जैसा हम सभी जानते है कि वर्तमान में फिल्म अभिनेता सलमान खान ब्लैक बक केस (Black buck Poaching Case) में दोषी पाए गए हैं। इसलिए हम सभी के मन में एक प्रश्न जरुर आ रहा होगा कि हमारे कानून में ऐसा क्या है जो ये सब कृत्य करने से एक इंसान को दंड देता है? दरअसल वन्य जीव अपराधों की रोकथाम, अवैध शिकार पर लगाम और वन्यजीव उत्पादों के अवैध व्यापार पर रोक लगाने के लिए सरकार ने 1972 में वन्य जीव संरक्षण अधिनियम लागू किया। आज हम इसी अधिनियम (Wild Life Protection Act) के विषय में चर्चा करेंगे।
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वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972
भारत सरकार ने देश के वन्य जीवन की रक्षा करने और प्रभावी ढंग से अवैध शिकार, तस्करी और वन्य जीवन और उसके व्युत्प्न्न के अवैध व्यापार को नियंत्रित करने के उद्देश्य से वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 लागू किया। अधिनियम जनवरी 2003 में संशोधित किया गया था और कानून के तहत अपराधों के लिए सजा और जुर्माना और अधिक कठोर बना दिया गया। मंत्रालय ने अधिनियम को मजबूत बनाने के लिए कानून में और संशोधन करके और अधिक कठोर उपायों को शुरू करने का प्रस्ताव किया है। उद्देश्य सूचीबद्ध लुप्तप्राय वनस्पतियों और जीव और पर्यावरण की दृष्टि से महत्वपूर्ण संरक्षित क्षेत्रों को सुरक्षा प्रदान करना है। इस अधिनियम में कुल 6 अनुसूचियाँ हैं जो अलग-अलग तरह से वन्यजीव को सुरक्षा प्रदान करती हैं।
अनुसूची
- अधिनियम की अनुसूची 1 और अनुसूची 2 के दूसरे भाग वन्य जीवन को पूर्ण सुरक्षा प्रदान करते हैं। इसलिए इसमेंकठोरतम सजा का प्रावधान है।
- अनुसूची 3 और अनुसूची 4 भी वन्य जीवों को संरक्षण प्रदान करती हैं किन्तु इनके लिए निर्धारित सजाबहुत कम है।
- वहीं अनुसूची 5 में वे जानवर शामिल हैंजिनका शिकार हो सकता है।
- जबकि अनुसूची 6 में संरक्षितपौधों की खेती और रोपण पर रोक है।
Note – इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय सम्पूर्ण भारत पर है।
वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम (1972) में लुप्त होती प्रजातियों के संरक्षण की व्यवस्था है तथा इन जातियों के व्यापार की मनाही है। इस अधिनियम के मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं:
- संकट ग्रस्त वन्य प्राणियों की सूची बनाना तथा उनके शिकार पर प्रतिबंध लगाना।
- संकटग्रस्त पौधों को संरक्षण प्रदान करना।
- राष्ट्रीय चिडिय़ाघरों तथा अभयारणयों में मूलभुत सुविधाओं को बनाए रखना तथा प्रबंध व्यवस्था को बेहतर बनाना।
- लुप्त होती प्रजातियों को संरक्षण देना तथा उनके अवैध व्यापार को रोकना।
- चिडियाघरों व अभयारण्यों में वंश वृद्घि कराना।
- वन्य जीवन के लाभो की जानकारी का शिक्षा के माध्यम से प्रचार करना।
- केंद्रीय चिडियाघर प्राधिकरण का गठन करना।
- वन्य जीवन परामर्श बोर्ड का गठन, उसके कार्य तथा अधिकार सुनिश्चित करना।
सजा का प्रावधान
- अधिनियम के तहत् बने नियम या शर्तो के उल्लघंन पर – तीन वर्ष तक का कारावास या अर्थदंड जो 25000/- रूपये तक हो सकता है या दोनों का भागी होगा।
- वन्य प्राणी के मॉस आदि के संबंध में किए गए अपराध या अभ्यारण्य या राष्ट्रीय उद्यान में शिकार करने पर अथवा उसकी सीमाओं में परिवर्तन करने पर कारावास जिसकी सीमा 3 वर्ष से कम नहीं होगी किन्तु जिसका विस्तार 7 वर्ष तक हो सकता है और जुर्मान के साथ भी जो 10000/- रूपये से कम नही होगा। उपरोक्त अपराध पुनः किए जाने पर “ऐसे कारावास जिसकी सीमा 3 वर्ष से कम नहीं होगी किन्तु जिसका विस्तार 7 वर्ष तक हो सकता है, और जुर्माने के साथ भी जो 25000/- रूपये से कम नही होगा।”
उपरोक्त अपराध में उपयोग किए जाने वाले फंदा, औजार, हथियार, वाहन, जहाज या अन्य वस्तुएं राजसात की जाएंगी तथा ऐसे व्यक्तियों को यदि कोई अनुज्ञप्ति (लाईसेंस) प्राप्त हो तो उसे निरस्त किया जाएगा।
अन्य कानून
इस अधिनियम के अलावा केंद्र और राज्य सरकारों ने समय-समय पर वन्य जीव की सुरक्षा और संरक्षण के लिए कई नियम और कानून पारित किये हैं जैसे –
- मद्रास वाइल्ड एलीफैंट प्रिजर्वेशन एक्ट, 1873
- ऑल इंडिया एलीफैंटप्रिजर्वेशन एक्ट, 1879
- द वाइल्ड बर्ड एंड एनिमल्स प्रोटेक्शन एक्ट, 1912
- बंगाल राइनोसेरसप्रिजर्वेशन एक्ट, 1932
- असमराइनोसेरस प्रिजर्वेशन एक्ट, 1954
- इंडियन बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ (IBWL), 1952
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