जैन धर्म एक प्राचीन धर्म है, जैन धर्म के ग्रंथों के अनुसार जैन धर्म (Jainism) अनादिकाल से चला आ रहा है। ऋषभ देव जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर एवं संस्थापक थे। ऋषभ देव महान सम्राट भरत के पिता थे। ऋषभ देव को आदिनाथ के नाम से भी जाना जाता है। ऋषभ देव का उल्लेख श्रीमद्भागवत में भी मिलता है। ऋग्वेद के ‘केशी सूक्त‘ में भी कुछ जैन तीर्थंकरों का उल्लेख मिलता है। ऋषभ देव का प्रतीक चिन्ह साँड़ है। जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभ देव की मृत्यु अट्ठावय (कैलाश पर्वत) पर हुयी थी।
जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे। पार्श्वनाथ काशी के राजा अश्वसेन के पुत्र थे। पार्श्वनाथ 30 वर्ष की आयु में ही ग्रह त्यागकर वैरागी बन गये थे। पार्श्वनाथ को सम्मेय पर्वत पर ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। पार्श्वनाथ के अनुयायियों को ‘निर्ग्रन्थ‘ कहा जाता था। पार्श्वनाथ महावीर स्वामी से 250 वर्ष पूर्व हुए थे। पार्श्वनाथ ने जैन धर्म में स्त्रियों को प्रवेश दिया था। पार्श्वनाथ का प्रतीक चिन्ह सर्प है।
जैन धर्म के अन्तिम एवं 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी थे। महावीर स्वामी का जन्म 540 ईसा पूर्व में वैशाली के निकट कुण्डग्राम में हुआ था। महावीर के बचपन का नाम वर्द्धमान था। इनके पिता का नाम सिद्धार्थ तथा माता का नाम त्रिशला था। महावीर का प्रतीक चिन्ह सिंह है।
महावीर स्वामी के पिता सिद्धार्थ ज्ञात्रिक कुल के मुखिया थे। महावीर स्वामी की माता त्रिशला वैशाली के लिच्छवि राज्य की राजकुमारी और राजा चेटक की बहन थी।
महावीर स्वामी की पत्नी का नाम यशोदा था जिससे इनकी पुत्री का जन्म हुआ जिसका नाम अनोज्जा प्रियदर्शनी था।
महावीर स्वामी को 13 वर्ष की कठिन तपस्या के पश्चात् जुम्मिक ग्राम के समीप ऋजुपालिका नदी के किनारे साल के पेड़ के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। महावीर स्वामी की ज्ञान प्राप्ति को जैन ग्रन्थ में ‘कैवल्य‘ के नाम से जाना जाता है। ज्ञान प्राप्ति के पश्चात् महावीर स्वामी ने पावापुरी में जैन संघ की स्थापना की थी।
अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धांत है। जैन धर्म में जीवों पर दया और अहिंसा पर अधिक बल दिया गया है। इसीलिए जैन धर्म के अनुयायी शाकाहारी होते है।
जैन धर्म में कर्मफल से मुक्ति पाने के लिए त्रिरत्न हैं – सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, और सम्यक् आचरण।
23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ वस्त्र धारण करने के समर्थक थे, जबकि 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी ने पूर्णतः नग्न रहने का समर्थन किया।
बौद्ध धर्म की ही तरह, जैन धर्म भी पुनर्जन्म में विश्वास करता है। साथ ही यह भी मानता है कि आत्मा पिछ्ले जन्म के कर्मों व इच्छाओं की वजह से बन्धक के रूप में रहती है।
जैन धर्म ईश्वर के अस्तित्व में नहीं बल्कि आत्मा के अस्तित्व में विश्वाश करता है। जैन धर्म ईश्वर को सृष्टिकर्ता नहीं मानता है, बल्कि सृष्टि का निर्माण छ: द्रव्यों – जीव, पुदगल, धर्म, अधर्म, आकाश तथा काल से मिलकर हुआ है। जिनको मिटाया या फिर से बनाया नहीं जा सकता है।
