प्लासी के युद्ध के उपरान्त बंगाल की स्थिति: प्लासी का युद्ध भारत के प्रमुख युद्धों में से एक है। यह युद्ध इस नजर से भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि यह वह पहला अवसर था जब अंग्रेजों ने खुलकर एक भारतीय शक्ति का विरोध किया और इसमें वे सफल भी रहे। 23 जून, 1757 को लड़े गए प्लासी के इस युद्ध में सिराजुद्दौला की हार हुई और रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व वाली ब्रिटिश सेना सिराजुद्दौला के ही सेनापति मीर जाफऱ की सहायता से विजयी हुई। इस युद्ध में मीर जाफर की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
Table of Contents
मीर जाफर (1757-1760)
- बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के सेनापति मीर जाफर ने एक गुप्त संधि कर अंग्रेजों से हाथ मिला लिया।
- इस संधि के अनुसार मीरजाफर को बंगाल का नवाब बना दिया गया, जिसके बदले मीरजाफऱ ने अंग्रेजों को पौने दो करोड़ रूपये की विशाल धनराशि प्रदान की।
- कम्पनी को 24 परगने की जमींदारी के साथ-साथ संपूर्ण बंगाल में मुक्त व्यापार करने का अधिकार दिया गया।
- अब कम्पनी बंगाल में अपनी मुद्रा चलाने के लिए भी स्वतंत्र थी।
- राबर्ट कलाइव को भी इस युद्ध का फायदा हुआ और उसे बंगाल का गवर्नर बना दिया गया।
- मीर जाफऱ एक अयोग्य शासक था, जिसे भांपते अंग्रेजो को देर नहीं लगी तथा उसे गलत आरोप लगा कर हटा दिया गया। उसके दामाद मीर कासिम को अगला नवाब घोषित कर दिया गया।
मीर कासिम (1760-1763)
- मीर कासिम मीर जाफर का दामाद था। मीर कासिम अलीवर्दी खां के बाद सबसे योग्य नवाब था।
- मीर कासिम तथा अंग्रेजों के “मुंघेर की संधि” दिनांक 27 सितम्बर, 1760 को हुयी।
- मीर कासिम के नवाब बनते ही अंग्रेजों तथा इसके बीच संघर्ष प्रारम्भ हो गया।
- दोनो पक्षों के मध्य हुयी मुंघेर की संधि में शर्ते स्पष्ट नहीं थी, जिस कारण दोनों ने ही अपने-अपने अर्थ निकालने शुरू कर दिए।
- इसने अपनी राजधानी को मुर्शिदाबाद से मुंघेर स्थानांतरित किया।
- मुगल बादशाह द्वारा अंग्रेजों को प्रदान किए गए फरमान “दसतक” का दुरुपयोग रोका।
- भारतीय व्यापारियों पर लगने वाला आंतरिक कर समाप्त कर दिया ।
- अंग्रेज अधिकारियों से बचत के रूप में एक कर “खिरंजी” भी वसूला ।
- बंदूक और तोप का कारखाना लगाया ।
- अंग्रेजों को इसके सुधार पसंद नहीं आये और इसे हटाकर वापस मीर जाफर को नवाब घोषित कर दिया गया।
मीर जाफर (1763-1765)
- मीर कासिम को नवाब के पद से हटाकर इसे पुनः बंगाल का नवाब बनाया गया।
- मीर कासिम अवध के नवाब शुजाउद्दौला और दिल्ली के मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय से मिलकर युद्ध की तैयारी करने लगा।
- 22 अक्तूबर, 1764 को बक्सर का युद्ध हुआ, जिसके परिणाम स्वरूप-
- मुगल बादशाह शाहआलम द्वितीय और शुजाउद्दौला ने अंग्रेजों के आगे घुटने टेक दिये और मीर कासिम भाग निकला।
