वाणिज्यवाद क्या है, वाणिज्यवाद शब्द का प्रयोग सबसे पहले किसने किया, वाणिज्यवाद का महत्व, वाणिज्यवाद के प्रभाव, वाणिज्यिक क्रांति क्या है, वाणिज्यवाद की विशेषताएं क्या है और वाणिज्यवाद के पतन के कारणों का उल्लेख कीजिए आदि प्रश्नों के उत्तर यहाँ दिए गए हैं।
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वाणिज्यवाद (Mercantilism) क्या है
वाणिज्यवाद एक विशेष नीति है जिसके अंतर्गत व्यापार एवं उद्योग को नियमित करके धन की प्राप्ति की जाती है। वाणिज्यवाद को एक व्यापारिक क्रांति के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि इससे पश्चिमी यूरोप में एक नई आर्थिक प्रवृत्ति आयी। इसका मुख्य कारण राष्ट्रीय राज्यों की स्थापना एवं पुनर्जागरण करना था। वाणिज्यवाद को राज्य की शक्तियों को बढ़ाने एवं आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से लागू किया गया था।
वाणिज्यवाद एक आर्थिक विचारधारा है जो सोलवीं एवं सत्रहवीं सदी में जर्मनी, फ्रांस एवं इंग्लैंड में प्रचलित हुई और आठवीं सदी तक प्रचलित हुई। वाणिज्यवाद की धारणा पश्चिम यूरोप के देशों एवं अंतरराष्ट्रीय व्यापार जगत से प्राप्त होने वाले धन से संबंधित है। उद्योग या व्यापार की दृष्टि से वाणिज्यवाद की कोई सीमा नहीं है। वाणिज्यवाद का मूल सिद्धांत राज्यों को धन के क्षेत्र में समृद्ध एवं शक्तिशाली बनाने का होता है। वाणिज्यवाद के अंतर्गत व्यापार में स्वर्ण प्राप्ति एवं संगठन पर अधिक बल दिया गया जिसके फलस्वरूप देश व राज्यों की आर्थिक शक्ति एवं संपन्नता में वृद्धि हुई।
वाणिज्यवाद शब्द का प्रयोग सबसे पहले किसने किया
वाणिज्यवाद एक नवीन आर्थिक विचारधारा है जिसका विवेचन 1776 ई० में सर्वप्रथम ‘एडम स्मिथ’ ने अपनी बुक ‘दी वेल्थ ऑफ द नेशन्स’ (The Wealth of Nations) में किया था। वाणिज्यवाद एक आधुनिक विचारधारा है जो सरकार की आर्थिक नीतियों को विशेषकर व्यापार जगत एवं वाणिज्य को नियमित करने की दिशा को प्रदर्शित करता है।
वाणिज्यवाद का महत्व
वाणिज्यवाद नीति के अंतर्गत व्यापारी वर्ग को नियमित करने में सहायता मिली। इसकी मदद से राज्य में व्यापार को व्यवस्थित ढंग से चलाने एवं धन अर्जित करने भी सहायता प्राप्त हुई। वाणिज्यवाद में “अधिक सोना–चांदी प्राप्त कर अधिक बलशाली बनो” का नारा प्रचलित हुआ। इसके अलावा राज्य का सशक्तिकरण करने एवं धन प्राप्ति (सोना–चांदी) हेतु वाणिज्यवाद बेहद प्रभावकारी साबित हुआ। वाणिज्यवाद से व्यापार संगठन की प्रक्रियाओं को भी मजबूत बनाने में सहायता मिली, जिससे राष्ट्र को कई प्रकार से फायदा मिला।
वाणिज्यवाद के प्रभाव
वाणिज्यवाद का समाज पर सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों ही प्रकार का प्रभाव देखा जा सकता है। वाणिज्यवाद की धारणा से यूरोपीय देश कई प्रकार से प्रभावित हुए। इसकी मदद से व्यापारियों एवं बड़े उद्योगपतियों को व्यावसायिक लाभ में वृद्धि हुई परन्तु वहीं आम आदमी को लाभ में कमी भी हुई।
- वाणिज्यवाद के परिणाम स्वरूप राज्यों की शक्ति में वृद्धि हुई जिससे राज्य समृद्ध हुए। इसके साथ ही राज्य को व्यापार करने के नए अधिकार प्राप्त हुए जिसके कारण कई राज्यों को अंतरराष्ट्रीय व्यापार करने में आसानी हुई।
- वाणिज्यवाद की सहायता से मुद्रा के प्रयोग में वृद्धि हुई जिसके कारण देश में मुद्रा का व्यवस्थितिकरण हो सका। इसके अलावा राज्यों में बैंकों एवं अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों की स्थापना भी हुई जिससे मुद्रा को संरक्षित किया जा सका। वाणिज्यवाद में धन को अधिक महत्व दिया गया जिसके फलस्वरूप राजकोष में अधिक से अधिक धन को लाया जा सका।
- वाणिज्यवाद के कारण व्यापार के नियम एवं तौर–तरीकों में बदलाव आए जिससे राज्यों को विकसित होने में मदद मिली। इस कारण कई राज्यों में व्यापारिक प्रतियोगिता का माहौल भी उत्पन्न हुआ।
