सामंतवाद क्या है - विशेषताएं, उदय के कारण एवं परिणाम

सामंतवाद क्या है – विशेषताएं, उदय के कारण एवं परिणाम

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सामंतवाद क्या है

जिस शासन व्यवस्था में राज्य की भूमि बड़े-बड़े जमींदारों के अधिकार या हक में रहती हो उसे सामंतवाद (feudalism) कहते हैं। सामंतवाद एक व्यवस्था प्रणाली थी, जिसके अंतर्गत अशासकीय व्यक्तियों द्वारा राजनीतिक शक्ति का प्रयोग किया जाता था। सामंतवाद में सामंतों की कई श्रेणियां थी जिनके शीर्ष स्थान पर राजा एवं निचले स्थान पर दास या किसान हुआ करते थे। इसी क्रम में राजा के नीचे विभिन्न कोटि के सामंत होते थे जो असल में अधीनस्थ लोगों का संगठन हुआ करता था। सामंतवाद के अंतर्गत राजा को समस्त भूमि का स्वामी माना जाता था। सभी सामंतगण राजा के प्रति स्वामिभक्ति करके राजा से भूमि प्राप्त करते थे। इसके अलावा सामंतगण राजा की सुरक्षा हेतु सेना को भी सुसज्जित किया करते थे। परंतु सामंतगणों को भूमि के क्रय–विक्रय का अधिकार नहीं था। शुरुआती दौर में सामंतवाद ने न्याय व्यवस्था, कृषक क्षेत्र एवं स्थानीय सुरक्षा की नीतियों में सुधार करने का कार्य किया, जिससे समाज में उनकी काफी प्रशंसा हुई। धीरे-धीरे सामंतों का उद्देश्य व्यक्तिगत स्वार्थ एवं व्यक्तिगत युद्ध में बदल गया जिसके परिणामस्वरूप आम जनता को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा।

सामंतवाद का पतन कब आरंभ हुआ

सामंतवादी सामाजिक व्यवस्था के अंतर्गत लोगों पर शोषण एवं तरह-तरह के अत्याचार किए जाते थे। जिसके फलस्वरूप 13 वीं सदी के आरंभ से ही सामंतवाद का पतन शुरू हो गया था। सामंतवाद एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था प्रणाली थी। जिसमें सत्ता एवं अधिकार का नियंत्रण केवल कुछ ही लोगों के पास था और उनमें से अधिकतर लोग सामंत वर्ग के हुआ करते थे।

सामंतवाद की विशेषताएं

  • सामंतवादी व्यवस्था के अंतर्गत राजा के अधीनस्थ छोटे-छोटे सामंत हुआ करते थे, जिनकी अधीनता में सारा कृषक वर्ग कार्य किया करता था। सामंतो के पास जागीरें होती थी जिन्हें वे कृषक वर्ग के लोगों को प्रदान करते थे। साथ ही सामंतों को कृषक के क्षेत्र में न्याय के अधिकार भी प्राप्त थे, जिसके कारण सामंत अपने क्षेत्र में निरंकुश शासक भी माने जाते थे।
  • सामंतवाद में दास प्रथा को बढ़ावा दिया गया जिसके कारण निम्न वर्ग के लोगों एवं श्रमिकों के ऊपर दबाव बढ़ाया गया। सामंतवाद के अंतर्गत दासों को अपने-अपने स्वामी के सम्मुख एक प्रतिज्ञा लेनी पड़ती थी कि वे प्राप्त भू-भाग के लिए सदैव सद्भाव से अपने स्वामी की सेवा करेंगे। इस क्रम में भू-ग्रहण की प्रतिज्ञा सामंतवाद की विशेषता बन गई थी जिसे दास या सेवकों द्वारा पूरा किया जाता था।
  • सामंतवाद में जागीरदारी प्रथा को असामान्य रूप से बढ़ावा मिला। दरअसल इस प्रथा में राजा अपने समस्त भूमि को सामंतों में बांट देता था और सामंत इस भूमि को कृषकों को खेती हेतु दे दिया करते थे। धीरे-धीरे सामंतों की स्थिति दृढ़ होती गई एवं किसानों की कमजोर होती गई जिससे जागीरदारी प्रथा का आरंभ हुआ।
  • सामंतवादी व्यवस्था में राजा सर्वोच्च सत्ताधारी स्थान पर होता था एवं उसके अधीनस्थ कई छोटे-बड़े सामंत हुआ करते थे जो राजा की रक्षा और सहायता किया करते थे।
  • सामंतवाद के अंतर्गत समाज दो वर्गों में विभाजित हो गया जिसमें एक ओर भूमिपति वर्ग के लोग तथा दूसरी ओर निर्धन कृषक वर्ग के लोग हुआ करते थे। भूमिपति वर्ग के लोग कृषक वर्ग के लोगों का शोषण किया करते थे, जिससे कृषक या दास वर्ग के जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा।