- अब बंगाल पर पूरी तरह से अंग्रेजों का ही राज हो गया।
नजमुद्दौला (1765-1766)
- 1765 में मीर जाफऱ की मृत्यु के बाद नजमुद्दौला को बंगाल का नवाब बनाया गया।
- इसके समय में क्लाइव ने इलाहबाद की दो अलग-अलग संधियां करी-
- इलाहाबाद की प्रथम संधि– मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय से
- ये संधि 12 अगस्त 1765 को हुयी।
- इस संधि पर राबर्ट क्लाइव, शाह आलम द्वितीय एवं नजमुद्दौला के हस्ताक्षर हुए।
- बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी अंग्रेजों को दे दी गयी ।
- कम्पनी शाह आलम द्वितीय को 26 लाख रूपये वार्षिक पेंशन देगी। संधि के इस बिन्दु पर गुलाम हुसैन ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि “इस संधि को लिखने और हस्ताक्षर करने में उतना ही समय लगा जितना की एक गधे को खरीदने में लगता है”।
- इलाहाबाद की दूसरी संधि- अवध के नवाब से
- ये संधि 16 अगस्त, 1765 को हुयी थी।
- इस संधि पर राबर्ट क्लाइव एवं शुजाउद्दौला के हस्ताक्षर हुए।
- इलाहबाद तथा कड़ा के जिले अवध से लेकर मुगल बादशाह शाहआलम द्वितीय को दे दिये गये।
- शुजाउद्दौला को युद्ध(बक्सर) हानी के रूप में 50 लाख रूपये अंग्रेजों को देने पड़े।
- अवध के नवाब के राज्य में अंग्रेजों को स्वतंत्र व्यापार की छूट मिली।
- नवाब अंग्रेजों के विरोधियों की सहायता नहीं कर सकता तथा विपत्ति के समय दोनों एक दूसरे का सहयोग करेंगे।
- ब्रिटिश कम्पनी को संपूर्ण बंगाल की दीवानी प्राप्त हो चुकी थी। उसने नजमुद्दौला को और 53 लाख रूपये देकर बंगाल में “निजायत”(कानून और न्याय व्यवस्था) की शक्ति भी प्राप्त कर ली।
सैफुद्दौला (1766-1775)
- नजमुद्दौला की मृत्यु के उपरान्त सैफुद्दौला बंगाल का नवाब बना।
- सैफुद्दौला केवल एक कठपुतली नवाब था, इसने कोई विशेष कार्य नहीं किये, मुख्यतः शासन अंग्रेजों द्वारा ही चलाया गया।
मुबारकुद्दौला (1775)
- मुबारकुद्दौला बंगाल का आखिरी नवाब था। इसके बाद अंग्रेजों ने गवर्नर जनरल की नियुक्ति करना शुरू कर दिया।
- अंग्रेजों ने इलाहाबाद की द्वितीय संधि के बाद से बंगाल में द्वैध शासन (1765-1772) लागू कर दिया।
- इस शासन में वास्तविक शक्ति कम्पनी के पास थी जबकि प्रशासन का उत्तरदायित्व नवाब के कन्धों पर था।
- द्वैध शासन के अन्तर्गत कम्पनी ने तीन उप दीवान नियुक्त किये।
- बंगाल में – मुहम्मद रजा खां
- बिहार में – सिताब राम
- उड़ीसा में – राम दुर्लभ
वारेन हेस्टिंग्स (1772-1774) बंगाल का अगला गवर्नर जनरल बना। गवर्नर जनरल बनते ही उसने द्वैध शासन को समाप्त कर बंगाल का शासन सीधे अंग्रेजी राज्य के नियंत्रण में कर दिया और इसके साथ ही बंगाल के नवाब के पद का अंत हो गया।
इन्हें भी पढ़ें –
क्लिक करें HISTORY Notes पढ़ने के लिए Buy Now मात्र ₹399 में हमारे द्वारा निर्मित महत्वपुर्ण History Notes PDF |