एनआरसी क्या है ? एनआरसी के बारे में संपूर्ण जानकारी

एनआरसी क्या है ? एनआरसी के बारे में संपूर्ण जानकारी

एनआरसी क्या है ? (NRC kya hai ?, NRC kya hai hindi me, NRC kya hota hai ?), एनआरसी के बारे में संपूर्ण जानकारी, NRC कब लागु की गयी, असम में एनआरसी (NRC) का इतिहास, जिनका नाम एनआरसी में नहीं है उनके लिए व्यवस्था आदि की जानकारी निचे दी गयी है।

एनआरसी क्या है ?

एनआरसी यानी नेशनल रजिस्टर फॉर सिटीजन (NRC – National Register of Citizens) या राष्ट्रीय नागरिक पंजीकरण, असम में रहने वाले भारतीय नागरिकों की सूची है। इस सूची को रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त भारत द्वारा बनाया जाता है तथा इसे बनाने का मकसद पड़ोसी राष्ट्र मुख्यतः बांग्लादेश से अवैध रूप से आये घुसपैठियों की पहचान करना है।

असम भारत का अकेला ऐसा राज्य है जहां एनआरसी लागु है तथा इसे सर्वप्रथम वर्ष 1951 में स्वतंत्र भारत की पहली जनगणना के आधार पर बनाया गया था और उस वक्त इसमें 80 लाख लोगों के नाम पंजीकृत किये गये और इन सभी को राज्य का नागरिक माना लिया गया था।

NRC चर्चाओं में क्यों है?

NRC चर्चाओं में काफी दिनों से है लेकिन वर्तमान में संसद के शीतकालीन सत्र 2019 में भारत के गृहमंत्री अमित शाह द्वारा NRC को पुरे भारत में लागु करने की बात करने के कारण यह काफी चर्चाओं में है। विपक्षी दल संसद में NRC को भारत में लागु करने का पुरजोर विरोध कर रहे हैं पर BJP इसे सम्पूर्ण भारत में लागु करना चाहती है।

असम में एनआरसी (NRC) का इतिहास एवं अप्रवासियों की समस्या का मूल कारण

असम में अप्रवासियों की समस्या को दो भागों में बाट कर समझा जा सकता है-

  • ब्रिटिश काल के दौरान- असम में अवैध अप्रवासियों की समस्या की जड़ें ब्रिटिश राज से जुड़ी हैं। ब्रिटिश सरकार द्वारा असम की भौगोलिक स्थिति एवं वहां की उपजाऊ भूमि से काफी प्रभावित थी इसलिए वहां चाय के बागान तथा सैनिक छावनियां बनाना चाहती थी, परन्तु उन्हें महंगे श्रमिक एवं श्रमिकों की उपलब्धता न होने आदि समस्या का सामना करना पड़ रहा था। इस समस्या को हल करने के लिए वर्ष 1826 में असम को बंगाल प्रेसीडेंसी का हिस्सा बना दिया गया तथा तब से भारत की आजादी 1947 तक सस्ते श्रमिक के रूप में लाखो की संख्या में अप्रवासियों को यहां लाया गया। जिस कारण असम के मूल निवासी अल्पसंख्यक हो गए।
  • आजादी के बाद- आजादी के समय वर्ष 1947 में बटवारे के दौरान कई अप्रवासी, पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) से असम आये थे। साथ ही बांग्लादेश युद्ध 1971 के दौरान भी भारत ने लाखों की संख्या में बांग्लादेशी शरणार्थियों को आश्रय दिया था। इसके अलावा अवैध रूप से भारत आने वाले बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या वर्ष दर वर्ष बढ़ती रही।

