भारत में जातिवाद के कारण : जातिवाद क्या है, भारत में जातिवाद का इतिहास, भारत में जातिवाद के कारण, जातिवाद के प्रभाव, जातिवाद पर निबंध आदि प्रश्नों के उत्तर यहाँ दिए गए हैं।
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जातिवाद
जातिवाद क्या है ( what is casteism in hindi )
किसी भी व्यक्ति विशेष द्वारा अपनी जाति को सर्वश्रेष्ठ मानना या जाति के प्रति निष्ठा की भावना रखना जातिवाद है। जाति एक ऐसा समूह है जो केवल जाति के आधार पर दूसरों को खुद से अलग मानता है। प्राचीन काल से ही जातिवाद भारत में प्रचलित है। जातिवाद सभी धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं सामाजिक प्रवृत्तियों को प्रभावित करता है। जातिवाद का प्रचलन केवल भारत में ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी विद्यमान है। भारत में जाति प्रथा की शुरुआत आज से लगभग 2000 वर्ष पूर्व हुई थी जो वर्तमान समय तक चली आ रही है। वर्तमान समय में जाति के आधार पर भेद-भाव किया जाता है। जातिवाद के कारण राष्ट्रीय एकता, सामाजिक एकता एवं सम्प्रभुता या सम्पूर्ण एकता प्रभावित होती है। जातिवाद किसी भी देश एवं समाज की एकता को तोड़ने का कार्य करती है जिसके लिए भारतीय संविधान में अनुच्छेद 15 का प्रावधान लागू किया गया है।
अनुच्छेद 15 (A) एवं अनुच्छेद 15 (B)
आर्टिकल 15 (A) के अंतर्गत जाति, धर्म, लिंग एवं जन्म स्थान के आधार पर किसी भी भारतीय नागरिक से भेदभाव नहीं किया जा सकता। इसका पालन न करने में पर उचित दण्ड देने का भी प्रावधान है।
आर्टिकल 15 (B) के आधार पर किसी भी नागरिक के साथ धर्म, जाति, लिंग एवं जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है अथवा किसी भी सार्वजनिक दुकानों, रेस्टोरेंट, पब्लिक एंटरटेनमेंट एवं होटलों में जाने से किसी को भी नहीं रोका जा सकता। इसके अलावा, सार्वजनिक कुएं, टैंक एवं नहाने के घाट का उपयोग करने से किसी भी नागरिक को नहीं रोका जा सकता।
भारत में जातिवाद का इतिहास
भारत में जातिवाद की शुरुआत करीब 2000 वर्ष पहले हुई थी जिसकी उत्पत्ति के पीछे कई सिद्धांत हैं। माना जाता है कि अंग्रेजों ने भारत के स्वदेशी धर्मों की एक स्वीकृत सूची का निर्माण किया था जिसमें हिंदू, सिख एवं जैन समुदाय के लोगों को शामिल किया गया था। ऋग्वेद के अनुसार, समाज का निर्माण विभिन्न श्रेणियों के लोगों द्वारा किया गया जिसमें ऐसा कहा गया है कि वर्ण उनके शरीर के अलग-अलग अंगों से निकला है। जाति व्यवस्था के वर्गीकरण को चार श्रेणियों में बांटा गया है जिसमें ब्राह्मणों को सबसे ऊपर रखा गया है। इसके बाद क्षत्रिय होते हैं जो शासक एवं योद्धा माने जाते हैं। तीसरे स्तर पर वैश्य को रखा गया है जो आमतौर पर व्यापारी एवं किसान समझे जाते हैं। इसी वर्गीकरण में सबसे निचला यानी चौथा स्थान शूद्रों के लिए रखा गया है जिन्हें आप तौर पर मजदूर समझा जाता है। इसके अलावा, इस जाति के वर्गीकरण में पांचवां समूह भी है जिन्हें अपवित्र काम करने वाला बताया गया है और इन्हें मुख्य चार श्रेणी वाली जाति व्यवस्था से बाहर रखा गया है।
भारत में जातिवाद के कारण ( Reasons of casteism in India in hindi )
भारत में जातिवाद के कई कारण हैं। दरअसल, जातिवाद से प्रभावित व्यक्ति अपनी भावनाओं को अपनी ही जाती में केंद्रित करता है और केवल अपनी ही जाति के विकास एवं कल्याण की चिंता करता है। जाति प्रथा से प्रेरित व्यक्ति समाज में अपनी जाति के अनुसार ही कार्य करते हैं जिससे समाज में भेदभाव की भावना विकसित होती है।
विवाह संबंधी प्रतिबंध
भारत में जातिवाद करने का मुख्य कारण विवाह संबंधी प्रतिबंध है। जाति-प्रथा के अंतर्गत कई लोग अपनी ही उप-जाति में विवाह करते हैं जिससे जातिवाद को बढ़ावा मिलता है। इसके अंतर्गत एक जाति के लोगों को दूसरे जाति के लोगों से विवाह करने पर प्रतिबंध लगाया गया है।
अपनी जाति की प्रतिष्ठा को बनाये रखने के लिए
अपनी जाति की प्रतिष्ठा एवं मान सम्मान को बढ़ाने के लिए यह सुनिश्चित किया जाता है कि एक जाति के लोग अधिक शिक्षित हों, धनी हों एवं अच्छे पदों पर नियुक्त हो। इससे उस जाति की स्तिथि सामाजिक तौर पर बेहतर होती है। आज पूरे संसार में समानता के द्वार हर किसी खोल दिए हैं मगर कुछ लोग आज भी जाति को जीवन का आधार मानते हैं।
नगरीकरण
प्रत्येक नगर से नगरीकरण के कारण विभिन्न जातियों का एक जमघट संभव हुआ है। इसके परिणामस्वरूप हर जाति के सदस्यों को यह मौका मिल सका की वह अपनी जाति एवं हितों की रक्षा के लिए समाज में एक विशेष संगठन का निर्माण कर सके।
संस्कृतिकरण
संस्कृतिकरण (Socialization) की प्रक्रिया के कारण भी जातिवाद को बढ़ावा मिला। इस प्रक्रिया के दौरान निम्न जाति के लोगों द्वारा उच्च जाति के लोगों के व्यवहार एवं तौर-तरीकों को ग्रहण किया जाता है। संस्कृतिकरण करने वाली जाति के लोग अपनी जाति को अन्य जातियों से उच्च मानने लगती है जिससे जातिवाद की भावना को बढ़ावा मिलता है।
जातिवाद के प्रभाव
जातिवाद के कारण लोगों में भेद-भाव की भावना उत्पन्न होती है जिसका समाज पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ता है। जातिवाद करने से एक जाति के लोग स्वयं को दूसरे जाति के लोगों से श्रेष्ठ मानने लगते हैं जिससे समाज में तनाव की स्तिथि उत्पन्न होती है। दूसरी जाति को छोटा समझने वाले लोग उनके अधिकारों का हनन करते है जिसके कारण समाज में संघर्ष एवं तनाव को बढ़ावा मिलता है। कई लोग जातिवाद से प्रेरित होकर अन्य जाति के लोगों के अधिकारों एवं सुविधाओं को अनुचित समझते हैं जिसके कारण हर समाज का नैतिक पतन होता है। जातिवाद के कारण समाज में विभिन्न प्रकार की सामाजिक समस्याओं का जन्म हुआ जैसे दहेज़ प्रथा, बाल विवाह आदि। यदि कोई व्यक्ति जातीय नियमों का उल्लंघन करता है तो उसे जाति से निकल दिए जाने का भय रहता है इसीलिए वह व्यक्ति जातीय नियमों का पालन करता है।
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