सामंतवाद के उदय के कारण

सामंतवाद के उदय का मुख्य कारण सुरक्षा व्यवस्था एवं शांति व्यवस्था को बनाए रखना था। परंतु जिन कारणों से सामंत प्रणाली को स्थापित किया गया था उन्हीं कारणों से सामंतवाद का पतन हो गया। दरअसल सामंतवाद ने समाज में अराजकता को बढ़ावा दिया जिसके कारण जनता का शोषण एवं उत्पीड़न हुआ।

सामंतवाद के गुण

  • सामंतवादी व्यवस्था ने राज्य की सुरक्षा, शासन एवं न्याय प्रणाली को सरल कर उसे बेहतर करने की दिशा में कार्य किया।
  • पूरे यूरोप में शांति व्यवस्था बनाए रखने हेतु सामंतवादी प्रथा ने बेहद महत्वपूर्ण योगदान दिया।
  • सामंतवाद के शुरुआती दौर में सामंत प्रजा को संतुष्ट रखने में कामयाब हुए।

सामंतवाद के दोष

  • सामंतवाद के कारण साधारण लोगों के जीवन में श्रम और अधिक बढ़ गया जिसका फायदा सीधे तौर पर सामंतों को मिलता था।
  • सामंतवादी प्रथा के कारण यूरोप में राजनीतिक एकता का खण्डन हुआ जिसके फलस्वरूप यूरोप में एक बड़ा राजनीतिक बदलाव आया।
  • सामंतवाद के कारण सामंतों की शक्तियों में वृद्धि हुई जिससे उनका नैतिक स्तर कम हो गया और वे अत्याचारी एवं विलासी हो गए।
  • सामंतवाद के कारण यूरोप में दास प्रथा का प्रचलन शुरू हुआ, जिसके कारण श्रमिक वर्ग के लोगों एवं किसानों को बुरे हालातों से गुजरना पड़ा।
  • सामंतवाद ने सम्पूर्ण यूरोप में क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया जिससे यूरोप की प्रजा बेहद नकारात्मक रूप से प्रभावित हुई।

सामंतवाद के पतन के कारणों का वर्णन कीजिए

  • सामंतवादी व्यवस्था के पतन का मुख्य कारण सामंतों का आपसी मतभेद था। सभी सामंत भूमि के विस्तार के लिए निरंतर संघर्ष करते थे जिसके कारण उनकी शक्ति एवं लोकप्रियता में कमी आने लगी। सामंतों के बीच आपसी मतभेद एवं युद्ध के कारण प्रजा को कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता था जिसके कारण सामंतों की आर्थिक स्थिति पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ा।
  • यूरोप के लोगों में राष्ट्रीयता की भावना जागृत हुई जिसके कारण सामंतवाद का पतन शुरू हो गया। यूरोप में तेजी से शिक्षा को महत्व दिया जाने लगा जिसके कारण जनता में राष्ट्रीयता की भावना ने जन्म लिया। इससे सामंतों द्वारा रची गई नीतियों का आंतरिक रूप से बहिष्कार शुरू हुआ।
  • यूरोप में जगह-जगह छापेखाने का अविष्कार होने से सामंतवाद का पतन शुरू हुआ। दरअसल छापेखाने के माध्यम से नई पुस्तकें एवं नए विचार जनता के सम्मुख आये जिसके कारण लोगों को सामंतवाद का नकारात्मक प्रभाव समझ आने लगा।
  • सामंतवाद के कारण यूरोप में धर्म युद्ध हुए जिसके कारण प्रजा के बीच सामंतों का प्रभाव समाप्त हो गया। मध्यकालीन में कई धार्मिक स्थलों पर अपने-अपने अधिकार के लिए दो गुटों के बीच युद्ध हुए जिनमें सामंतों ने भी भाग लिया।
  • नए एवं आधुनिक हथियार व गोला बारूद के प्रचलन के कारण सामंतवाद का महत्व कम होने लगा। जब यूरोप में आधुनिक बंदूक, गोला बारूद एवं अन्य हथियारों को प्रयोग में लाया जाने लगा तब सामंतवाद का पतन भी शुरू हो गया। पहले राजा की सुरक्षा का भार सामंतों पर होता था परंतु नए हथियारों के चलन के पश्चात सभी राजाओं ने अपनी खुद की सेनाएं स्थापित की जो नवीन हथियारों से सुसज्जित होती थी।
  • सामंतवाद के कारण कृषक वर्ग के लोगों का शोषण किया जाता था जिससे तंग आकर कृषकों ने सामंतों के खिलाफ विद्रोह शुरू कर दिया। सामंत कृषक एवं श्रमिक वर्ग के लोगों पर तरह-तरह के अत्याचार किया करते थे जिससे स्वतंत्र होने के लिए कृषकों ने सन 1831 में विद्रोह आरंभ कर दिया था।
  • धर्म सुधार आंदोलन एवं पुनर्जागरण के कारण भी सामंतवाद का पतन हुआ। धर्म सुधार आंदोलन एवं पुनर्जागरण के कारण राष्ट्रीय राज्य तेजी से विकसित होने लगे जिससे सामंतों की नीतियों को ठेस पहुंची। इसके परिणाम स्वरूप जनता में शोषण के विरुद्ध जागरूकता फैली जिसके कारण सामंतवाद का पतन हुआ।

