Famous Tours in Uttarkhand Kailash Mansarovar Yatra Nanda Raj in Hindi
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उत्तराखंड में होने वाली प्रमुख धार्मिक यात्राएं

उत्तराखंड में होने वाली प्रमुख धार्मिक यात्राएं : उत्तराखंड में कैलाश मानसरोवर यात्रा, नंदा राज जात यात्रा, हिल यात्रा, खतलिंग रुद्रा देवी यात्रा, पंवाली कांठा केदार यात्रा, सहस्त्र ताल महाश्र यात्रा, वारुणी यात्रा आदि कई धार्मिक यात्रा का आयोजन होता है। उत्तराखंड में कई मंदिर और धार्मिक यात्राऐं होने के कारण ही उत्तराखंड को ‘देव भूमि’ कहा जाता है।

उत्तराखंड की प्रमुख धार्मिक यात्राएं

उत्तराखंड राज्य में आयोजित होने वाली प्रमुख धार्मिक यात्राएं निम्नवत हैं –

कैलाश मानसरोवर यात्रा (Kailash Mansarovar Yatra)

प्रतिवर्ष जून के प्रथम सप्ताह से सितंबर के अंतिम सप्ताह तक चलने वाले इस यात्रा का आयोजन भारतीय विदेश मंत्रालय (Indian Foreign Ministry), कुमाऊं मंडल विकास निगम तथा भारत तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) के सहयोग से होता है। कैलाश मानसरोवर स्थल चीन के कब्जे में है अतः प्रत्येक यात्री के लिए वीजा जारी किया जाता है। tours in Uttarakhand

कैलाश मानसरोवर यात्रा दिल्ली से प्रारंभ होकर मुरादाबाद, रामपुर, हल्द्वानी, काठगोदाम, भवाली होते हुए अल्मोड़ा पहुंचती है। अल्मोड़ा के कौसानी, बागेश्वर, चौकुड़ी, डीडीहाट होते हुए धारचूला पहुंचती है। धारचूला से लगभग 160 किलोमीटर पैदल यात्रा के तहत तवाघाट, मांगती, गाला, बुंदी, गुंजी, नवीढ़ाग, लिपुलेख दर्रा होते हुए तिब्बत में प्रवेश करते है। आगे मानसरोवर तक के लिए बस व पैदल दोनों साधनों की व्यवस्था रहती है। tours in Uttarakhand

इस यात्रा में एक व्यक्ति की यात्रा समयावधि लगभग 40 दिन होती है। यात्रा के इच्छुक आवेदको को दिल्ली में तमाम जाँच से गुजरना पड़ता है।

कैलाश शिखर की बनावट शिवलिंग की तरह है तथा पर्वत के पत्थर काले रंग के है। यात्री मानसरोवर झील में स्नान करते है, उसके बाद शिवलिंगाकार कैलाश पर्वत के चारों ओर परिक्रमा करते है। जो कि लगभग 51 किलोमीटर की गोलाई में है।

समुद्र से 22,028 फीट की ऊंचाई पर स्थित मानसरोवर झील की बाहरी परिक्रमा पथ 62 किलोमीटर है। यहां कोई मंदिर या मूर्ति नहीं है, यात्रीयों को सरोवर के किनारे मिट्टी का शिवलिंग बनाकर पूजा करनी पड़ती है। कैलाश से मानसरोवर झील की दूरी 32 किलोमीटर है।

1962 के युद्ध से पूर्व यह यात्रा बिना वीजा के होती थी। उस समय तीर्थयात्री मुख्य रूप से धारचूला की व्यासघाटी से लिपुलेख दर्रा पार कर मानसरोवर पहुचते थे। इसके अलावा पिथौरागढ़ जिले के मुन्सयारी के जोहार-घाटी के किंगरी-बिगरी दर्रे और चमोली जिले के जोशीमठ के नीती-घाटी दर्रे से भी कैलाश मानसरोवर जाते थे। युद्ध उपरांत दोनों देशों के बीच 1981 में धारचूला तहसील के व्यासघाटी के लिपुलेख दर्रे से कैलाश यात्रा शुरू करने की सहमति बनी जो बिना रुकावट के निरंतर जारी है।

 

नंदा राज जात यात्रा (Nanda Raj Jat Yatra)

Nanda Devi Raj Jat Yatra Uttarakhand
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उत्तराखंड की यह यात्रा गढ़वाल व कुमाऊं के सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है। यह विश्व की अनोखी पैदल यात्रा है, जिसमें चमोली के कांसुवा गांव के पास स्थित नौटी के नंदादेवी मंदिर से हेमकुंड तक की 208 किलोमीटर की यात्रा 19-20 दिन में पूरी की जाती है। इस यात्रा में कुमाऊ, गढ़वाल तथा देश के अन्य भागों के अलावा विदेश के लोग भी भाग लेते है।

