उपसर्ग और प्रत्यय में अंतर ( प्रत्यय और उपसर्ग में अंतर ) : उपसर्ग किसे कहते हैं, उपसर्ग के प्रकार, प्रत्यय किसे कहते हैं, प्रत्यय के प्रकार आदि महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं।
उपसर्ग किसे कहते हैं
वह शब्दांश जो किसी मूल शब्द के पूर्व में जुड़कर किसी नए शब्द या अर्थ का निर्माण करते हैं उन्हें उपसर्ग कहा जाता है। आसान शब्दों में कहा जाए तो उपसर्ग वह अक्षर होते हैं जिन्हें किसी शब्द के आरंभ में लगाकर एक अलग अर्थ वाले शब्द का निर्माण किया जाता है। इनमें किसी भी शब्द को नकारात्मक रुप से प्रदर्शित करने की क्षमता होती है। इसके अलावा यह समय, स्थान, संबंध आदि को भी व्यक्त कर सकते हैं। उपसर्ग का स्वतंत्र रूप से प्रयोग नहीं किया जा सकता क्योंकि स्वतंत्र भाव से इनका कोई महत्व नहीं होता है परंतु इन्हें शब्द के पूर्व लगाकर शब्द के अर्थ में विशेष रूप से परिवर्तन लाया जा सकता है। उपसर्ग शब्द के अर्थ को एक विपरीत दिशा देने का कार्य करते हैं।
उदाहरण के लिए “हार” एक शब्द है जिसमें उपसर्ग लगाने से कई प्रकार के नए शब्दों का निर्माण होता है, जैसे- उपहार, आहार, परिहार, संहार, प्रहार आदि। इन शब्दों में प्रयुक्त होने वाले उप, आ, परि, सं एवं प्र शब्दांश उपसर्ग की श्रेणी में आते हैं। इस प्रकार उपसर्ग को लगाने से किसी भी शब्द के अर्थ में परिवर्तन लाया जा सकता है।
उपसर्ग के प्रकार
उपसर्ग के मुख्य रूप से तीन प्रकार होते हैं जो कुछ इस प्रकार हैं:-
- हिंदी उपसर्ग
- संस्कृत उपसर्ग
- उर्दू उपसर्ग
हिंदी उपसर्ग
हिंदी में प्रयुक्त किए जाने वाले उपसर्ग मुख्य रूप से 12 होते हैं जैसे:-
- अ – अछूता, अभाव, अटल, अथाह आदि।
- कु – कुचला, कुचक्र, कुचाल आदि।
- दु – दुष्कर्म, दुबला, दुधारू, दुलारा आदि।
- अन – अनपढ़, अनमोल, अनबन आदि।
- नि – निडर, निहत्था, निकम्मा, निगोड़ा आदि।
- भर – भरपूर, भरमार, भरपेट आदि।
- औ – औसत, औसर, औगुन आदि।
- अध – अधपका, अधमरा, अधकच्चा आदि।
- सु – सुजान, सुफल, सुनिश्चित, सुकुमारी आदि।
- पर – परलोक, परोपकार, परहित आदि।
- उन – उनसे, उनकर, उनतीस आदि
- बिन – बिनबादल, बिनकहे, बिनब्याहा आदि।
संस्कृत के उपसर्ग
संस्कृत में प्रयुक्त किए जाने वाले उपसर्ग मुख्य रूप से 22 होते हैं जैसे:-
- प्रादुर – प्रादुर्भाव, प्रादुर्भूत आदि।
- बहिस् – बहिष्कार, बहिष्कृत आदि।
- अन्तर् – अन्तर्गत, अन्तरात्मा, अन्तर्धान, अन्तर्दशा अन्तर्राष्ट्रीय, अन्तरिक्ष आदि।
- प्रादुर – प्रादुर्भाव, प्रादुर्भूत आदि।
- पुनर् –पुनरागमन, पुनर्विवाह, पुनर्जन्म, पुनरुदय, पुनर्जागरण, पुनर्मूल्यांकन आदि।
- पूर्व – पूर्वज, पूर्वाग्रह, पूर्वार्द्ध, पूर्वाह्न, पूर्वानुमान आदि।
- आत्म – आत्मकथा, आत्मघात, आत्मबल, आत्मचरित, आत्मज्ञान आदि।
