सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए भारतीय संविधान में क्या प्रावधान किए गए हैं ? कोलेजियम व्यवस्था की इसमें क्या भूमिका है ? स्पष्ट कीजिए।

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए भारतीय संविधान में क्या प्रावधान किए गए हैं ? कोलेजियम व्यवस्था की इसमें क्या भूमिका है ? स्पष्ट कीजिए। [UKPSC वन क्षेत्राधिकारी मुख्य परीक्षा 2015]
What Provisions have been made in the Indian Constitution for appointment of the Judges of Supreme Court? What role does the collegiums system has in it? Clarity. [UKPSC Forest Officer Main Examination 2015] Question Answer

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति

 

भारत में जो न्यायालय की एकल व्यवस्था है उसे “भारत सरकार अधिनियम, 1935” से ग्रहण किया गया है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय का उद्घाटन 28 जनवरी, 1950 को किया गया था। भारतीय संविधान के भाग V में अनुच्छेद 124 से 147 तक, सर्वोच्च न्यायालय के गठन, स्वतंत्रता, न्यायाक्षेत्र, शक्तियां, प्रक्रिया आदि का उल्लेख है।

सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की अनुमोदित संख्या 31 (एक मुख्य न्यायाधीश एवं 30 अन्य न्यायाधीश) हैं। मूल संविधान में ये संख्या 8(एक मुख्य न्यायाधीश एवं 7 अन्य न्यायाधीश) थी। इसमें से भी वर्तमान समय में सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्त न्यायाधीशों की संख्या 34 है।*(18 सितंबर 2019 के अनुसार)

सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति :-

  • सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है।
  • मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति, राष्ट्रपति अन्य न्यायाधीशों एवं राज्यों के उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की सलाह पर करता है।
  • अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति हेतु मुख्य न्यायाधीश की सलाह आवश्यक है।

न्यायाधीशों की अर्हताएं :- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनने हेतु व्यक्ति में निम्न अर्हताएं आवश्यक हैं –

  • भारत का नागरिक हो।
  • भारत के किसी भी उच्चतम न्यायालय में 5 साल के लिए न्यायाधीश या उच्च न्यायालय एवं विभिन्न न्यायालय में मिलाकर 10 वर्ष का वकालत का तजुर्बा या राष्ट्रपति की दृष्टि में एक सम्मानित न्यायवादी।
  • न्यूनतम आयु का कोई उल्लेख नही किया गया है।

शपथ :- सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्ति पूर्व प्रत्येक न्यायाधीश को राष्ट्रपति द्वारा “भारत की प्रभुता एवं अखंडता” की शपथ दिलाई जाती है।

कार्यकाल :- संविधान में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के कार्यकाल की निश्चित समय सीमा तय नहीं की गयी है वरन इस सम्बन्ध में तीन प्रावधान दिए गए हैं –

  • 65 वर्ष तक की आयु तक पद पर बना रहेगा।
  • राष्ट्रपति को त्यागपत्र दे सकता है।
  • राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है यदि संसद इसकी सिफारिश करे तो।

कोलेजियम व्यवस्था :- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीशों की नियुक्ति के सम्बन्ध में राष्ट्रपति द्वारा “परामर्श” लेने की प्रक्रिया में “परामर्श” शब्द की उच्चतम न्यायालय द्वारा विभिन्न व्याख्याएं दी गई हैं –

  • प्रथम मामला वर्ष 1982 का है जिसमें न्यायालय ने कहा कि परामर्श का मतलब सहमती नहीं वरन विचार विमर्श हैं।
  • द्वितीय मामला वर्ष 1993 का है जिसमें न्यायालय ने अपने पूर्व फैसले को परिवर्तित किया तथा परामर्श की व्याख्या यह कहते हए की कि परामर्श का मतलब सहमती प्रकट करना है तथा यह सलाह राष्ट्रपति हेतु बाध्यकारी है। परन्तु मुख्य न्यायाधीश यह सलाह अपने दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों के सहयोग से लेगा।
  • तीसरा मामला वर्ष 1998 का है जिसमें न्यायालय ने परामर्श को “बहुसंख्यक न्यायाधीशों की विचार” के अन्तर्गत माना है, अर्थात केवल मुख्य न्यायाधीश का मत ही परामर्श नहीं है उसे उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम चार न्यायाधीशों से सलाह लेना अनिवार्य है एवं यदि दो मत भी पक्ष में नहीं हैं तो वह नियुक्ति के लिए सिफारिश नहीं भेज सकता है।

वर्ष 1998 का यही मामला कोलेजियम व्यवस्था की नीव बना जो वर्तमान में भी कार्यरत है। कोलेजियम में सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम 5 न्यायाधीशों(एक मुख्य न्यायाधीश एवं 4 अन्य न्यायाधीश) का पैनल होता है।

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्त / पदोन्नति एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का स्थानांतरण सम्बन्धी प्रस्ताव की सिफारिश कोलेजियम ही करता है।

वर्तमान समय में कोलेजियम में निम्न न्यायाधीश सदस्य हैं –

  1. मा0 श्री रंजन गोगोई (मुख्य न्यायाधीश)
  2. मा0 श्री शरद अरविंद बोबड़े
  3. मा0 श्री एन0 वी0 रमना
  4. मा0 श्री अरूण मिश्रा
  5. मा0 श्री आर0 एफ0 नरीमन

कोलेजियम द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया :- उल्लेखनीय है कि कोलेजियम की यह व्यवस्था का मूल संविधान में कोई उल्लेख नहीं है। कोलेजियम वकीलों तथा न्यायाधीशों के नाम की सिफारिश केन्द्र सरकार को भेजती है। केन्द्र इन नामों की जाँच कर कुछ नामों पर आपत्तियाँ लगा कर वापस कॉलेजियम के पास भेजती है। प्राप्त नामों की सूची को कॉलेजियम द्वारा जाँचा जाता है, आपत्तियों पर विचार कर पुनः फाइल केन्द्र के पास भेजी जाती है।

यहां पर उल्लेखनीय बात यह है कि जिन नामों को कॉलेजियम द्वारा दुबारा भेजा जाता है उन्हें केन्द्र सरकार स्वीकार करने हेतु बाध्य है, लेकिन “कब तक” स्वीकार करना है इसकी कोई तय सीमा नहीं है। इस कारण न्यायाधीशों की नियुक्ति सम्बन्धी फाइलें अटकी रहती हैं। यही कारण है कि कोलेजियम व्यवस्था का कई बार विरोध का सामना करना पड़ता है।

 

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