मुद्रास्फीति एवं अपस्फीति (Inflation and Deflation) किसे कहते हैं, मुद्रास्फीति के लाभ, मुद्रास्फीति के परिणाम, मुद्रास्फीति के कारण, मुद्रास्फीति के प्रकार, मुद्रा संकुचन क्या है, आदि प्रश्नों के उत्तर यहाँ दिए गए हैं। Inflation and Deflation UPSC notes in Hindi.
अर्थव्यवस्था में मांग एवं पूर्ति की तीन स्थितियों में से कोई एक सदा बनी रहती हैं। इन्हीं तीनों दशाओं या स्थितियों के आधार पर अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति और अपस्फीति की स्थिति उत्पन्न होती है। आइये अर्थव्यवस्था की इन तीनों स्थितियों का अध्ययन करें-
- मांग = पूर्ति – ये एक आदर्श स्थिति है जिसे किसी भी अर्थव्यवस्था में प्राप्त करना संभव नहीं है।
- मांग > पूर्ति – मुद्रास्फीती (Inflation)
- मांग < पूर्ति – अपस्फीति या मुद्रा संकुचन (Deflation)
Table of Contents
1. मुद्रास्फीति (Inflation)
जिस समय अर्थव्यवस्था में वस्तु एवं सेवा की तुलना में मुद्रा की मात्रा अधिक होती है उस समय मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। अर्थव्यवस्था में मुद्रा की मात्रा अधिक होने के कारण मांग बढ़ती है (मांग > पूर्ति)। वस्तु एवं सेवा की मात्रा कम होने से उनकी कीमत भी बढ़ जाती है जिससे अर्थव्यवस्था में मुद्रा की मात्रा तो ज्यादा होती है परन्तु उसका मुल्य कम हो जाता है।
उदाहरण के लिए यदि सामान्य स्थिति में कोई वस्तु 100रू0 में बाजार में उपलब्ध थी, तो मुद्रास्फीति होने पर वही वस्तु 200रू0 की हो जाएगी क्योंकि अब मुद्रा की कीमत (मूल्य) कम हो चुकी है।
मुद्रास्फीति को आसान शब्दों में महँगाई के रूप में भी जाना जाता है।
परिभाषा- जब किसी अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की तुलना में मुद्रा की आपूर्ति अधिक हो जाती है तो इस स्थिति को मुद्रा स्फीति कहते हैं।
मुद्रास्फीति का मापन
1. थोक मूल्य सूचकांक (WPI-Wholesale Price Index)
थोक बाजार अर्थात बड़ी मंडियों में मांग एवं पूर्ति के परिवर्तनों को एक निश्चित समय अवधि (सामान्यतः 15 दिवस) तक देखा जाता है। इन्हीं आकड़ों से थोक मूल्य सूचकांक निर्धारित किया जाता है जिससे मुद्रास्फीति की गणना की जाती है। इसमें सूचकांक में पूंजीगत वस्तु रखा जाता है जैसे – स्टील, तेल, पेट्रोल, सीमेंट आदि। भारत इसी सूचकांक के माध्यम से मुद्रास्फीति की गणना करता है।
2. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-Consumer Price Index)
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में उपभोक्ताओं को मिलने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतों को एक निश्चित समय अवधि (सामान्यतः 2 माह) तक देखा जाता है। इस सूचकांक में खाद्य सामग्री एवं सेवाएँ जैसे – आटा, कपड़े, मनोरंजन, शिक्षा और स्वास्थ्य आदि रखी जाती हैं। विश्व के कई देश इस सूचकांक के माध्यम से भी मुद्रास्फीति का मापन करते है।
मुद्रास्फीति की स्थितियाँ
मुद्रास्फीति को उसके प्रतिशत के आधार पर निम्न 4 श्रेणियों में बाँटा गया है –
