 की समीक्षा कोठारी आयोग ने वर्ष 1961-1966 के मध्य केंद्र सरकार के सम्मुख प्रस्तुत की थी। कोठारी आयोग द्वारा शिक्षा नीति के उपलक्ष्य में यह समीक्षा 9 पृष्ठों में प्रस्तुत की गई थी। इसके अलावा इस शिक्षा नीति में 10 से 14 वर्षीय विद्यार्थियों के लिए शिक्षा की आधारभूत पाठ्यचर्या का निर्माण करने पर अधिक बल दिया गया था।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 के अध्यक्ष कौन थे ? (Who was the chairman of National Education Policy 1968?)

वर्ष 1952 में लक्ष्मण स्वामी मुदलियार की अध्यक्षता में गठित माध्यमिक शिक्षा आयोग एवं वर्ष 1964 में गठित दौलत सिंह कोठारी की अध्यक्षता में शिक्षा आयोग ने वर्ष 1968 में एक नई शिक्षा नीति का प्रस्ताव रखा था जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय शिक्षा नीति को स्थापित करके शिक्षा व्यवस्था को विकसित करना था। माना जाता है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 में सुधार करने एवं इसकी योजनाओं का विकास करने के लिए इंदिरा गांधी ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 के मूल सिद्धांत (Basic principles of National Education Policy 1968)

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 के सिद्धांत कुछ इस प्रकार हैं:-

  • इसमें मुख्य रूप से पाठ्यक्रम एवं पाठ्यचर्या की गुणवत्ता में सुधार करने की दिशा में कार्य किया गया था एवं इसमें प्रारंभिक व माध्यमिक शिक्षा हेतु उपयोग में लाई जाने वाली पुस्तकों का मूल्य कम से कम रखने की मांग की गई थी।
  • इस प्रकार की शिक्षा नीति में कृषि एवं उद्योगों के क्षेत्र से संबंधित शिक्षा प्रदान करने पर विशेष बल दिया गया था।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 में परीक्षा प्रणाली को वैद्य एवं विश्वसनीय बनाने की दिशा में कार्य किया गया था।
  • इस शिक्षा नीति में आध्यात्मिक शिक्षा का तेजी से विकास करने की मांग रखी गई थी जिसकी सहायता से वंचित वर्गों तक अध्यात्मिक ज्ञान को पहुंचाया जा सके।
  • इस प्रकार की शिक्षा नीति में विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले छात्रों को पर्याप्त सुविधा प्रदान करने का प्रस्ताव किया गया था।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 के अंतर्गत अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षा का अवसर प्रदान करने पर अधिक बल दिया गया था।
  • इस शिक्षा नीति में पाठ्यक्रम के साथ-साथ खेलकूद की उचित व्यवस्था करने की भी बात की गई थी।
  • इस शिक्षा नीति में त्रिभाषा सूत्र को लागू करने पर जोर दिया गया था।
  • इस प्रकार की शिक्षा नीति में अनुसंधान एवं विज्ञान शिक्षा को अधिक महत्व दिया गया था।

पढ़ें – पाठ्यक्रम और पाठ्यचर्या में अंतर

 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 (National Education Policy 1986)

भारतीय संविधान के अंतर्गत प्राथमिक स्तर के सभी विद्यार्थियों को अनिवार्य रूप से नि:शुल्क शिक्षा की व्यवस्था करने का प्रावधान किया गया है। इसे संपूर्ण देश में मई, 1986 में नवीन राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत लागू किया गया था जिसकी स्थिरता वर्तमान समय तक समान रूप से बनी हुई है। इस प्रकार की शिक्षा नीति में राष्ट्रीय विकास के प्रति वचनबद्ध, चरित्रवान एवं कुशल युवक-युवतियों को शिक्षा के आधार पर तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है। इसके अलावा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के अंतर्गत देश के सभी नागरिकों को एक समान शिक्षा का अवसर प्रदान करने पर भी अधिक बल दिया गया है। इसमें शिक्षा पद्धति का माध्यम मातृभाषा एवं क्षेत्रीय भाषा को बनाया गया है। यह मुख्य रूप से शिक्षा प्रणाली को प्राथमिक शिक्षा, उच्च प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा, उच्च माध्यमिक शिक्षा एवं उच्च शिक्षा के विभिन्न स्तरों में विभाजित करती है जिसके कारण समय-समय पर शिक्षा के स्तर को बेहतर बनाने के लिए पाठ्यक्रम एवं पाठ्यचर्या का नव निर्माण किया जाता है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 की समीक्षा कुल 12 भागों में विभाजित की गई है जिसमें मुख्य रूप से शिक्षा से संबंधित कई योजनाओं की घोषणा की गई है। इस प्रकार की शिक्षा नीति का उद्देश्य उच्च शिक्षा के छात्रों को आर्थिक रूप से सहायता प्रदान करना एवं शिक्षा पद्धति में सुधार करना होता है। यह शिक्षा नीति देश के सभी विद्यार्थियों के जीवन को सामाजिक जीवन से जोड़ने का कार्य करती है जिससे वह समाज की वास्तविक आवश्यकताओं का अध्ययन करके एक बेहतर जीवन की स्थापना कर सकें। इसके अलावा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में देश के लगभग सभी छात्रों को व्यवसायिक एवं तकनीकी शिक्षा देने का भी प्रावधान किया गया है जिसकी सहायता से वह भावी जीवन के लिए पूर्ण रूप से तैयार हो सकें।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के अध्यक्ष कौन थे? (Who was the chairman of National Education Policy 1986?)

