पृथ्वी के घूमने का कारण, पृथ्वी का अपनी धुरी पर घूमने से क्या होता है

पृथ्वी के घूमने का कारण, पृथ्वी का अपनी धुरी पर घूमने से क्या होता है

पृथ्वी के घूमने का कारण, पृथ्वी का अपनी धुरी पर घूमने से क्या होता है, पृथ्वी गोल क्यों घूमती है, पृथ्वी घूमती है या सूर्य, पृथ्वी किस दिशा में घूमती है, पृथ्वी पश्चिम से पूर्व क्यों घूमती है, जब पृथ्वी घूमती है तो हम क्यों नहीं घूमते, हम पृथ्वी के अंदर है या बाहर, पृथ्वी के नीचे क्या है आदि प्रश्नों के उत्तर यहाँ दिए गए हैं।

पृथ्वी के घूमने का कारण

पृथ्वी एवं अन्य ग्रहों का निर्माण कई गैस एवं धूल के कणों से हुआ है। 4.6 अरब साल पहले गैस एवं धूल के कणों के बड़े-बड़े बादल अपने अंदर मौजूद पदार्थ एवं अपने ही गुरुत्वाकर्षण के कारण घूमने लगे और धीरे-धीरे इनसे ग्रहों का निर्माण हुआ लेकिन इनका घूर्णन जारी रहा और अब तक पृथ्वी घूमती रहती है क्योंकि इसे रोकने के लिए कोई बल या शक्ति उपलब्ध नहीं है जो इसका घूर्णन रोक सके। पृथ्वी की घूमने की गति दो प्रकार की होती है घूर्णन एवं परिक्रमण।

एक ओर जहां पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमना घूर्णन कहलाता है तो वही दूसरी तरफ सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने की गति को परिक्रमण कहा जाता है। पृथ्वी के घूमने का कारण उसके चुंबकीय क्षेत्र को माना जाता है। पृथ्वी अपने अक्ष पर 23.5 डिग्री झुकी हुई है एवं वह सूर्य का एक चक्कर 365 दिनों में पूरा करती है। पृथ्वी के घूर्णन एवं परिक्रमण करने के कारण ही पृथ्वी पर समय एवं मौसम में बदलाव आते हैं। इसी कारण पृथ्वी पर दिन-रात एवं सर्दी-गर्मी के मौसम में बदलाव देखे जाते हैं।

पृथ्वी का अपनी धुरी पर घूमने से क्या होता है

पृथ्वी का अपनी धुरी पर घूमने से दिन और रात होते हैं। इस क्रिया को पृथ्वी की दैनिक गति भी कहा जाता है। इसके साथ ही सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करने को वार्षिक गति कहा जाता है। पृथ्वी अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर घूमती रहती है एवं घूर्णन को पूरा करने में पृथ्वी को 23 घंटे 56 मिनट एवं 4.09 सेकंड का समय लगता है।

पृथ्वी गोल क्यों घूमती है

पृथ्वी अपने आकार एवं वातावरणीय दबाव के कारण गोल घूमती है। दरअसल पृथ्वी का निर्माण गैस एवं धूल की एक डिस्क से हुआ है। करोड़ों वर्षों तक इस डिस्क में हुए भौगोलिक बदलाव के कारण धूल एवं चट्टान के कण एक दूसरे से समाते गए जिसके कारण पृथ्वी का निर्माण हुआ। धीरे–धीरे इन चट्टानों का आकार बढ़ता गया और अंतरिक्ष की असंख्य चट्टानें इनसे टकराती गईं। इन टकराव से उत्पन्न होने वाली शक्ति के कारण ही पृथ्वी में घूमने की गति पैदा हुई और पृथ्वी गोल–गोल घूमने लगी।

पृथ्वी घूमती है या सूर्य

पृथ्वी एवं सूर्य दोनो ही घूमते हैं। पृथ्वी अपने अक्ष पर घूर्णन करने के साथ–साथ सूर्य के चक्कर भी लगाती है परंतु सूर्य पृथ्वी या किसी अन्य ग्रह के चक्कर नहीं लगाता। सूर्य परिक्रमण एवं परिभ्रमण दोनों करता है। सूर्य अपनी अक्ष पर घूमकर एक चक्कर लगाता है जिसमें सूर्य को 25 दिनों का समय लग जाता है। सूर्य आकाशगंगा के केंद्र की परिक्रमा करता है। वहीं दूसरी ओर पृथ्वी एवं अन्य ग्रह केवल सूर्य की परिक्रमा करते हैं। पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक स्थिर कक्ष में सूर्य की परिक्रमा करता है जिसमें 365 दिनों का समय लग जाता है।

पृथ्वी किस दिशा में घूमती है

पृथ्वी अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर घूमती है। पृथ्वी के अपने अक्ष पर घूर्णन करने को दैनिक गति (Rotation speed) कहते हैं एवं सूर्य के चक्कर लगाने को परिक्रमण गति (Orbital speed) कहते हैं। दैनिक गति को घूर्णन गति भी कहा जाता है। दैनिक गति में पृथ्वी अपने अक्ष के सापेक्ष पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर किसी लट्टू की भांति  घूर्णन करती रहती है। आश्चर्य की बात है कि पृथ्वी इस दिशा में लगभग 1670 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से घूमती है। परिक्रमण गति वह होती है जिसमें पृथ्वी या कोई अन्य गृह किसी एक केंद्र के इर्दगिर्द कक्षीय चाल में परिक्रमण करता है। इसे पृथ्वी की वार्षिक गति भी कहा जाता है।

