गांधीवाद क्या है (गांधीवाद की परिभाषा)

गांधीवाद क्या है (गांधीवाद की परिभाषा)

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गांधीवाद क्या है (गांधीवाद की परिभाषा)

महात्मा गांधी के आदर्शों एवं विचारों के संग्रह को गांधीवाद कहा जाता है। यह एक विचारधारा है जो सर्वप्रथम महात्मा गांधी के द्वारा अपनाई गई थी। महात्मा गांधी ने सामाजिक एवं धार्मिक विचारधाराओं को प्रोत्साहन देने के लिए वर्ष 1893 से 1914 के मध्य इस नीति को अपनाया था। महात्मा गांधी ने गांधीवाद की शुरुआत सर्वप्रथम दक्षिण अफ्रीका में की थी। महात्मा गांधी ने धार्मिक एवं सामाजिक विचारों के आधार पर गांधीवाद को विकसित किया था। महात्मा गांधी ने अपने संपूर्ण जीवन काल में गांधीवाद के बुनियादी तत्वों को मजबूत बनाने का कार्य किया। उन्होंने भारत समेत पूरे विश्व में सत्य एवं अहिंसा के मार्ग को प्रसारित किया जिसके कारण उन्हें राष्ट्रपिता की उपाधि दी गई। वर्तमान समय में महात्मा गांधी के विचारों एवं आदर्शों को गांधीवाद के नाम से जाना जाता है।

गांधीवाद विचारधारा

गांधीवादी विचारधारा वह सामाजिक एवं धार्मिक विचार हैं जिनका जन्म महात्मा गांधी के आदर्शों से हुआ है। महात्मा गांधी के द्वारा अपनाई गई इन विचारधाराओं के कारण समाज में धार्मिक एवं सामाजिक स्थिति में सकारात्मक रूप से बदलाव आया। गांधीवादी विचारधारा के कई स्तर है जैसे धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक, व्यक्तिगत आदि। गांधीवाद विचारधारा का उद्देश्य समाज में अहिंसा के मार्ग को प्रशस्त करना था। महात्मा गांधी के इन विचारधाराओं ने भारतीय समाज में कई प्रेरणादायक स्त्रोतों को विकसित किया। महात्मा गांधी ने अपने विचारों के द्वारा समाज में कई बदलाव किए जिसके कारण समाज में व्यक्तियों का नैतिक विकास एवं सुधार हुआ।

गांधीवाद की आलोचना

महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में गांधीवाद की शुरुआत करने के पश्चात भारत में भी इसकी शुरुआत की थी जिसका कई लोगों ने खुलकर समर्थन किया तो किसी ने इसकी कड़ी निन्दा भी की। हालांकि गांधीवाद का उद्देश्य सत्य एवं अहिंसा की राह पर चलते हुए भारत को आजादी दिलाना जरूर था परंतु महात्मा गांधी द्वारा अपनाए गए इस रास्ते से सभी स्वतंत्रता सेनानी संतुष्ट नहीं थे जैसे चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, शिवराम राजगुरु, सुखदेव थापर आदि। यह सभी महान देशभक्त होने के साथ–साथ स्वतंत्रता सेनानी भी थे जिन्होंने देश को आजादी दिलाने के लिए कई आंदोलन किए और कइयों ने देश के लिए अपना बलिदान भी दिया।

दरअसल अंग्रेजों से भारत को आजाद कराए जाने के लिए देश में कई प्रकार के आंदोलन हुआ करते थे जिन्हें दो प्रकार के दल संचालित किया करते थे पहला नरम दल तथा दूसरा गरम दल –