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 का गठन पद्म विभूषण पुरस्कार से पुरस्कृत श्री कृष्णस्वामी कस्तूरीरंगन के अध्यक्षता में किया गया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मसौदा तैयार करने हेतु समिति के द्वारा यह महत्वपूर्ण निर्णय वर्ष 1986 में लिया गया था। इस शिक्षा नीति को वर्ष 1992 में संशोधित किया गया था।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के मूल सिद्धांत (Basic principles of National Education Policy 1986)

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के मूल सिद्धांत कुछ इस प्रकार हैं:-

  • इस प्रकार की शिक्षा नीति में शैक्षिक ढांचे को 10+2+3 संपूर्ण देश में लागू करने का प्रस्ताव किया गया था। जिसमें प्रथम 5 वर्ष के प्राथमिक स्तर की शिक्षा के पश्चात 3 वर्ष उच्च प्राथमिक स्तर, 2 वर्ष माध्यमिक स्तर, 2 वर्ष इंटरमीडिएट स्तर एवं 3 वर्ष स्थानक स्तर का प्रावधान किया गया है।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के अंतर्गत शिक्षा प्रणाली की संपूर्ण जिम्मेदारी केंद्र सरकार, राज्य सरकार एवं जिले के मध्य विभाजित की गई है।
  • इस शिक्षा नीति में देश की बढ़ती जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए सभी नागरिकों को नि:शुल्क शिक्षा प्रदान करने का प्रावधान एवं अवसर दिया गया है जिसके माध्यम से निम्न वर्ग के छात्रों की बुनियादी शिक्षा प्रबल हो सके।
  • इस प्रकार की शिक्षा नीति में विशेष रुप से विद्यार्थियों के शारीरिक, मानसिक एवं व्यवहारिक क्षेत्र को प्राथमिक शिक्षा के अंतर्गत मुख्य स्थान प्रदान किया गया है जिसके द्वारा विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास संभव हो सके।
  • इस शिक्षा नीति में मुख्य रूप से प्राथमिक शिक्षा के महत्व को बढ़ावा देते हुए उसे राष्ट्रीय रूप से स्वीकार करने पर बल दिया गया है। इसके अलावा इसमें छात्रों को बेहतर शिक्षा प्रदान करने हेतु ब्लैक बोर्ड योजना का निर्माण भी किया गया है जिससे देश के लगभग 90% छात्रों को इस योजना का लाभ मिलता है।

 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 एवं 1986 में अंतर (Difference between National Education Policy 1968 and 1986 in hindi)

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 एवं राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में निम्नलिखित अंतर देखे जा सकते हैं:-

  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 के अंतर्गत 14 वर्ष तक की आयु के विद्यार्थियों के लिए शिक्षा की अनिवार्यता पर अधिक बल दिया गया है जबकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के अंतर्गत विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच असमानताओं को दूर करने पर अधिक बल दिया गया है।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 का निर्माण शिक्षा के स्तर को बेहतर करने एवं शिक्षा व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए किया गया है जबकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 का निर्माण कृषि क्षेत्र संबंधित शिक्षा एवं व्यवसायिक शिक्षा पर बल देने के लिए किया गया है।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 मुख्य रूप से पाठ्यक्रम पर केंद्रित होता है जबकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 पाठ्यक्रम के साथ-साथ पाठ्यचर्या पर भी केंद्रित होता है जो विद्यार्थियों की सुलभता को सुनिश्चित करता है।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 देश के सभी नागरिकों को एक समान रूप से शिक्षा प्रदान करने का अवसर देता है जबकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 निम्न वर्गीय विद्यार्थियों को नि:शुल्क शिक्षा प्रदान करने का अवसर देता है।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 के अंतर्गत परीक्षा प्रणाली को अधिक विश्वसनीय बनाने का कार्य किया गया है जबकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 विद्यार्थियों के मूल्यांकन को बेहतर बनाने का कार्य करता है।