- बहिर् – बहिरागत, बहिर्जात, बहिर्भाव, बहिरंग, बहिर्गमन आदि।
- प्राक् – प्राक्कथन, प्राक्कलन, प्रागैतिहासिक, प्राग्देवता, प्राङ्मुख आदि।
- पुरस् – पुरस्कार, पुरश्चरण, पुरस्कृत आदि।
- स्व – स्वतंत्र, स्वदेश, स्वराज्य, स्वाधीन, स्वरचित, स्वनिर्मित, स्वार्थ आदि।
- सह – सहपाठी, सहकर्मी, सहोदर, सहयोगी सहानुभूति, सहचर आदि।
- आविस् – आविष्कार, आविष्कृत आदि।
- स्वयं – स्वयंभू, स्वयंवर, स्वयंसेवक, स्वयंपाणि, स्वयंसिद्ध आदि।
- आविर् – आविर्भाव, आविर्भूत आदि।
- अलम् – अलंकरण, अलंकृत, अलंकार आदि।
- प्रातर् – प्रातः काल, प्रातः वन्दना, प्रातः स्मरणीय आदि।
- इति – इतिश्री, इतिहास, इत्यादि, इतिवृत्त आदि।
- तत् – तल्लीन, तन्मय, तद्धित, तदनन्तर, तत्काल, तत्सम, तद्भव, तद्रूप आदि।
- तिरस् – तिरस्कार, तिरस्कृत आदि।
- सत् – सत्कर्म, सत्कार, सद्गति, सज्जन, सच्चरित्र, सद्धर्म, सदाचार आदि।
- अमा – अमावस्या, अमात्य आदि।
उर्दू के उपसर्ग
उर्दू के उपसर्ग को अरबी-फारसी के उपसर्ग भी कहा जाता है। उर्दू में प्रयुक्त किए जाने वाले उपसर्गों की संख्या मुख्य रूप से 12 होती है। जैसे:-
- खुश- खुशखबरी, खुशहाल, खुशबू, खुशनसीब आदि।
- गैर- गैरकानूनी, गैरहाजिर, गैर-जिम्मेदार, गैर-मुल्क आदि।
- ब – बदौलत, बदस्तूर, बगैर, बनाम आदि।
- बद – बदनाम, बदमाश, बदबू, बदकिस्मत आदि।
- ना – नासमझ, नाराज, नालायक, नापसंद आदि।
- कम – कमजोर, कमअक्ल, कमबख्त आदि।
- बा – बकायदा, बामौका, बाइज्जत, बाअदब आदि।
- बे – बेचारा, बेवकूफ, बेईमान, बेदर्द आदि।
- सर – सरदार, सरपंच, सरकार, सरताज आदि।
- हर – हरसाल, हरएक, हरबार आदि।
- हम – हमराह, हमउम्र, हमदम, हमदर्द आदि।
- ला – लाइलाज, लापरवाह, लाचार, लाजवाब, लावारिस आदि।
प्रत्यय किसे कहते हैं
प्रत्यय वह शब्दांश होते हैं जिन्हें शब्दों के अंत में लगाकर उस शब्द का अर्थ बदलने के लिए प्रयोग किया जाता है। प्रत्यय को मुख्य रूप से शब्दों के अंत में जोड़ा जाता है जिससे एक अलग प्रकार के शब्द वर्ग का निर्माण किया जा सके। प्रत्यय अपनी प्रकृति के अनुसार शब्दों के अर्थ में एक बड़ा परिवर्तन लाते हैं। प्रत्यय शब्द वास्तव में दो शब्दों से मिलकर बना है प्रति + अय। जिसमें प्रति का अर्थ होता है साथ में और बाद में एवं अय का अर्थ होता है चलने वाला। इस प्रकार प्रत्यय का अर्थ साथ में परंतु बाद में चलने वाला होता है। प्रत्यय का ना तो कोई स्वतंत्र अस्तित्व होता है और ना ही अपना कोई अर्थ होता है यह केवल शब्दों के साथ ही प्रयुक्त किए जाते हैं।
प्रत्यय के प्रकार
प्रत्यय मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं:-
- संस्कृत के प्रत्यय
- हिंदी के प्रत्यय
- विदेशी भाषा के प्रत्यय
संस्कृत के प्रत्यय
संस्कृत के प्रत्यय दो भेद होते हैं:-
