बक्सर का युद्ध:- बक्सर का युद्ध 22 अक्टूबर, 1764 ई. में बंगाल के नवाब मीरकासिम और अंग्रेजों के बीच हुआ था। बक्सर के युद्ध में बंगाल के नवाब मीरकासिम, अवध के नवाब शुजाउद्दौला तथा मुग़ल बादशाह शाहआलम द्वितीय की सेनाओं ने सम्मिलित रूप से अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध किया था।
23 जून, 1757 ई. में प्लासी के युद्ध में बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला का सेनापति मीरजाफर विश्वासघात कर अंग्रजों से मिल गया, जिस कारण अंग्रेजों ने युद्ध में जीत प्राप्त कर सिराजुद्दौला को मृत्यु दण्ड देकर, मीरजाफर को बंगाल का नवाब नियुक्त किया। मीरजाफर अंग्रेजों की कठपुतली मात्र था जो अंग्रजों के मन-मुताबिक कार्य करता था। पर जब वह अंग्रेजों की मनमानियां और दिन प्रति दिन बढ़ती मांगों को पूरा न कर सका तो उसको हटाकर उसके दामाद मीरकासिम को बंगाल का नवाब बनाया गया।
मीरकासिम भी मीरजाफर की तरह अंग्रजों की कठपुतली ही था, उसने भी अंग्रेजों को कई छूट और अधिकार प्रदान किये थे, लेकिन मीरकासिम के नवाब बनने के कुछ समय पश्चात ही उसके द्वारा दिये गए अधिकारों का अंग्रेजों द्वारा दुरूपयोग करने के कारण मीरकासिम और अंग्रेजों के बीच खटास आ गयी। परिणामस्वरूप 22 अक्टूबर, 1764 ई. को बक्सर का युद्ध हुआ।
22 अक्टूबर, 1764 ई. को बक्सर का युद्ध अंग्रेजो और बंगाल के नवाब मीरकासिम, अवध के नवाब शुजाउद्दौला तथा मुग़ल बादशाह शाहआलम द्वितीय की सम्मिलित सेनाओं के मध्य हुआ था। अंग्रेजी सेना का नेतृत्व मेजर हैक्टर मुनरो द्वारा किया गया था। इस युद्ध में अंग्रजों की जीत हुई और पूर्ण बंगाल अंग्रेजों के अधीन हो गया और दोनों पक्षों में इलाहाबाद में संधि हुई, इस संधि के परिणामस्वरूप अंग्रेजों को काफी भारी-भरकम जुर्माना दिया गया और बिहार, बंगाल तथा ओडिशा वास्तविक रूप से अंग्रेजों के अधीन आ गया। साथ ही मीरजाफर को फिर से नवाब बना दिया गया।
बक्सर युद्ध के कुछ समय पश्चात नजमुद्दोला बंगाल का नवाब बना जोकि सिर्फ नाम का नवाब था, वह पूर्णतः अंग्रजों के दिशा-निर्देशों पर निर्भर था। यही कारण था कि 1765 ई. से लेकर 1772 ई. तक बंगाल में ‘द्वैध पद्धति प्रशासन‘ चला, जिसमें कर या राजस्व वसूलने का अधिकार अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी के पास था, जबकि सत्ता व शासन का अधिकार नवाब के पास हुआ करता था। इस द्वैध पद्धति प्रशासन के कारण अंग्रेजों ने दोनों हाथों से बंगाल का भरपूर शोषण किया। जिस कारण 1770 ई. में बंगाल में भीषण अकाल पड़ा और बंगाल की लगभग एक-तिहाई जनता काल के गर्त में समा गयी।
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