वृद्धि और विकास किसे कहते हैं - वृद्धि और विकास में अंतर

वृद्धि और विकास किसे कहते हैं – वृद्धि और विकास में अंतर

वृद्धि और विकास में अंतर ( विकास और वृद्धि में अंतर ) : वृद्धि किसे कहते हैं (what is growth in hindi), वृद्धि के प्रकार, विकास किसे कहते हैं (what is development in hindi), विकास के प्रकार आदि महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर यहाँ दिए गए हैं।

वृद्धि किसे कहते हैं ( what is growth in hindi )

वृद्धि वह दर होती है जिसमें संख्या या आकार में निरंतर होने वाली बढ़ोतरी को दर्शाया जाता है। जैसे बालकों की शारीरिक संरचना में लगातार हो रहे विकास की गति को उस बालक की वृद्धि कहा जा सकता है। वृद्धि के अंतर्गत बाल्यावस्था से ही किसी बालक की लगातार बढ़ती लंबाई, मोटाई, भार एवं अन्य अंगों में विकास की गति को दर्शाया जाता है। हालांकि यह वृद्धि एक निश्चित उम्र तक ही संभव है। इसके अलावा किसी विकासशील देश में आने वाले निरंतर परिवर्तन को भी उस देश की वृद्धि कहा जाता है। आमतौर पर वृद्धि को बालकों की बाल्यवस्था से लेकर वयस्क होने तक की अवस्था के माध्यम से समझाया जाता है। यदि किसी राज्य या राष्ट्र के कार्यों, संसाधनों एवं प्रतिष्ठा में बढ़ोतरी होती है तो इसे उस राष्ट्र की वृद्धि के रूप में परिभाषित किया जाता है।

वृद्धि के प्रकार

वृद्धि के कई प्रकार हो सकते हैं जैसे ( types of growth in hindi ) :-

  • आर्थिक वृद्धि
  • मानव की जैविक वृद्धि
  • जनसंख्या वृद्धि

आर्थिक वृद्धि

किसी भी देश के अंतर्गत प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी (GDP) में वृद्धि की दर को आर्थिक वृद्धि कहा जाता है। आर्थिक वृद्धि किसी देश के केवल उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं का परिणाम दर्शाती है। यह मुख्य रूप से देश की अर्थव्यवस्था से संबंधित होती है। अर्थशास्त्रियों के अनुसार आर्थिक वृद्धि के तीन महत्वपूर्ण कारक होते हैं पहला बचत करने का प्रयत्न करना, दूसरा ज्ञान की वृद्धि करना एवं तीसरा संसाधनों की मात्रा में वृद्धि करना या प्रति व्यक्ति पूँजी की वृद्धि करना।

मानव की जैविक वृद्धि

मनुष्यों के जीवन चक्र में होने वाले लगातार परिवर्तन को मानव की जैविक वृद्धि के रूप में परिभाषित किया जाता है। इसमें मुख्य रूप से मानव के शरीर में होने वाले बदलाव को शारीरिक वृद्धि के दृष्टिकोण से देखा जाता है। मानव की जैविक वृद्धि अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू है जिसमें बाल्यावस्था से ही मनुष्य के शरीर में होने वाले बदलाव को देखा जा सकता है। इसमें उम्र का लगातार बढ़ना मानव समाज का एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है जो जैविक बदलाव की स्थिति को दर्शाता है।

जनसंख्या वृद्धि

जनसंख्या वृद्धि किसी भी देश या क्षेत्र में नागरिकों की लगातार बढ़ती जनसंख्या की स्थिति को दर्शाता है। साधारण शब्दों में कहा जाए तो किसी निश्चित क्षेत्र में एक निश्चित समय अंतराल में व्यक्तियों की संख्या में लगातार होने वाले परिवर्तन को जनसंख्या वृद्धि कहा जाता है। जनसंख्या वृद्धि को जनसंख्या परिवर्तन के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसमें मुख्य रूप से प्रति वर्ष किसी राष्ट्र की जनसंख्या प्रभावित होती है। जनसंख्या परिवर्तन दो प्रकार का होता है पहला धनात्मक परिवर्तन एवं दूसरा ऋणात्मक परिवर्तन। धनात्मक परिवर्तन में मुख्य रूप से किसी क्षेत्र में व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि होने की दर को दर्ज किया जाता है जबकि ऋणात्मक परिवर्तन में किसी निश्चित क्षेत्र में व्यक्तियों की संख्या में लगातार होने वाली गिरावट को दर्शाया जाता है।

