खिलज़ी वंश का अंत कर दिल्ली में एक नये वंश का उदय हुआ जिसे तुगलक वंश (Tughlaq Dynasty) कहते है। तुगलक वंश (Tughlaq Dynasty) ने दिल्ली पर 1320 से 1413 ई. तक राज किया। तुगलक वंश का पहला शासक गाज़ी मालिकजिसने अपने को अपने गयासुद्दीन तुगलक के रूप में पेश किया।
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तुगलक़ वंश (1320-1413)
तुगलक वंश के शासक :-
- गयासुद्दीन तुगलक (1320-25 ई.)
- मोहम्मद तुगलक (1325-51 ई.)
- फिरोज शाह तुगलक (1351-88 ई.)
- मोहम्मद खान (1388 ई.)
- गयासुद्दीन तुगलक शाह II (1388 ई.)
- अबू बाकर (1389-90 ई.)
- नसीरुद्दीन मोहम्मद (1390-94 ई.)
- हूंमायू (1394-95 ई.)
- नसीरुद्दीन महमूद (1395-1412 ई.)
गयासुद्दीन तुगलक Ghiyath al-Din Tughluq (1320-25 ई.)
यह दिल्ली सल्तनत पर तुगलक वंश की स्थापना करने वाला प्रथम शासक था। इसका पूर्व नाम गाजी मलिक था, जिसने दिल्ली सल्तनत के सिंहासन पर बैठने के बाद अपना नाम गयासुद्दीन कर लिया। गयासुद्दीन 8 सितंबर 1320 को यह दिल्ली की गद्दी पर बैठा और अगले पांच वर्ष तक शासन किया। वह पहला एेसा शासक था, जिसने अपने नाम के साथ गाजी शब्द (काफिरों का वध करने वाला) जोड़ा था। इसे तुगलक गाजी भी कहते थे। उसने मंगोलों के 23 आक्रमण विफल किए थे।
गयासुद्दीन तुगलक के सुधार
- गयासुद्दीन तुग़लक़ ने आर्थिक सुधार के अन्तर्गत अपनी आर्थिक नीति का आधार संयम, सख्ती एवं नरमी के मध्य संतुलन (रस्म-ए-मियान) को बनाया।
- उसने लगान के रूप में उपज का 1/10 या 1/12 हिस्सा ही लेने का आदेश जारी कराया।
- ग़यासुद्दीन ने मध्यवर्ती ज़मीदारों विशेष रूप से मुकद्दम तथा खूतों को उनके पुराने अधिकार लौटा दिए, जिससे उनको वही स्थिति प्राप्त हो गयी, जो बलबन के समय में प्राप्त थी।
- ग़यासुद्दीन ने अमीरों की भूमि पुनः लौटा दी।
- उसने सिंचाई के लिए कुँए एवं नहरों का निर्माण करवाया। सम्भवतः नहर का निर्माण करवाने वाला ग़यासुद्दीन प्रथम सुल्तान था।
- सल्तनत काल में डाक व्यवस्था को सुदृढ़ करने का श्रेय ग़यासुद्दीन तुग़लक़ को ही जाता है।
- अलाउद्दीन ख़िलजी की कठोर नीति के विरुद्ध उसने उदारता की नीति अपनायी, जिसे बरनी ने ‘रस्मेमियान’ अथवा ‘मध्यपंथी नीति’ कहा है।
- उसने अलाउद्दीन ख़िलजी द्वारा चलाई गयी दाग़ने तथा चेहरा प्रथा को प्रभावी तरीक़े से लागू किया।
महत्त्वपूर्ण विजय
- वारंगल व तेलंगाना की विजय (1324 ई.)
- तिरहुती विजय, मंगोल विजय (1324 ई.)
निर्माण कार्य
- तुग़लक़ाबाद नामक एक दुर्ग की नींव रखी।
मृत्यु
- जब ग़यासुद्दीन तुग़लक़ बंगाल अभियान से लौट रहा था, तब लौटते समय तुग़लक़ाबाद से 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अफ़ग़ानपुर में एक महल में सुल्तान ग़यासुद्दीन के प्रवेश करते ही वह महल गिर गया, जिसमें दबकर उसकी मार्च, 1325 ई. को मुत्यृ हो गयी।
- ग़यासुद्दीन तुग़लक़ का मक़बरा तुग़लक़ाबाद में स्थित है।
मोहम्मद तुगलक Muhammad bin Tughluq (1325-51 ई.)