जैन ग्रंथों में सात तत्त्वों का वर्णन मिलता है, जो हैं – जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष।
गोशाल महावीर स्वामी के प्रथम सहयोगी बने।
जैन धर्म के सिद्धान्तों में निवृत मार्ग का स्थान प्रधान है।
महावीर स्वामी के 11 शिष्य थे, जिन्हें ‘गणधर अथवा गंधर्व‘ कहा जाता था।
मौर्यकाल में जैन धर्म दो भाग दिगम्बर एवं श्वेताम्बर सम्प्रदाय में विभक्त हो गया था। दिगम्बर वो हैं जो नग्नावस्था में रहते हैं और श्वेताम्बर वो हैं जो सफ़ेद कपडे पहनते हैं।
भद्रबाहु के शिष्यों को दिगम्बर तथा स्थूलभद्र के शिष्यों को श्वेताम्बर कहा गया है। भद्रबाहु द्वारा रचित ‘कल्पसूत्र‘ जैन धर्म का सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रन्थ माना जाता है। ‘निर्युक्ति‘ के रचयिता भी भद्रबाहु ही हैं।
बौद्ध साहित्य में महावीर स्वामी को निगष्ठ नातपुत्र अथवा निर्ग्रन्थ सातपुत्र भी कहा गया है।
जैन तीर्थंकरों का जीवनचरित ‘कल्पसूत्र‘ नामक जैनग्रंथ में वर्णित है। जैन साहित्य को ‘आगम‘ कहा जाता है। जैन धर्म के मौलिक ग्रन्थ ‘पूर्व‘ कहलाते हैं। जैनों ने अपने धर्मोपदेश के लिए प्राकृतिक भाषा का प्रयोग किया।
जैन धर्म में अठारह पाप मानें गए हैं। जो हैं – हिंसा, असत्य, चोरी, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, कलह, मैथुन, दोषारोपण, चुगली, असंयम में रति और संयम में अरति, परनिंदा, कपटपूर्ण मिथ्या और मिथ्यादर्शनरूपी शल्य।
जैन धर्म के प्रमुख केन्द्रों के रूप में मथुरा एवं उज्जैन काफी प्रसिद्ध रहे हैं। मौर्य काल में मथुरा जैन धर्म का प्रसिद्ध केंद्र हुआ करता था।
महावीर स्वामी की मृत्यु (निर्वाण) 72 वर्ष की आयु में 468 ईसा पूर्व बिहार के पावापुरी नामक ग्राम में हुई थी।
जैन धर्म के सभी 24 तीर्थंकरों के नाम
(1) ऋषभदेव अथवा आदिनाथ
(2) अजिंतनाथ
(3) सम्भवनाथ
(4) अभिनंदननाथ
(5) सुमतिनाथ
(6) पद्मप्रभु
(7) सुपार्श्व
(8) चन्द्रप्रभु
(9) सुविधिनाथ
(10) शीतलनाथ
(11) श्रेयांस
(12) वासुपूज्य
(13) विमलनाथ
(14) अनंतनाथ
(15) धर्मनाथ
(16) शांतिनाथ
(17) कुन्थनाथ
(18) अरह अथवा अर्हनाथ
(19) मल्लिनाथ
(20) मुनिसुव्रतनाथ
(21) नेमिनाथ
(22) अरिष्टनेमि
(23) पार्श्वनाथ
(24) महावीर स्वामी
जैन धर्म का अर्थ है –
जैन धर्म का अर्थ है ‘जिन को मानने वाला या जिन का अनुयायी‘, जिन का अर्थ है ‘जितने वाला‘ अर्थात जिसने अपने मन, वाणी और शरीर पर पूर्ण रूप से काबू पा लिया हो या कहा जाये की इन्हें जीत लिया हो वही जैन है।
जैन धर्म के पांच महाव्रत या मूलभूत सिद्धांत
- सत्य
- अहिंसा
- अपरिग्रह
- अस्तेय
- ब्रह्मचर्य पालन (महावीर स्वामी द्वारा प्रतिपादित)
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Sir/madam,
Jis trah aapne itihas ko bhut acche se define kiya h, usi trah aap uttrakhand rajya k itihas k bare m bhi notes bnakr dene ka kast kren please. It’s a request pls answer…
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Dear sir ,
Jaise sindhu sabhyata ka question or answer kr k jo diye h , usi tarah hr chapter wise ka ek note question or answer bna k daliye ,
Us se bahut madad milti h us ek particular chapter ki taiyari me .
Sir
Apne bahut achhe se define kiya h
Sir eshi trah se indian geography ko define kar de jiye.