 

विकास किसे कहते हैं ( what is development in hindi )

विकास वह प्रक्रिया है जो किसी भी क्षेत्र की प्रगति, परिवर्तन, भौतिक, पर्यावरण, सामाजिक आदि की स्थिति को दर्शाता है। विकास का शाब्दिक अर्थ व्यवस्थित एवं संगति पूर्ण तरीके से बदलाव की स्थिति का एक प्रगतिशील श्रृंखला में होना होता है। किसी भी देश या मानव जीवन में आने वाले सकारात्मक परिवर्तन को विकास के दृष्टिकोण से देखा जाता है। यह जीवन प्रयत्न के माध्यम से चलने वाली एक निरंतर प्रक्रिया है जो लगभग हर क्षेत्र में शामिल होता है। यह किसी देश के प्रगति या समृद्धि, क्रियात्मक विकास, संख्यात्मक विकास, सामाजिक विकास, भाषागत विकास इत्यादि को दर्शाता है। मनुष्य में होने वाली विकास की क्रिया मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक चलती रहती है। यह मुख्य रूप से सरलता से जटिलता की ओर चलने वाले क्रम का अनुसरण करता है। देश के कुछ क्षेत्रों में विकास की गति बहुत तेजी से चलती है परंतु कुछ अन्य क्षेत्रों में बेहद धीमी गति से चलती है। विकास प्रासंगिक होता है, इसके अलावा यह एक परिवेश एवं सामाजिक संस्कृति से भी प्रभावित होता है।

विकास के प्रकार

मनोवैज्ञानिकों ने विकास को कई भागों में विभाजित किया है जैसे (types of development in hindi) :-

  • मानसिक विकास (Mental Development)
  • शारीरिक विकास (Physical Development)
  • सामाजिक विकास (Social Development)
  • क्रियात्मक विकास (Functional Development)
  • भाषागत विकास (Linguistic Development)
  • संवेगात्मक विकास (Emotional Development)

मानसिक विकास (Mental Development)

मानसिक विकास या बौद्धिक विकास का संबंध मनुष्य की मानसिक योग्यता एवं क्षमता से होता है। यह मुख्य रूप से किसी व्यक्ति की मानसिक वृद्धि एवं विकास की गति को समायोजित करता है। जिस प्रकार बेहतर जीवन यापन के लिए शारीरिक विकास की आवश्यकता होती है ठीक उसी प्रकार मानसिक विकास भी बेहतर जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। माना जाता है कि किसी व्यक्ति की बाल्यावस्था में उसकी मानसिक विकास की गति तीव्र होती है, जो व्यक्ति को सीखने एवं समझने में सहयोग प्रदान करती हैं। इसके अलावा व्यक्तियों में बेहद कम उम्र से ही रुचि, स्मरण, चिंतन, निर्णय, समस्या का समाधान करने आदि के गुण विकसित होते रहते हैं जिसे उस व्यक्ति के मानसिक विकास की क्रिया से दर्शाया जाता है।

शारीरिक विकास (Physical Development)

शारीरिक विकास का तात्पर्य बालक की शारीरिक संरचना एवं उसमें होने वाले परिवर्तन से होता है जिसमें उसके शरीर में होने वाले बदलाव जैसे उसकी बढ़ती लंबाई, हड्डियों का विकास, शारीरिक बल आदि के गुणों को देखा जाता है। माना जाता है कि उत्तम शारीरिक विकास किसी मनुष्य के संपूर्ण व्यवहार, व्यक्तित्व एवं कार्य प्रणाली को बेहद प्रभावित करता है। शारीरिक विकास वास्तव में व्यक्ति के अंदर होने वाले विभिन्न प्रकार की क्रियाओं एवं उसकी मांसपेशियों की वृद्धि पर निर्भर करता है।

सामाजिक विकास (Social Development)

सामाजिक विकास वह प्रक्रिया होती है जिसके कारण एक साधारण समाज एक विकसित समाज के रूप में परिवर्तित होता है। यह वह साधन है जिसमें एक सरल समाज को जटिल समाज में बदलने की क्षमता होती है। यह एक समाज को मुख्य रूप से योग्य बनाने का कार्य करता है जिसके कारण समाज से जुड़े सभी लोगों की आवश्यकताओं को आसानी से पूरा किया जा सकता है। एक परिवर्तित समाज के अंतर्गत सद्गुण व्यवहार, चरित्र निर्माण एवं जीवन से संबंधित सभी व्यवहारिक शिक्षा आदि का विकास होता है। यह एक देश को प्रगति की राह पर ले जाने का कार्य करती है। सामाजिक विकास के परिणामस्वरूप नागरिकों में आत्मसम्मान एवं स्वाभिमान जैसी भावनाओं का भी विकास होता है जिससे एक आदर्श समाज की स्थापना होती है।