मुहम्मद बिन तुग़लक़ दिल्ली सल्तनत में तुग़लक़ वंश का शासक था। ग़यासुद्दीन तुग़लक़ की मृत्यु के बाद उसका पुत्र ‘जूना ख़ाँ’, मुहम्मद बिन तुग़लक़ (1325-1351 ई.) के नाम से दिल्ली की गद्दी पर बैठा। इसका मूल नाम ‘उलूग ख़ाँ’ था। मध्यकालीन सभी सुल्तानों में मुहम्मद तुग़लक़ सर्वाधिक शिक्षित, विद्वान एवं योग्य व्यक्ति था। इसके अलावा वह पर्सियन कविता का बहुत बड़ा प्रशंसक था। उसकी सोच उसके समय से बहुत आगे थी। उसने बहुत सारे विचारो पर मंथन किया लेकिन उन विचारो के क्रियान्वयन से जुड़े उसके पैमाने बहुत मजबूत और टिकाऊ नहीं थे इसीलिए वह असफल रहा। उसने अपने राज्य में मध्य राजधानी की स्थापना और टोकन करेंसी (प्रतीक मुद्रा) के रूप में विभिन्न प्रयोग किये लेकिन वह पूरी तरह से असफल रहा। अपनी सनक भरी योजनाओं के कारण इसे ‘स्वप्नशील’, ‘पागल’ एवं ‘रक्त-पिपासु’ कहा गया है।
मुहम्मद बिन तुग़लक़ के कार्य
- दोआब क्षेत्र में कर वृद्धि (1326-27 ई.) – मुहम्मद तुग़लक़ ने दोआब के ऊपजाऊ प्रदेश में कर की वृद्धि कर दी (संभवतः 50 प्रतिशत), परन्तु उसी वर्ष दोआब में भयंकर अकाल पड़ गया, जिससे पैदावार प्रभावित हुई। तुग़लक़ के अधिकारियों द्वारा ज़बरन कर वसूलने से उस क्षेत्र में विद्रोह हो गया, जिससे तुग़लक़ की यह योजना असफल रही। मुहम्मद तुग़लक़ ने कृषि के विकास के लिए ‘दिवाण-ए- अमीर कोही’ नामक एक नवीन विभाग की स्थापना की। सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार, किसानों की उदासीनता, भूमि का अच्छा न होना इत्यादि कारणों से कृषि उन्नति सम्बन्धी अपनी योजना को तीन वर्ष पश्चात् समाप्त कर दिया। मुहम्मद बिन तुग़लक़ ने किसानों को बहुत कम ब्याज पर ऋण (सोनथर) उपलब्ध कराया।
- राजधानी परिवर्तन (1326-27 ई.) – तुग़लक़ ने अपनी योजना के अन्तर्गत राजधानी को दिल्ली से देवगिरि स्थानान्तरित किया। देवगिरि को “कुव्वतुल इस्लाम” भी कहा गया। सुल्तान कुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी ने देवगिरि का नाम ‘कुतुबाबाद’ रखा था और मुहम्मद बिन तुग़लक़ ने इसका नाम बदलकर दौलताबाद कर दिया। सुल्तान की इस योजना के लिए सर्वाधिक आलोचना की गई। मुहम्मद तुग़लक़ की यह योजना भी पूर्णतः असफल रही और उसने 1335 ई. में दौलताबाद से लोगों को दिल्ली वापस आने की अनुमति दे दी। राजधानी परिवर्तन के परिणामस्वरूप दक्षिण में मुस्लिम संस्कृति का विकास हुआ, जिसने अंततः बहमनी साम्राज्य के उदय का मार्ग खोला।
- सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन (1329-30 ई.) – इस योजना के अन्तर्गत मुहम्मद तुग़लक़ ने सांकेतिक व प्रतीकात्मक सिक्कों का प्रचलन करवाया। मुहम्मद तुग़लक़ ने ‘दोकानी’ नामक सिक्के का प्रचलन करवाया। सांकेतिक मुद्रा के अन्तर्गत सुल्तान ने संभवतः पीतल (फ़रिश्ता के अनुसार) और तांबा (बरनी के अनुसार) धातुओं के सिक्के चलाये, जिसका मूल्य चांदी के रुपये टका के बराबर होता था। सिक्का ढालने पर राज्य का नियंत्रण नहीं रहने से अनेक जाली टकसाल बन गये। लगान जाली सिक्के से दिया जाने लगा, जिससे अर्थव्यवसथा ठप्प हो गई। सांकेतिक मुद्रा चलाने की प्रेरणा चीन तथा ईरान से मिली। वहाँ के शासकों ने इन योजनाओं को सफलतापूर्वक चलाया, जबकि मुहम्मद तुग़लक़ का प्रयोग विफल रहा। सुल्तान को अपनी इस योजना की असफलता पर भयानक आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ा।