यूरोप में सामंतवाद के पतन के कारण

माना जाता है कि 13 वीं शताब्दी के मध्य कुछ नवीन प्रगतिशील शक्तियों का उदय हुआ जिसके कारण पूरे यूरोप में सामंतवाद व्यवस्था का पतन शुरू हो गया। इसके अंतर्गत उन सारी शक्तियों का विघटन हुआ जो मध्यकालीन व्यवस्था की विशेषताएं थी। इसके साथ ही यूरोप में सामंतवाद के पतन के कई और कारण भी रहे जैसे:–

  1. सामाजिक कारण
  2. राजनीतिक कारण
  3. आर्थिक कारण
  4. नवीन साधन
  5. धार्मिक कारण
  6. कृषक विद्रोह

सामाजिक कारण

यूरोप में नवीन सामाजिक व सांस्कृतिक संस्थाओं की स्थापना हुई जिसकी मदद से लोगों में शिक्षा, ज्ञान एवं मुद्रा के आविष्कार के प्रति एक सकारात्मक विचार की धारणा ने जन्म लिया। इस कारण यूरोपीय समाज के संगठन में परिवर्तन आया और राज्य व नगर विकासशील गति से आगे बढ़ने लगे। इसके साथ ही कृषि प्रधान समाज के सिद्धांतों में भी परिवर्तन आया जिससे कृषकों के जीवन में सकारात्मक बदलाव हुए।

राजनीतिक कारण

यूरोप में शक्तिशाली एवं स्वतंत्र राजतंत्र की स्थापना के पश्चात राजा की सत्ता एवं शक्ति में भी वृद्धि हुई जिसके प्रभाव से सभी राजाओं ने विभिन्न प्रकार से सामंतों की नीतियों पर रोक लगाई। राजाओं ने अपनी संप्रभुता स्थापित करने हेतु राज्य में सिक्कों के प्रचलन में योगदान दिया एवं कई प्रशासकीय क्षेत्रों से सामंतों के प्रभाव को कम कर दिया। इसके फलस्वरूप यूरोप में तेजी से सामंतवाद के पतन का आरंभ हो गया।

आर्थिक कारण

यूरोप में समुद्री मार्ग की खोज हुई जिसके कारण यूरोप के निवासियों को अन्य देशों से आदान-प्रदान करने का अवसर प्राप्त हुआ। इस कारण यूरोप के निवासियों ने अन्य देश से व्यापार करना आरंभ कर दिया। धीरे-धीरे वस्तुओं की मांग में वृद्धि होने लगी एवं नवीन व्यापारी वर्ग का उदय हुआ। बड़ी संख्या में व्यापारी जल्द ही वैभवशाली हो गए एवं सामंतों के विरुद्ध राजा को सहयोग देने लगे।

नवीन साधन

यूरोप में कई संपन्न नगर विकसित हुए जिसकी मदद से व्यापार, कला कौशल, वाणिज्य एवं उद्योग के कार्यों को बढ़ावा मिला। इसके कारण व्यापारी वर्ग के लोगों की शक्ति और प्रभाव में वृद्धि हुई जिसके फलस्वरूप यूरोप में सामंतों का प्रभाव कम हुआ।

धार्मिक कारण

मध्यकालीन में यूरोप में कई बार धर्म युद्ध हुए जिन में भाग लेने के लिए सामंतों ने कई बार अपनी भूमि को बेच दिया। धीरे-धीरे सामंतों की सत्ता खतरे में पड़ने लगी एवं उनकी शक्ति का अधिकार भी खत्म हो गया। कई सामंत धर्म युद्ध के दौरान वीरगति को प्राप्त हुए जिसके कारण उनकी भूमि को राजा ने अपने अधिकार में ले लिया।