नरम दल

नरम दल का गठन भारत की स्वतंत्रता से पूर्व कांग्रेस पार्टी के विभाजन के कारण हुआ था। दरअसल कांग्रेस पार्टी के सदस्यों के बीच मतभेद हो जाने के कारण कांग्रेस पार्टी दो भागों में विभाजित हो गई थी जिसका पहला भाग नरम दल व दूसरा गरम दल के नाम से जाना गया। नरम दल के नेतृत्व सर्वप्रथम मोती लाल नेहरू ने किया। मोती लाल नेहरू का मानना था कि स्वतंत्र भारत की सरकार का गठन अंग्रेजी हुकूमत के साथ संयोजित करके बनाई जाए जिससे कांग्रेस पार्टी के अन्य सदस्य उनके विरोध में आ गए और गरम दल में शामिल हो गए।

गरम दल

गरम दल का नेतृत्व बाल गंगाधर तिलक ने किया था। उनका मानना था कि यदि अंग्रेजी सरकार के साथ मिलकर आजाद भारत की सरकार का गठन किया जाएगा तो अंग्रेज दोबारा भारतीय लोगों के साथ धोखा करेंगे। गरम दल के सदस्य अक्सर वंदे मातरम के नारे लगाया करते थे और समय-समय पर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन किया करते थे। जो मोती लाल नेहरू को रास नहीं आता था।

ऐसा माना जाता है की गरम दल के अधिकांश सदस्य गांधीवाद की नीतियों का पूर्णतः समर्थन नहीं किया करते थे क्योंकि उनके आंदोलन के तरीके अलग थे। महात्मा गांधी सत्य व अहिंसा के बल पर भारत की आजादी चाहते थे परंतु गरम दल के सदस्यों का यह मानना था कि केवल अहिंसा के मार्ग पर चलने से आजादी पाना मुश्किल है। इसीलिए वे गांधीवाद की आंतरिक रूप से आलोचना किया करते थे।

गांधीवाद की विशेषताएं

  • गांधीवाद एक ऐसी विचारधारा है जो पूर्णतः अहिंसा पर आधारित थी। अहिंसा एक आत्मिक बल का प्रतीक है जिसका अर्थ है हिंसा को त्यागकर सत्य की रह पर चलना। महात्मा गांधी ने अहिंसा के बल पर एक सुव्यवस्थित समाज की स्थापना की थी जिसका प्रथम उद्देश्य देश में शांति के माहौल को बनाए रखना था।
  • सत्याग्रह को गांधीवाद की प्रमुख विशेषता के रूप में जाना जाता है। सत्याग्रह महात्मा गांधी द्वारा किया जाने वाला एक ऐसा आंदोलन था जिसने पूरे देश में सत्य की राह को उजागर किया था। गांधीवाद महात्मा गांधी का मूल आधार था जिसके द्वारा समाज में नैतिकता के मूल्य का विकास हुआ।
  • गांधीवाद के अंतर्गत लोक सेवा भाव को ईश्वर की प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण साधन माना गया। महात्मा गांधी के अनुसार यह एक ऐसा मार्ग है जिसपर चलने वाले व्यक्ति महान होते हैं। महात्मा गांधी एक कर्मयोगी थे जो मानव समूह को ईश्वर का रूप मानते थे एवं उनकी सेवा को परमात्मा की सेवा करने के समान मानते थे।
  • महात्मा गांधी ने सर्वदा लोगों की उन्नति, उत्तम भविष्य एवं लोक कल्याण के हित में कार्य किया जिसके कारण भारी मात्रा में लोगों ने गांधीवाद का समर्थन किया। इसके अलावा गांधीवाद के कारण देश में आर्थिक व न्यायिक व्यवस्था की कार्यप्रणाली को बेहतर बनाने की दिशा में कई कार्य किए गए।
  • गांधीवाद एक नैतिक दर्शन है जिसके अंतर्गत साध्य व साधन को नैतिक बनाए जाने पर अधिक जोर दिया जाता है। महात्मा गांधी का मानना था कि पवित्र साधन की उपलब्धता ना होने पर साध्य को त्याग देना चाहिए।