- खुरासन एवं काराचिल का अभियान
- चौथी योजना के अन्तर्गत मुहम्मद तुग़लक़ के खुरासान एवं कराचिल विजय अभियान का उल्लेख किया जाता है। खुरासन को जीतने के लिए मुहम्मद तुग़लक़ ने 3,70,000 सैनिकों की विशाल सेना को एक वर्ष का अग्रिम वेतन दे दिया, परन्तु राजनीतिक परिवर्तन के कारण दोनों देशों के मध्य समझौता हो गया, जिससे सुल्तान की यह योजना असफल रही और उसे आर्थिक रूप से हानि उठानी पड़ी।
- कराचिल अभियान के अन्तर्गत सुल्तान ने खुसरो मलिक के नेतृत्व में एक विशाल सेना को पहाड़ी राज्यों को जीतने के लिए भेजा। उसकी पूरी सेना जंगली रास्तों में भटक गई, इब्न बतूता के अनुसार अन्ततः केवल दस अधिकारी ही बचकर वापस आ सके। इस प्रकार मुहम्मद तुग़लक़ की यह योजना भी असफल रही।
मृत्यु
- अपने शासन काल के अन्तिम समय में जब सुल्तान मुहम्मद तुग़लक़ गुजरात में विद्रोह को कुचल कर तार्गी को समाप्त करने के लिए सिंध की ओर बढ़ा, तो मार्ग में थट्टा के निकट गोंडाल पहुँचकर वह गंभीर रूप से बीमार हो गया। यहाँ पर सुल्तान की 20 मार्च 1351 को मृत्यु हो गई।
फिरोज शाह तुगलक Firuz Shah Tughlaq (1351-88 ई.)
फ़िरोज़ शाह तुगलक 45 वर्ष की उम्र में दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर बैठा। उसके पिता का नाम रज्ज़ब था जोकि गियासुद्दीन तुगलक का छोटा भाई था जबकि उसकी माता दीपालपुर की राजकुमारी थी। गद्दी पर बैठने के बाद उसने बहुत सारे उन निर्णयों को वापस ले लिया जोकि उसके पूर्व के शासक के द्वारा लिए गए थे। उसने शरियत के अनुसार शासन किया और शरियत में जिन करों का उल्लेख नहीं किया गया था उसे बंद कर दिया।
फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ के कार्य
- राजस्व व्यवस्था के अन्तर्गत फ़िरोज़ ने अपने शासन काल में 24 कष्टदायक करों को समाप्त कर दिया और केवल 4 कर ‘ख़राज’ (लगान), ‘खुम्स’ (युद्ध में लूट का माल), ‘जज़िया’, एवं ‘ज़कात’ (इस्लाम धर्म के अनुसार अढ़ाई प्रतिशत का दान, जो उन लोगों को देना पड़्ता है, जो मालदार हों और उन लोगों को दिया जाता है, जो अपाहिज या असहाय और साधनहीन हों) को वसूल करने का आदेश दिया।
- उलेमाओं के आदेश पर सुल्तान ने एक नया सिंचाई (हक ए शर्ब) कर भी लगाया, जो उपज का 1/10 भाग वसूला जाता था।
- सुल्तान ने सिंचाई की सुविधा के लिए 5 बड़ी नहरें यमुना नदी से हिसार तक 150 मील लम्बी सतलुज नदी से घग्घर नदी तक 96 मील लम्बी सिरमौर की पहाड़ी से लेकर हांसी तक, घग्घर से फ़िरोज़ाबाद तक एवं यमुना से फ़िरोज़ाबाद तक का निर्माण करवाया।
- उसने फलो के लगभग 1200 बाग़ लगवाये।
- आन्तरिक व्यापार को बढ़ाने के लिए अनेक करों को समाप्त कर दिया।
- नगर एवं सार्वजनिक निर्माण कार्यों के अन्तर्गत सुल्तान ने लगभग 300 नये नगरों की स्थापना की।
- जौनपुर नगर की नींव फ़िरोज़ ने अपने चचेरे भाई ‘फ़खरुद्दीन जौना’ (मुहम्मद बिन तुग़लक़) की स्मृति में डाली थी।