क्रियात्मक विकास (Functional Development)

क्रियात्मक विकास का संबंध व्यक्ति के कार्य करने की क्षमताओं एवं योग्यताओं से होता है। क्रियात्मक विकास होने से मनुष्य में तार्किक क्षमताएं विकसित होती हैं जिससे वह व्यक्ति महत्वपूर्ण निर्णय लेने के योग्य हो जाता है। इसके अलावा क्रियात्मक विकास की क्रिया से व्यक्तियों में अमूर्त चिन्तन (Abstract thinking) के गुण भी विकसित हो जाते हैं। यह वे शारीरिक गतिविधियां होती हैं जो मांसपेशियों एवं तंत्रिका तंत्र की गतिविधियों को संयोजित करके व्यक्तियों की कार्य क्षमता को बढ़ावा देती हैं।

भाषागत विकास (Linguistic Development)

भाषागत विकास एक प्रकार का संज्ञात्मक विकास होता है जो भाषा के माध्यम से मन के भावों एवं विचारों को एक दूसरे के सम्मुख प्रस्तुत करता है। भाषागत विकास की शुरुआत ध्वनियों एवं इशारों के माध्यम से होती है जिसके बाद यह शब्दों एवं वाक्यों के रूप में परिवर्तित होती हैं। किसी भी व्यक्ति से संवाद करने की प्रक्रिया हेतु किसी भाषा का होना अत्यंत आवश्यक होता है। इसके अंतर्गत एक व्यक्ति अपने विचारों को बोलकर या लिखकर प्रकट करता है।

संवेगात्मक विकास (Emotional Development)

संवेगात्मक विकास वह मानसिक अवस्था होती है जिसमें शारीरिक पक्ष के साथ-साथ मानसिक पक्ष का भी समावेश होता है। संवेगात्मक विकास को ईर्ष्या, प्रेम, क्रोध, भय, पीड़ा आदि संवेगों की श्रेणी में रखा गया है। यह मानव व्यवहार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। संवेगात्मक विकास व्यक्तियों के शारीरिक एवं मानसिक विकास पर भी गहरा प्रभाव डालते हैं। इसके अलावा यह व्यक्तियों के सामाजिक एवं घरेलू व्यवहार को भी प्रेरित करते हैं।

 

वृद्धि और विकास में अंतर

वृद्धि और विकास में निम्नलिखित अंतर होते हैं ( difference between growth and development in hindi ) :-

  • वृद्धि मुख्य रूप से विकास की प्रक्रिया का परिणाम होता है जबकि विकास स्वयं एक प्रक्रिया होती है।
  • वृद्धि परिणात्मक स्थिति होती है जबकि विकास गुणात्मक स्थिति होती है।
  • मनुष्य में वृद्धि किशोरावस्था तक सीमित होती है जबकि विकास की क्रिया संपूर्ण जीवन तक चलती रहती है।
  • वृद्धि को मापदंड की श्रेणी में रखा जा सकता है परंतु विकास को मापना कठिन होता है।
  • वृद्धि का संबंध केवल शारीरिक परिवर्तन से होता है जबकि विकास का संबंध शारीरिक, मानसिक, सांवेगिक एवं सामाजिक परिवर्तन से होता है।
  • वृद्धि की क्रिया बाह्य एवं आंतरिक रूप में हो सकती है परंतु विकास की प्रक्रिया केवल आंतरिक रूप से होती है।
  • वृद्धि के अंतर्गत होने वाले परिवर्तनों को सामान्य रूप से किसी व्यक्ति के जीवन में देखा जा सकता है परंतु विकास के अंतर्गत होने वाले परिवर्तनों को सामान्यत: देखा नहीं जा सकता है क्योंकि यह अप्रत्यक्ष होता है।
  • वृद्धि मुख्य रूप से विकास की सतत प्रक्रिया का एक छोटा चरण माना जाता है जबकि विकास एक विस्तृत शब्द है।
  • वृद्धि का संकुचित अर्थ शारीरिक आकार की बढ़ने की क्रिया होता है जबकि विकास मुख्य रूप से व्यक्ति की मानसिक क्रियाओं को दर्शाता है।