श्रीमती गौरा देवी

गौरा देवी (Gaura Devi) को चिपको आंदोलन की जन्मदात्री के रूप में जाना जाता है। गौरा देवी (Gaura Devi) को प्रथम वृक्ष मित्र पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।

Gaura Devi Biography in Hindi

Gaura Devi
Gaura Devi (गौरा देवी)

जन्म वर्ष 1925
मृत्यु 4 जुलाई, 1991
जन्म स्थान लाता गांव, चमोली

 

गौरा देवी का जन्म 1925 में उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले के लाता गांव में श्री नारायण सिंह के घर में इनका हुआ था। गौरा देवी ने कक्षा पांच तक की शिक्षा ग्रहण की थी । मात्र 11 वर्ष की उम्र में इनका विवाह रैंणी गांव के मेहरबान सिंह से हुआ। जब गौरा देवी 22 वर्षीय थी तभी उनके पति का देहांत हो गया था, तब उनका एकमात्र पुत्र चन्द्र सिंह मात्र ढाई साल का था। गौरा देवी ने ससुराल में रहकर छोटे बच्चे की परवरिश, वृद्ध सास-ससुर की सेवा और खेती-बाड़ी, कारोबार के लिये अत्यन्त कष्टों का सामना करना पड़ा। उन्होंने अपने पुत्र को स्वालम्बी बनाया, उन दिनों भारत-तिब्बत व्यापार हुआ करता था, गौरा देवी ने उसके जरिये भी अपनी आजीविका का निर्वाह किया।

1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद यह व्यापार बन्द हो गया तो चन्द्र सिंह ने ठेकेदारी, ऊनी कारोबार और मजदूरी द्वारा आजीविका चलाई। 1970 की अलकनंदा की बाढ़ ने नयी पर्यावरणीय सोच को जन्म दिया। चंडी प्रसाद भट्ट ने गोपेश्वर, जिला चमोली में कार्यरत संस्था ‘‘दशौली ग्राम स्वराज्य मंडल’’ के स्वयं सेवकों को बाढ़ सुरक्षा कार्य करने के साथ-साथ बाढ़ आने के कारणों को भी समझाया। भारत-चीन युद्ध के दौरान बढ़ते मोटर मार्ग के बिछते जालों से पर्यावरणीय समस्याएं अधिक हुईं। अतः बाढ़ से प्रभावित लोगों में संवेदनशील पहाड़ों के प्रति चेतना जागी।

1972 में गौरा देवी महिला मंगल दल की अध्यक्षा बनी। नवम्बर 1973 और उसके बाद गोबिन्द सिंह रावत, चण्डी प्रसाद भट्ट, वासवानंद नौटियाल, हयात सिंह तथा कई छात्र उस क्षेत्र में आए। आस पास के गांवो तथा रैणी में सभाएं हुईं। जनवरी 1974 में रैंणी गांव के 2459 पेड़ों को चिन्हीत किया गया । 23 मार्च को रैंणी गांव में पेड़ों का कटान किये जाने के विरोध में गोपेश्वर में एक रैली का आयोजन हुआ, जिसमें गौरा देवी ने महिलाओं का नेतृत्व किया। यहीं से चिपको आन्दोलन (Chipko Andolan) की शुरुआत हुई, इस आन्दोलन की जननी श्रीमती गौरा देवी को माना जाता है।

इस महान व्यक्तित्व का निधन 4 जुलाई, 1991 को हुआ, यद्यपि आज गौरा देवी इस संसार में नहीं हैं, लेकिन उत्तराखण्ड ही हर महिला में वह अपने विचारों से विद्यमान हैं। हिमपुत्री की वनों की रक्षा की ललकार ने यह साबित कर दिया कि संगठित होकर महिलायें किसी भी कार्य को करने में सक्षम हो सकती है।

उपलब्धियां  :-

  • गौरा देवी को 1986 में प्रथम वृक्ष मित्र पुरस्कार प्रदान किया गया। जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी द्वारा प्रदान किया गया था।

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