- उसके शासन काल में ख़िज्राबाद एवं मेरठ से अशोक के दो स्तम्भलेखों को लाकर दिल्ली में स्थापित किया गया।
- अपने कल्याणकारी कार्यों के अन्तर्गत फ़िरोज़ ने एक रोज़गार का दफ्तर एवं मुस्लिम अनाथ स्त्रियों, विधवाओं एवं लड़कियों की सहायता हेतु एक नये ‘दीवान-ए-ख़ैरात’ नामक विभाग की स्थापना की।
- ‘दारुल-शफ़ा’ (शफ़ा=जीवन का अंतिम किनारा, जीवन का अंतिम भाग) नामक एक राजकीय अस्पताल का निर्माण करवाया, जिसमें ग़रीबों का मुफ़्त इलाज होता था।
- फ़िरोज़ के शासनकाल में दासों की संख्या लगभग 1,80,000 पहुँच गई थी। इनकी देखभाल हेतु सुल्तान दे ‘दीवान-ए-बंदग़ान’ की स्थापना की।
संरक्षण
- शिक्षा प्रसार के क्षेत्र में सुल्तान फ़िरोज़ ने अनेक मक़बरों एवं मदरसों की स्थापना करवायी। उसने ‘जियाउद्दीन बरनी’ एवं ‘शम्स-ए-सिराज अफीफ’ को अपना संरक्षण प्रदान किया।
- बरनी ने ‘फ़तवा-ए-जहाँदारी’ एवं ‘तारीख़-ए-फ़िरोज़शाही’ की रचना की।
- फ़िरोज़ ने अपनी आत्मकथा ‘फुतूहात-ए-फ़िरोज़शाही’ की रचना की।
मृत्यु
- फ़िरोज़ शाह तुगलक की मृत्यु सितम्बर 1388 ई. में हुई थी। हौज़खास परिसर, दिल्ली में उसे दफ़ना दिया गया।
मोहम्मद खान Mohammad Khan (1388 ई.)
फ़िरोज़ शाह तुगलक की मृत्यु 1388 ई. में हुई थी। उसके बाद दिल्ली सल्तनत में कुछ दिनों के लिए मोहमद खान ने दिल्ली में शासन किया और कुछ दिनों के भीतर ही उनकी हत्या कर दी गई।
गयासुद्दीन तुगलक शाह II Gaiusuddin Tughlaq Shah II (1388 ई.)
फ़िरोज़ शाह तुगलक और मोहमद खान के हत्या के बाद दिल्ली सल्तनत में फ़िरोज़ शाह तुगलक का पोता गियासुद्दीन अगला शासक बना लेकिन 5 महीने के अल्प शासन के बाद उसकी हत्या कर दी गयी।
अबू बाकर Abu Bakr (1389-90 ई.)
गयासुद्दीन तुगलक शाह II की हत्या करके फ़रवरी 1389 ई. में जफ़र खां के पुत्र अबू बक्र स्वयं सुल्तान बन गया।
नसीरुद्दीन मोहम्मद शाह Nasiruddin Mohammad Shah (1390-94 ई.)
तुगलक शाह की हत्या कर अबू बक्र ने 1389 ई. में सल्तनत पर शासन का आरम्भ किया। दिल्ली के कोतवाल, मुलतान, समाना, लाहौर के अक्त्तादारों ने मुहमद शाह को सहयोग देकर 1390 ई. में अबू बक्र को शासन से हटा दिया और नासिरुद्दीन मुहम्मद शाह स्वयं शासक बन गया। नासिरुद्दीन मुहम्मद शाह ने 1390 से 1394 ई. तक शासन किया।
हूंमायू Hmaiyu (1394-95 ई.)
नासिरुद्दीन मुहम्मद शाह के दिल्ली सल्तनत में उनका पुत्र हुंमायू ने लगभग 3 माह तक शासक किया और उसकी मृत्यु हो गई।
नसीरुद्दीन महमूद शाह Nasiruddin Mehmood Shah (1395-1412 ई.)
मार्च 1394 ई. में दिल्ली सल्तनत का शासक महमूद शाह बना। उसकी दुर्दशा को देखकर व्यंग्य से कहा जाता था – “विश्व के सम्राट तुगलकों का राज्य दिल्ली से पालम तक फैला हुआ था।” 17 दिसम्बर, 1398 ई. को तैमूर का आक्रमण दिल्ली पर हो गया तथा सुल्तान स्वयं गुजरात भाग गया। पुनः वजीर मल्लू खां ने सुल्तान को दिल्ली बुलाकर गद्दी पर बिठाया। सन 1412 ई. में महमूद शाह की मृत्यु हो गई, जिससे तुगलक वंश का अंत हो गया।
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