गांधीवाद की प्रासंगिकता

वर्तमान समय में महात्मा गांधी की विचारधाराओं के व्यापक रूप के कारण प्राचीन भारत के दर्शन का अनुभव हो पाता है जिससे यह साफ स्पष्ट होता है कि गांधीवाद की प्रासंगिकता आज के दौर में भी कायम है। आज के इस आधुनिक दौर में हम महात्मा गांधी के उच्च आदर्शों का पालन नहीं कर पा रहे हैं। महात्मा गांधी ने जीवन भर मानवीय मूल्यों को प्रतिष्ठित कर उसे बेहतर करने की दिशा में कार्य किया। यही कारण है की गांधीवाद की प्रासंगिकता का स्वरूप पहले से और बेहतर हुआ है।

गांधीवाद की आलोचना किसने की

नाथूराम गोडसे ने न केवल गांधीवाद की आलोचना की बल्कि महात्मा गांधी की निर्मम हत्या भी की थी। नाथूराम गोडसे महात्मा गांधी के विचारों से बिलकुल भी सहमत नही था। इसके अलावा नाथूराम गोडसे भारत के बंटवारे के समय हुई साम्प्रदायिक हिंसा का कारण भी केवल महात्मा गांधी को ही मानता था। महात्मा गांधी की हत्या के बाद नाथूराम गोडसे ने यह स्वीकार किया कि उसने महात्मा गांधी को नही बल्कि उनके विचारों का अंत किया है।

गांधीवाद सत्य व अहिंसा पर आधारित है। इस कथन की विवेचना कीजिए।

महात्मा गांधी हमेशा मानव अधिकारों के लिए लड़ते थे जिसका आधार केवल सत्य व अहिंसा था। गांधी जी ने सदैव अहिंसा की विचारधारा का पालन करने के साथ–साथ लोगों को सत्य की राह पर चलने के लिए प्रेरित भी किया। गांधीवाद के आधार पर भारत में कई स्वतंत्रता आंदोलन हुए जो इन इस बात का प्रतीक है कि गांधीवाद सत्य व अहिंसा पर आधारित है। जैसे :–

भारत छोड़ो आंदोलन

महात्मा गांधी द्वारा संचालित भारत छोड़ो आंदोलन भारत से ब्रिटिश साम्राज्य को खत्म करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। भारत छोड़ो आंदोलन 8 अगस्त 1942 में शुरू किया गया था जिसका नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया था।

असहयोग आंदोलन

सन् 1920 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन की शुरुआत की गई थी जिसका मुख्य कारण था जलियांवाला बाग हत्याकांड। महात्मा गांधी ने गांधीवाद के आधार पर इस आंदोलन की शुरुआत की थी जिसके फलस्वरूप भारतीय समाज के लोगों ने अंग्रेजों द्वारा संचालित संस्थानों जैसे स्कूल, सरकारी दफ्तर, कॉलेज आदि का बहिष्कार आरंभ कर दिया था।

चंपारण आंदोलन

चंपारण आंदोलन की शुरुआत सन 1917 के दौरान हुई थी। सन् 1915 में जब महात्मा गांधी भारत लौटे तो उस दौरान भारतवासियों पर अंग्रेजों के अत्याचार अपनी चरम सीमा पर थे। दरअसल अंग्रेज भारतीय किसानों पर नील की खेती करने का दबाव बनाते थे जिसके कारण किसान बेहद दयनीय स्थिति में थे। ऐसे में महात्मा गांधी ने चंपारण आंदोलन की शुरुआत की जिससे भारतीय किसानों की स्थिति बेहतर हो सके।

खेड़ा आंदोलन

खेड़ा आंदोलन की शुरुआत महात्मा गांधी के नेतृत्व में सन 1918 में हुई थी। यह आंदोलन अंग्रेजी सरकार द्वारा कर वसूली के विरोध में शुरू किया गया था। यह आंदोलन भी अन्य आंदोलनों को भांति पूर्ण अहिंसावादी था। महात्मा गांधी एवं वल्लभ भाई पटेल के साथ मिलकर कर न देने का निर्णय किया जो पूर्णतः किसानों के हित में था।