बागेश्वर का उत्तरायणी मेला

बागेश्वर का उत्तरायणी मेला : बागेश्वर का उत्तरायणी मेला पुरे उत्तराखंड में प्रसिद्ध है। बागेश्वर के उत्तरायणी मेले का आयोजन उत्तराखंड राज्य के बागेश्वर जिले में सरयू नदी के तट पर किया जाता है। इतिहासकारों के अनुसार माघ मेले (उत्तरायणी मेले) की शुरूआत चंद वंशीय राजाओं के शासनकाल से हुई थी।

बागेश्वर का उत्तरायणी मेला
बागेश्वर का उत्तरायणी मेला
Img. Credit : tourmyindia.com

पहले माघ मेले के दौरान लोग संगम पर नहाने जाते थे और ये स्नान एक महीने तक होते थे। यहाँ बहने वाली सरयू नदी के तट को सरयू बगड़ भी कहा जाता है। इसी सरयू के तट के आस-पास दूर-दूर से माघ स्नान के लिए आने वाले लोग छप्पर डालकर रहते थे। पहले यातायात के संसाधनों के अभावों के कारण दूर-दराज के लोग स्नान और कुटुम्बियों से मिलने की लालसा में पैदल ही चलकर आते थे। धीरे-धीरे हर्षोल्लास, प्रसन्नचित्त व मनोरंजन के लिए हुड़के की थाप भी सुनायी देने लगी फलस्वरुप मेले में लोकगीतों और नृत्यों की महफिलें जमनें लगी।

प्रकाश की व्यवस्था अलाव जलाकर होती, कंपकंपाती सर्द रातों में अलाव जलाये जाते और इसके चारों ओर झोड़े, चांचरी, भगनौले, छपेली जैसे नृत्यों का मंजर देखने को मिलता। नाचने गाने का सिलसिला जो एक बार शुरु होता तो चिड़ियों के चहकने और सूर्योदय से पहले खत्म ही नहीं होता।

धीरे-धीरे धार्मिक और सांस्कृतिक रुप से समृद्ध यह मेला व्यापारिक गतिविधियों का भी प्रमुख केन्द्र बन गया, भारत और नेपाल के व्यापारिक सम्बन्धों के कारण दोनों ही ओर के व्यापारी इसका इन्तजार करते। तिब्बती व्यापारी यहाँ ऊनी माल, चँवर, नमक व जानवरों की खालें लेकर आते। भोटिया-जौहारी लोग गलीचे, दन, ऊनी कम्बल, जड़ी बूटियाँ लेकर आते, नेपाल के व्यापारी शिलाजीत, कस्तूरी, शेर व बाघ की खालें लेकर आते। स्थानीय व्यापारी भी अपने-अपने सामान को लाते, दानपुर की चटाइयाँ, नाकुरी के डाल-सूपे, खरदी के ताँबे के बर्तन, काली कुमाऊँ के लोहे के भदेले, गढ़वाल और लोहाघाट के जूते आदि सामानों का तब यह प्रमुख बाजार था। गुड़ की भेली और मिश्री और चूड़ी चरेऊ से लेकर टिकूली बिन्दी तक की खरीद फरोख्त होती, माघ मेला तब डेढ़ माह चलता। दानपुर के सन्तरों, केलों व बागेश्वर के गन्नों का भी बाजार लगता और इनके साथ ही साल भर के खेती के औजारों का भी मोल भाव होता।

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