कृषक विद्रोह

यूरोप में सामंतों के शोषण एवं अत्याचार से तंग आकर कृषक वर्ग के लोगों ने विद्रोह शुरू कर दिया। इस दौरान यूरोप में भीषण महामारी का दौर शुरू हुआ जिसके कारण गरीब मजदूर एवं श्रमिकों की मृत्यु हुई। इसके पश्चात खेत में काम करने वाले मजदूरों ने अपने वेतन में वृद्धि एवं कुछ अधिकारों की मांग की जिससे कृषक वर्ग के लोग सामंतों पर निर्भर ना रह सकें।

सामंतवाद के परिणाम

सामंतवाद एक ऐसी व्यवस्था प्रणाली थी जिसके अंतर्गत आम जनता, कृषकों एवं श्रमिकों पर तरह-तरह से अत्याचार एवं उनका शोषण किया जाता था। सामाजिक दृष्टि से सामंतवाद का परिणाम अच्छा नहीं था क्योंकि इसमें कृषि वर्ग के लोगों के ऊपर अधिक दबाव दिया जाता था। सामंत अपनी भूमि पर कृषकों को खेती करने के लिए बाध्य कर सकता था जिससे किसानों के निजी जीवन एवं आर्थिक स्थिति पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ता था। इसके अलावा सामंतवाद के अंतर्गत राजा के पास कोई वास्तविक अधिकार नहीं था जिसके कारण राजा अपने राज्य में जन कल्याण हेतु कार्य करने के लिए स्वतंत्र नहीं था।


 

व्यापार व सामंतवाद के पतन पर पॉल स्वीजी का दृष्टिकोण क्या है

अमेरिकी विद्वानों में से एक पॉल स्वीजी के अनुसार सामंतवाद का पतन वाणिज्यिक अर्थव्यवस्था के विस्तार के कारण हुआ। वाणिज्यवाद (Mercantilism) एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जिसके अंतर्गत दो व्यक्तियों या संस्थाओं के बीच सौदा करके धन की प्राप्ति की जाती है। सामंतवाद के विषय में पॉल स्वीजी का दृष्टिकोण बाकियों से बहुत अलग था। हालांकि अन्य देशों के इतिहासकारों की विचारधारा पॉल स्वीजी से भी अलग थी। पॉल स्वीजी ने बेल्जियम के इतिहासकार हेनरी पिरेन की व्यापार या सामंतवाद के बीच असंगति की अवधारणा का भी समर्थन किया।

 सामंतवाद के पतन संबंधी प्रमुख विवाद का वर्णन कीजिए

सामंतवाद के पतन के कारण सामंतों के बीच हुए विवाद को सबसे विवादास्पद माना जाता है। सामंतवाद के पतन के दौरान सामंतों के बीच आपसी युद्ध बढ़ता चला गया, जिसके कारण प्रत्येक सामंतों की सेना आपस में ही युद्ध करने लगी। धीरे-धीरे सामंत अपने प्रभाव क्षेत्र से नियंत्रण खोने लगे जिसके कारण सामंतों की शक्ति खत्म होती चली गई। सामंतों के बीच होने वाले संघर्ष के कारण राजा की शक्तियों का भी खंडन हुआ जिसके परिणामस्वरूप राजा को अपनी एवं प्रजा की सुरक्षा के लिए नई सेना का निर्माण करना पड़ा। दरअसल मध्यकालीन में यूरोप के राजा की सुरक्षा का भार सामंतों की सेना के ऊपर हुआ करता था परंतु सामंतों की आपसी संघर्ष के कारण राजा की सुरक्षा प्रणाली खतरे में पड़ गयी।

 सामंतवाद के पतन में पूंजीवाद की भूमिका की व्याख्या करो।

सामंतवाद के पतन के दौरान ही पूंजीवाद का उदय हुआ। दरअसल सामंतवादी व्यवस्था पूर्ण रूप से कृषि निर्वाह अर्थव्यवस्था पर आधारित थी। इसके अंतर्गत भूमि का एक बड़ा हिस्सा सामंती व्यवस्था का केंद्र हुआ करता था जिसका मालिकाना हक केवल सामंतों के पास हुआ करता था। वही पूंजीवाद व्यवस्था बड़े पैमाने पर वस्तु के उत्पादन, उच्च स्तरीय श्रमिक विभाजन या विशेषज्ञता एवं उपकरणों से सुसज्जित बाजार उन्मुख एक अर्थव्यस्था प्रणाली है। इसीलिए अधिकतर उत्पादों को बाजार में मुनाफा कमाने के लिए बेचा जाता है। पूंजीवाद के अंतर्गत मुद्रा का उपयोग करके बाजार में उत्पादों का आदान-प्रदान किया जाता है। पूंजीवाद की व्यवस्था में किसी एक व्यक्ति का व्यवसाय या व्यावसायिक भूमिका कानूनी रूप से व्यक्तिगत प्रयास एवं क्षमता पर ही निर्भर करती है।

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