1. घिसटती मुद्रास्फीति – 3% से कम – नियंत्रित स्थिति
2. चलती मुद्रास्फीति – 3-5% तक – नियंत्रित स्थिति
3. दौड़ती मुद्रास्फीति– 5-10% तक – चिंतित स्थिति
4. अति मुद्रास्फीति – 10% से उपर – अर्थव्यवस्था संकट में
वर्ष 1990 के दौरान भारत में मुद्रास्फीति लगभग 16% से अधिक हो गयी थी।
मुद्रा स्फीति के प्रभाव
अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति के नकारात्मक एवं कुछ सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलते है –
1. मांग ज्यादा का अधिक होना।
2. महंगाई बढ़ना।
3. मुद्रा मूल्य में गिरावट आना।
4. ऋण देने वालों को नुकसान अर्थात बैंकों को नुकसान (क्योंकि मुद्रा का मूल्य कम हो चुका है)।
5. जमाखोरों को फायदा
6.. उत्पादन, रोजगार के अवसर पैदा होंगे क्योंकि अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ी हुयी है।
अर्थशास्त्री फिलिप्स द्वारा दिए गए सिद्धांत के अनुसार महंगाई और बेरोजगारी के बीच एक उल्टा रिश्ता है अर्थात यदि महंगाई बढ़ती है तो बेरोजगारी कम होती है और महंगाई कम होने से बेरोजगारी बढ़ती है। इसी सिद्धान्त को उन्होंने एक वक्र के माध्यम से बताया है जिसे फिलिप्स वक्र के नाम से भी जाना जाता है।
फिलिप्स वक्र (Philips curve)- किसी भी अर्थव्यवस्था में फिलिप्स वक्र द्वारा बेरोजगारी दर व मुद्रास्फीति के वक्रानुपाति संबंधों को दर्शाया जाता है।
2. मुद्रा संकुचन या मुद्रा अपस्फीति (Deflation)
जब अर्थव्यवस्था में मुद्रा की मात्रा में कमी एवं वस्तु और सेवा की मात्रा में बढ़ोतरी होती है तो इस स्थिति को मुद्रा अपस्फीति कहा जाता है। मुद्रा की मात्रा कम होने से मांग में कमी आती है, परन्तु वस्तु और सेवाओं की मात्रा अधिक होने के कारण उनकी कीमतें गिर जाती हैं।
वस्तु और सेवा की मात्रा अधिक होने से उनका मूल्य कम हो जाता है। साथ ही मुद्रा की मात्रा कम होने से उसका मूल्य अधिक हो जाता है।
अर्थव्यवस्था में पहले से ही वस्तु और सेवाओं की अधिकता होने से उत्पादन में कमी आती है, जिससे रोजगार कम होते है जिससे उपभोक्ता की आय समाप्त हो जाती है और क्रय शक्ति घटती है। चीजें सस्ती होने पर भी नहीं बिकती जिसे आर्थिक मंदी भी कहते हैं।
आर्थिक मंदी, मुद्रास्फीति से ज्यादा भयानक होती है क्योंकि इससे चीजें जितनी सस्ती होती हैं। उतनी ही क्रय शक्ति घटती जाती है। क्रयशक्ति घटने से बाजार में तरलता भी कम हो जाती है, जिससे उत्पादन भी कम हो जाता है और पुनः मंदी आती है। यह एक चक्रीय क्रम में चलती रहती है।
परिभाषा- जब अर्थव्यवस्था में वस्तु एवं सेवा की तुलना में मुद्रा की मात्रा कम हो जाती है।
अपस्फीति के प्रभाव
1. मांग में कमी (आर्थिक मंदी)।
2. उत्पादन में कमी
3. रोजगार में कमी
4. मुद्रा की मात्रा में कमी परन्तु मूल्य में वृद्धि।
5. ऋण देने वाले को फायदा अर्थात बैंकों को (क्योंकि मुद्रा का मूल्य बढ़ चुका है)।
नोट : जब मुद्रास्फीति एवं अपस्फीति एक साथ उत्पन्न हो जाती हैं, उस स्थिति को निस्पंद (Stagflation) स्थिति कहते हैं।
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