वर्ष 1961 तथा 1971 में असम की जनसंख्या वृद्धि क्रमशः 36% तथा 35% रही जबकि देश की जनसंख्या मात्र क्रमशः 22% व 25% बढ़ी। इस दौरान असम में बढ़ी जनसंख्या वृद्धि का मूल कारण पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) से आने वाले अवैध घुसपैठ को माना गया। उपरोक्त वर्णित कारणों से असम में अप्रवासियों की संख्या में वृद्धि हुई तथा वहां की मूल निवासी जातियाँ अपने ही राज्य में अल्पसंख्यक बन कर रह गयी।

असम के मूल निवासियों ने अवैध रूप से रह रहे अप्रवासियों के खिलाफ वर्ष 1979 से विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए जो बाद में धीरे-धीरे हिंसक रूप धारण करने लगे। AASU(All Assam Students Union – अखिल असम छात्र संघ) जो असम में चल रहे आंदोलन का नेतृत्व कर रही थी ने केन्द्र सरकार के साथ 1985 में एक समझौता किया जिसे असम एकॉर्ड (Assam Accord 1985) के नाम से जाना जाता है। असम एकॉर्ड को लागू करने हेतु भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन करते हुए एक नयी धारा 6क को इसमें जोड़ा गया।

असम एकॉर्ड के मुताबिक –

  1. सभी अवैध अप्रवासियों की पहचान कर उन्हें वापस भेजा जाए।
  2. 1951 में बनी एनआरसी का अद्यतन किया जाए – इसके लिए कुछ तारीखें तथा नियम बनाये गये।
    i.  बटवारे के कराण 1 जनवरी, 1966 तक जो अप्रवासी पूर्वी पाकिस्तान से भारत(विशेषकर असम) में आ गये थे उन्हे भारत का नागरिक मान लिया जाए।
    ii.  1 जनवरी, 1966 से 25 मार्च, 1971 (बांग्लादेश लिब्रेशन वॉर) के बीच में भारत आये अप्रवासियों को फॉरेनर ट्रिब्यूनल में अपना नाम पंजीकृत करवाना होगा तथा वे अलग से भारतीय नागरिकता अधिनियम 1955 के अनुसार नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं।
    iii.  25 मार्च, 1971 के बाद आए लोगों को भारतीय नागरिकता नहीं दी जाएगी तथा उन्हे अवैध घुसपैठियां माना जाएगा।

एनआरसी की वर्तमान स्थिति

“असम पब्लिक वर्क्स” नाम के NGO (गैर सरकारी संस्था) द्वारा दायर की गयी याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिसंबर 2013 में सुनवाई करते हुए एनआरसी को अद्यतन (Update) करने का आदेश पारित किया गया। आदेश के बाद वास्तविक रूप से कार्य फरवरी 2015 में शुरू हुआ तथा 31 दिसंबर, 2017 को इसका पहला ड्राफ्ट जारी किया गया। जिसमें भारत की नागरिकता प्राप्त करने हेतु भारत आए हुए 3.26 करोड लोगों द्वारा आवेदन किया गया, इसमें से कुल 1.9 करोड लोगों को इसमें शामिल किया गया।

31 जुलाई, 2018 को एनआरसी का दुसरा ड्राफ्ट जारी हुआ जिसमें 3.29 करोड़ लोगों में से 2.89 करोड़ लोगों को भारत का नागरिक मान लिया गया। इसी क्रम में 31, अगस्त 2019 को इसका अंतिम मसौदा प्रकाशित किया गया और अतंतः कुल 3.29 करोड़ लोगों में से 3.11 करोड़ लोगों को इस नागरिकता सूची में शामिल कर लिया गया तथा 19 लाख लोगों को इस सूची में स्थान नही दिया गया।

जिनका नाम एनआरसी में नहीं है उनके लिए व्यवस्था

जिस भी व्यक्ति का नाम इस सूची में नहीं है वे लोग विदेशी ट्रिब्यूनल में अपना नाम पंजीकृत करवा सकते हैं, यदि वहां उन्हें विदेशी घोषित कर दिया जाता है तो वे 120 दिनों के भीतर सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकते हैं।

 

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