- वाणिज्यवाद के लागू होने के पश्चात् बड़े उद्योगपतियों को व्यापार में अधिक लाभ मिला परंतु साधारण लोगों को सामान्य व्यापार में नुकसान हुआ। इस कारण राज्यों में व्यापारिक एवं औद्योगिक क्रांति का मार्ग प्रशस्त हुआ।
- वाणिज्यवाद के अंतर्गत धन को अधिक महत्व दिया गया जिसके फलस्वरूप कई देशों में लूट एवं शोषण के युग की शुरुआत हुई। इसके अलावा इस युग में मानवीय श्रम एवं शोषण को बढ़ावा मिला जिसके कारण आम लोगों के जीवन में संघर्ष और अधिक बढ़ गया।
- वाणिज्यवाद या व्यापारवाद के कारण कृषि एवं कृषि उद्योगों में भारी गिरावट आई क्योंकि वाणिज्यवाद के अंतर्गत केवल व्यापार को ही प्राथमिकता दी जाती थी।
- वाणिज्यवाद के कारण राजकोष में धन की संख्या को बढ़ाने के उद्देश्य से आम जनता पर करों के दर को बढ़ाया गया जिससे लोगों के जीवन स्तर में कमी आई एवं लोगों में विद्रोह की भावना ने जन्म लिया।
वाणिज्यिक क्रांति (COMMERCIAL REVOLUTION) क्या है
वाणिज्यिक क्रांति एक अवधि है जिसमें व्यापारवाद, उपनिवेशवाद एवं आर्थिक प्रसार अपनी चरम सीमा पर होती है। वाणिज्यिक क्रांति ग्याहरवीं शताब्दी से अठारहवीं शताब्दी की शुरुआत तक की अवधि को माना जाता है। व्यापार के क्षेत्र में जल एवं स्थल दोनों के मार्ग से होने वाले विस्तार एवं विकास को वाणिज्यिक क्रांति के नाम से जाना जाता है।
वाणिज्यिक क्रांति के दौरान यूरोपीय क्षेत्र के लोगों ने रेशम, दुर्लभ मसालों एवं अन्य कीमती वस्तुओं की दोबारा खोज की जिससे लोगों में व्यापार करने एवं व्यापार को बढ़ाने की नई सोच ने जन्म लिया। 15 वीं एवं 16 वीं शताब्दी में नवगठित यूरोपीय राज्य वैकल्पिक व्यापार मार्ग की आवश्यकता थी जिससे वे अंतरराष्ट्रीय व्यापार आसानी से कर सकें। वाणिज्यिक क्रांति के कारण यूरोपीय राज्य को नव निर्माण एवं देश विदेश में यात्रा करने की अनुमति मिली जिससे उन्हें व्यापार करने में आसानी हुई।
वाणिज्यवाद की विशेषताएं क्या है उस के पतन के कारणों का उल्लेख कीजिए ?
वाणिज्यवाद की विशेषताएं
- वाणिज्यवाद के अंतर्गत अंतरराष्ट्रीय व्यापार को प्रोत्साहन मिला जिसके कारण विदेशी व्यापार के जरिए राज्यों को अपने धन को बढ़ाने में बहुत मदद मिली।
- वाणिज्यवाद में सोने-चांदी जैसी कीमती वस्तुओं के संचय पर अधिक बल दिया गया क्योंकि अन्य वस्तुओं की तुलना में सोने-चांदी को संचित करना आसान था। इसके अलावा सोने-चांदी जैसी बहुमूल्य वस्तुओं द्वारा युद्ध सामग्री एवं अन्य महत्वपूर्ण सामग्री को आसानी से खरीदा जा सकता था।
- वाणिज्यवाद एक ऐसी नीति थी जिसके अंतर्गत जनसंख्या वृद्धि पर बल दिया गया। वाणिज्यवादी विचारकों का मानना था कि इससे राष्ट्र की आर्थिक, राजनीतिक एवं सैन्य शक्ति को बढ़ाया जा सकता है।
- वाणिज्यवाद में उप निदेशकों की स्थापना पर जोर दिया गया क्योंकि वाणिज्यवादी विचारकों के अनुसार अंतरराष्ट्रीय व्यापार करने के लिए उपनिवेशवाद अत्यंत जरूरी था। उनके अनुसार उपनिवेशकों की स्थापना से माल तैयार करके बेचा व कच्चे माल सस्ते दामों पर खरीदा जा सकता था।
वाणिज्यवाद के पतन का कारण
- वाणिज्यवाद के पतन का सबसे बड़ा कारण यह था कि वाणिज्यवाद श्रमिक वर्ग के लोगों के लिए अभिशाप था। वाणिज्यवाद लोक कल्याण की भावना के विरुद्ध था। इसके अंतर्गत सामान्य स्तर के लोगों का शोषण किया जाता था।
- वाणिज्यवाद के कारण कृषि एवं कृषि उद्योग को निरंतर नुकसान हुआ। केवल इतना ही नहीं इससे कृषि वर्ग के लोगों की आय पर भी दुष्प्रभाव पड़ा, जिसके कारण राष्ट्र के किसान बुरी तरह प्रभावित हुए।
- वाणिज्यवाद के अंतर्गत समस्त प्रकार के उद्योगों में सरकारी हस्तक्षेप बढ़ गया जिसके कारण सामान्य वर्ग के व्यापारियों को कई प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ा।
- वाणिज्यवाद में साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद को बढ़ावा मिला। वाणिज्यवाद के दौर में कई देशों ने अपने अधीन रहे उपनिवेशकों का तरह-तरह से शोषण किया।
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