- कृत प्रत्यय
- तद्धित प्रत्यय
कृत प्रत्यय
जिन प्रत्ययों को धातुओं में जोड़कर विशेषण, संज्ञा या अव्यय आदि के पद का निर्माण किया जाता है उन्हें कृत प्रत्यय कहते हैं। यह प्रत्यय क्रिया एवं धातु को एक नया अर्थ देने का कार्य करते हैं। कृत प्रत्यय के योग से संज्ञा एवं विशेषण भी बनाए जाते हैं। जैसे:-
- अक – नायक, गायक, पाठक, लेखक आदि।
- आक – लड़ाक, तैराक आदि।
- अक्कड़ – घुमक्कड़, पियक्कड़, भुलक्कड़ आदि।
तद्धित प्रत्यय
जो प्रत्यय सर्वनाम, विशेषण एवं संज्ञा के अंत में लगने के पश्चात नए शब्दों का निर्माण करते हैं उन्हें तद्धित प्रत्यय के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा तद्धित प्रत्यय के मेल के द्वारा बने हुए शब्दों को तद्धिततांत कहते हैं। जैसे:-
- वान – धनवान, बलवान, भाग्यवान, विद्वान आदि।
- ई – चालाकी, ज्ञानी, पंडिताई आदि।
- ता – उदारता, सफलता, विषमता आदि।
- ओं – भाषाओं, वाक्यों, कार्यों, शब्दों आदि।
- यां – नदियां, प्रवृतियां, प्रतियां, मूर्तियां आदि।
हिंदी के प्रत्यय
हिंदी में प्रयोग किए जाने वाले प्रत्ययों की संख्या अनगिनत होती है जिनमें से कुछ प्रमुख प्रत्यय कुछ इस प्रकार हैं:-
- अन – अनबन, अनसुनी आदि।
- आ – आहट , आघात आदि।
- अ – अकेला, अमर आदि।
- बढ़ – बढ़िया, बढ़ाया आदि
- अक्कड़ – भुलक्कड़, नक्कड आदि
- घट – घटिया, घटोच्कच आदि
- ना – नहाना, कामना आदि
- हट – आहट
विदेशी भाषा के प्रत्यय
विदेशी मूल के प्रत्यय के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं:-
- आना – जुर्माना
- दार – दुकानदार
- इज्म – बुद्धिज्म
- खोर – घूसखोर
- इन्दा – वाशिंदा
- ईन – संगीन
- सार – मिलनसार
- बीन – तमाशबीन
उपसर्ग और प्रत्यय में अंतर
उपसर्ग और प्रत्यय में निम्नलिखित अंतर देखे जा सकते हैं:-
- उपसर्ग हमेशा मूल शब्द के पहले प्रयुक्त किए जाते हैं जबकि प्रत्यय मूल शब्द के अंत में लगाए जाते हैं।
- किसी भी शब्द में उपसर्ग को लगाने के बाद शब्द का अर्थ विपरीत भी हो सकता है जबकि प्रत्येक को लगाने के बाद मूल शब्द का अर्थ नए शब्द से अनिवार्य रूप से संबंधित होता है।
- उपसर्ग के उद्भव एवं विकास की दिशा ऊपर से नीचे की ओर होती है जबकि प्रत्यय के उद्भव एवं विकास की दिशा नीचे से ऊपर की ओर होती है।
- अधिकांश उपसर्गों का अपना स्वतंत्र अर्थ हो सकता है परंतु किसी भी प्रत्यय का (अपवाद को छोड़कर) स्वतंत्र अर्थ नहीं हो सकता।
- उपसर्ग में मूल शब्द को निर्देशित करने की क्षमता होती है परंतु प्रत्यय मूल शब्द के माध्यम से ही निर्देशित होता है।
- जहाँ मूल शब्द उपसर्ग पर निर्भर करते हैं वहीं मूल शब्द भी प्रत्यय पर निर्भर करते।
पढ़ें – शब्दकोश एवं संदर्भ ग्रंथ में क्या अंतर है।
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