राजस्थान राज्य का राज्य वृक्ष 'खेजड़ी'

राजस्थान राज्य का राज्य वृक्ष ‘खेजड़ी’

राजस्थान राज्य वृक्ष – राजस्थान राज्य वृक्ष खेजड़ी है जिसे “रेगिस्तान का गौरव” अथवा “थार का कल्पवृक्ष” के नाम से भी जाना जाता है। इसे 1983 में राजस्थान का राज्य वृक्ष घोषित किया गया था।खेजड़ी का वैज्ञानिक नाम “प्रोसेसिप-सिनेरेरिया” (Prosopis Cineraria) होता है। खेजड़ी वृक्ष पश्चिमी एशिया और भारतीय उपमहाद्वीप के शुष्क भाग का मूल निवासी है, साथ ही यह अफगानिस्तान, बहरीन, ईरान, ओमान, पाकिस्तान, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और यमन आदि में भी पाया जाता है।

राजस्थान राज्य का राज्य वृक्ष 'खेजड़ी'
राजस्थान राज्य का राज्य वृक्ष ‘खेजड़ी’ “प्रोसेसिप-सिनेरेरिया” (Prosopis Cineraria)

विजयादशमी/दशहरे के दिन खेजड़ी वृक्ष की पुजा की जाती है। खेजड़ी के वृक्ष शेखावटी क्षेत्र में सर्वाधिक रूप से देखे जाते हैं तथा नागौर जिले में सर्वाधिक रूप से खेजड़ी का वृक्ष पाया जाता है। खेजड़ी वृक्ष अत्यधिक सूखा भी आराम से सहन कर सकता है।

गोगाजी व झुंझार बाबा का थान या मंदिर खेजड़ी के वृक्ष के नीचे बनाया जाता है। विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून 1988 को खेजड़ी वृक्ष पर 60 पैसे का डाक टिकट जारी किया गया था। खेजडी वृक्ष की हरी फलीयों को ‘सांगरी’ और सुखी फलीयों को ‘खोखा’ तथा पत्तियों से बने चारे को ‘लुंग अथवा लुम’ कहा जाता है।

खेजड़ी वृक्ष को हरियाणवी एवं पंजाबी भाषा में ‘जांटी’, कन्नड़ भाषा में ‘बन्ना-बन्नी’, तमिल भाषा में ‘पेयमेय’, सिंधी भाषा में ‘धोकड़ा’ कहा जाता है। बिश्नोई सम्प्रदाय के लोग ‘शमी’ के नाम से खेजड़ी को पुकारते हैं। खेजड़ी के पेड़ को स्थानीय भाषा में ‘सीमलो’ कहा जाता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इसे ‘छोंकारा’ के नाम से जाना जाता है और तेलंगाना में इसे ‘जम्मी’ के नाम से जाना जाता है।

खेजड़ी के वृक्ष को सेलेस्ट्रेना नामक कीड़ा एवं ग्लाइकोट्रमा नामक कवक नुकसान पहुँचाते हैं। राजस्थान के अजमेर में मांगलियावास गाँव में खेजड़ी के 1000 वर्ष पुराने 2 वृक्ष मिले हैं, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसे यक्ष और यक्षिणी ने भगवान ब्रह्मा जी द्वारा किए गए यज्ञ के समय पुष्कर सरोवर की यात्रा के दौरान लगाया था। वैज्ञानिकों के अनुसार खेजड़ी वृक्ष की आयु 5000 वर्ष तक होती है।

भाद्रपद शुक्ल दशमी सन 1730 को जोधुपर के खेजड़ली गाँव में अमृतादेवी एवं उनकी तीन जवान बेटियों सहित 363 लोगों ने साथ मिलकर खेजड़ी के लिए राज्य में सर्वप्रथम बलिदान दिया गया था तब जोधपुर का तत्कालीन शासक अभय सिंह था, जिसके आदेश पर गिरधरदास के द्वारा 363 लोगों की हत्या कर दी गई। जोधपुर के शासक अभय सिंह खेजड़ी के वृक्ष काटकर अपना नया महल बनाना चाहते थे। 1970 के दशक में इसी बलिदान की याद में चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई।

अमृता देवी बिश्नोई सम्प्रदाय के रामो जी बिश्नोई की पत्नी थी इसलिए बिश्नोई सम्प्रदाय में यह बलिदान ‘साका/खडाना’ कहलाता है। वर्ष 1994 से ‘अमृता देवी वन्य जीव पुरस्कार’ वन्य जीव सरंक्षण के लिए दिया जाने वाला सर्वक्षेष्ठ पुरस्कार है।

अमृता देवी वन्य जीव पुरस्कार के तहत संस्था को 50,000 रूपये व व्यक्ति को 25,000 रूपये दिये जाते हैं। पाली के ‘गंगाराम बिश्नोई’ को प्रथम अमृता देवी वन्यजीव पुरस्कार दिया गया था। अमृता देवी के सम्मान में राजस्‍थान सरकार ने ‘राज्य जीव-जंतु कल्याण बोर्ड का नाम’ ‘अमृता देवी राज्य जीव-जंतु कल्याण बोर्ड’ करने का अहम निर्णय लिया।

पर्यावरण की रक्षा के लिए राष्ट्रीय पर्यावरण दिवस के रूप में प्रथम खेजड़ली दिवस 12 सितम्बर 1978 को मनाया गया था क्योंकि इसी दिन खेजङली आंदोलन शुरु हुआ था। प्रत्येक वर्ष 12 सितम्बर को खेजड़ली दिवस के रूप में मनाया जाता है।

खेजड़ी वृक्ष के नाम पर ही राजस्थान में ‘ऑपरेशन खेजड़ी’ कार्यक्रम 1991 में चलाया गया था। इस कार्यक्रम का उद्देश्य राजस्थान में मरुस्थल प्रसार को रोकना था। खेजड़ी पेड़ की पत्तियां मुंह के छालों को ठीक करने में भी कारगर होती हैं। इसकी पत्तियों को कुछ मिनट तक चबाने से पत्तियों का रस मुंह में रखने से छालों से राहत मिल सकती है एवं सूजन काफी कम हो जाती है। फिर रस को निगलने के बजाय उगल दिया जाता है।

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