राजजात यात्रा प्रत्येक 12 वें  वर्ष चांदपुरगढ़ी के वंशज के कांसुवा गाँव के राजकुंवारों के नेतृत्व में आयोजित की जाती रही है। यही कारण है कि इस यात्रा को राज जात (यात्रा) कहा जाता है।

पार्वती का विवाह कैलाशपति शंकर से हुआ था। पार्वती मंदराचल पर्वत की पुत्री थी इसलिए उत्तराखंडवासी पार्वती या नंदा देवी को अपनी विवाहित बेटी की तरह मानते है और यह यात्रा उनके विदाई के रुप में की जाती है।

जिस वर्ष यात्रा आयोजित होती है उस वर्ष कांसुवा के लोग ऐसा मानते है, कि बसंत पंचमी को नंदादेवी मायके आ गई है।

नंदादेवी के विदाई यात्रा में आगे-आगे चार सींगों वाला बकरा चलता है, जिस वर्ष यात्रा होती है, उस वर्ष ऐसा बकरा कहीं ना कहीं अवश्य मिल जाता है। tours in Uttarakhand

यात्रा के लिए निर्धारित तिथि को कांसुवा के कुंवर चौसिंगिया मेढ़े तथा रिंगाल से निर्मित सुंदर कांसुवा के पास नौटी देवी मंदिर पहुंचते हैं। वहां छंतोली राजगुरु नोटियालों को सौंप दी जाती है। उस दिन नौटी गांव में बड़ा मेला लगता है। चौसिंगिया खाडूकी पीठ पर ऊन के बने दो मुहे झोले में देवी की प्रतिमा को आभूषण व भेट सजाकर रखी जाती है। और नौटी से यात्रा का प्रारंभ होकर वनाणी, बेनोली, कांसुवा होती हुई चांदपुर गढ़ी पहुचती हैं। जहां मेला लगता है और टिहरी राजपरिवार के लोग देवी की पूजा करते हैं।

जैसे की राज जात यात्रा प्रत्येक 12 वर्षो में होती होती है, लेकिन प्राकृतिक विपदा से हुए जानमाल के नुकसान के बीच ऐतिहासिक नंदा राजजात यात्रा 14 वर्षो बाद उत्तराखंड 18 अगस्त, 2014 में शुरू हुई थी, जो 6 सितम्बर, 2014 को समाप्त हुई।

 

हिल यात्रा (Hill Yatra)

पिथौरागढ़ के सोरोघाटी का हिलजात्रा उत्सव मुख्यता कृषि तथा पशुपालन का उत्सव है। जो की नेपाल की देन माना जाता है।

 

खतलिंग रुद्रा देवी यात्रा (Khatling Rudra Devi Yatra)

उत्तराखंड के पांचवा धाम यात्रा के नाम से प्रचलित यह यात्रा टिहरी जनपद के सीमांतर उच्च हिमालय क्षेत्र में हर वर्ष सितंबर माह में होती है।

 

पंवाली कांठा केदार यात्रा (Panvali Kantha Kedar Yatra)

टिहरी गढ़वाल के पंवाली कांठा से रूद्रप्रयाग के केदारनाथ तक की जाने वाली 29 किलोमीटर कि यह पैदल यात्रा अगस्त-सितंबर (August-September) महीने में देवी-देवता की डोली के साथ की जाती है।

 

सहस्त्र ताल महाश्र यात्रा (Sahstra Taal Mahaashr Yatra)

यह यात्रा टिहरी से शुरु होकर बूढ़ाकेदार से महाश्र ताल से घुत्तु से उत्तरकाशी के सहस्त्र ताल समूह तक जाती है। देवी-देवताओं की डोली व ध्वज के साथ यात्रा भाद्रपद महीने में होती है। अपनी-अपनी सुविधानुसार किसी भी गांव-क्षेत्र से यह यात्रा शुरू होती है।

 

वारुणी यात्रा (Varuni Yatra)

उत्तरकाशी में एकदिवसीय पंचकोशी यात्रा का पौराणिक विधान है। चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को इसका प्रारम्भ बेडथी में वरुणा एवं भागीरथी के संगम पर स्नान के उपरांत शुरू होती है। यात्रीगण यहां के यहां से गंगाजल लेकर वरुणा के प्रवाह पथ सेहोकर वरुणावत पर्वत की ओर चल पड़ते हैं। यह यात्रा 20 किलोमीटर पैदल की है।

पढ़ें उत्तराखंड के चार धाम या हिमालय के चार धाम (छोटा चार धाम)

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