पृथ्वी पश्चिम से पूर्व क्यों घूमती है

पृथ्वी अपनी चुंबकीय क्षेत्र के कारण पश्चिम से पूर्व दिशा में घूमती है। उत्तरी ध्रुव के ऊपर से देखने पर यह पता चलता है कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा वामावर्त यानी (anti clockwise) करती है। चौकाने वाली बात यह भी है कि पृथ्वी को यह दिशा सौर्यमंडल की संरचना के समय ही मिल गई थी। सौर्यमंडल में शुक्र एवं अरुण (यूरेनस) को छोड़कर बाकी सभी ग्रह इसी दिशा में घूमते हैं।

जब पृथ्वी घूमती है तो हम क्यों नहीं घूमते

दरअसल पृथ्वी के साथ हम भी घूमते है परन्तु पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल एवं वातावरण के कारण हमें इसका आभास नहीं हो पाता। पृथ्वी अपनी धुरी पर एक निर्धारित गति से घूमती है और हमारे साथ-साथ पृथ्वी पर मौजूद हर चीज़ भी उसी गति से घूमती रहती है परन्तु हमें महसूस नहीं होता। पृथ्वी के साथ–साथ पृथ्वी का वातावरण भी निरंतर घूमता रहता है और हमें पृथ्वी की गति का आभास नहीं हो पाता। यदि पृथ्वी अचानक घूमना बंद कर दे तो हम पृथ्वी की गति को महसूस कर पाएंगे।

हम पृथ्वी के अंदर है या बाहर

हम पृथ्वी के अंदर परंतु बाहरी सतह पर रहते हैं। पृथ्वी पर मौजूद जीव–जंतु, पेड़–पौधे, मनुष्य, जलीय जीव, नदी, झरने आदि ये सभी पृथ्वी की बाहरी सतह पर गुरुत्वाकर्षण बल के कारण चिपके हुए रहते है।

पृथ्वी के नीचे क्या है

वैज्ञानकों की माने तो पृथ्वी के नीचे Vacuum (खाली) है। आकाश गंगा में स्थित पृथ्वी की उत्पत्ति का इतिहास बेहद लंबा एवं रोचक है। दरअसल, पृथ्वी की आतंरिक संरचना तीन प्रमुख अंग हैं।

  • भूपर्पटी (Crust)
  • मध्य स्तर मैंटल (mantle)
  • आंतरिक स्तर धात्विक क्रोड (Core)

भूपर्पटी (Crust)

पृथ्वी की ऊपरी सतह को भूपर्पटी कहते हैं। यह पृथ्वी की सबसे ऊपरी एवं कठोर सतह होती है। यह पृथ्वी के 34 किमी के अंदर तक का क्षेत्र होता है यानी की इसकी मोटाई लगभग 8 से 40 किमी तक की होती है। भूपर्पटी का अधिकांश हिस्सा ऑक्सीजन एवं सिलिका जैसे तत्वों से बना है। इसका निर्माण प्राकृतिक रूप से हर गृह पर होता है। ये हलकी चट्टानों में से एक का बड़ा हिस्सा होती हैं। इसके अलावा पृथ्वी पर मौजूद महाद्वीप एवं महासागर भूपर्पटी के भाग में ही स्थित हैं।

मध्य स्तर मैंटल (mantle)

मध्य स्तर मैंटल पृथ्वी की आतंरिक संरचना का दूसरा अंग है। यह पृथ्वी में अद्र्ध-ठोस (Semi-solid) अवस्था में मौजूद होता है। भूवैज्ञानिकों के अनुसार एक संक्रमण परत मैंटल एवं भूपर्पटी को विभाजित करती है जिसे गुटेनबर्ग विशार्ट असंबद्धता (Gutenberg Discontinuity) के नाम से जाना जाता है। मैंटल की मोटाई लगभग 2895 किमी होती है। मैंटल में मुख्य रूप से संवहनीय धाराएं प्रवाहित होती रहती हैं जिसके परिणामस्वरूप स्थलमंडल की प्लेटों में गति उत्पन्न होती है।

आंतरिक स्तर धात्विक क्रोड (Core)

आंतरिक स्तर धात्विक क्रोड पृथ्वी की सबसे निचली एवं अंतिम परत होती है। इसमें मुख्य रूप से निकल एवं लोहा होता है। इसकी गहराई पृथ्वी के केंद्र तक लगभग 2890 किमी होती है एवं इसका तापमान लगभग सूर्य की सतह के तापमान के समान ही होता है। रोचक बात है कि इसका कुल वजन पृथ्वी के कुल भार का लगभग 1/3 यानि एक तिहाई हिस्सा होता है। क्रोड में द्वितीय भूकंप तरंगों को रोकने की क्षमता होती है। क्रोड की विशेषता यह है कि यह तरल रूप में मौजूद होने के बाद भी ठोस पदार्थ की भांति व्यवहार करता है।

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