बद्री दत्त पाण्डे (कुमाऊँ केसरी) की जीवनी : बद्रीदत्त पांडे (Badri Dutt Pandey) का जन्म 15 फरवरी 1882 को कनखल हरिद्वार में हुआ था। सात वर्ष की आयु में बद्री दत्त पांडे के माता-पिता का निधन हो गया। बद्री दत्त पांडे मूल रूप से अल्मोड़ा के रहने वाले थे। इसलिए माता-पिता के निधन के बाद वह अल्मोड़ा आ गए। अल्मोड़ा में ही उन्होंने पढ़ाई की।
1903 में उन्होंने नैनीताल में एक स्कूल में शिक्षण कार्य किया। कुछ समय बाद देहरादून में उनकी सरकारी नौकरी लग गई, लेकिन जल्दी ही उन्होंने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और पत्रकारिता में आ गए।
उन्होंने 1903 से 1910 तक देहरादून में लीडर नामक अखबार में काम किया। 1913 में उन्होंने अल्मोड़ा अखबार की स्थापना की। उन्होंने इस अखबार के जरिए स्वतंत्रता आंदोलन को गति देने का काम किया। इसी कारण कई बार अंग्रेज अफसर इस अखबार के प्रकाशन पर रोक लगा देते थे। अल्मोड़ा अखबार को ही उन्होंने शक्ति अखबार का रूप दिया। शक्ति साप्ताहिक अखबार आज भी लगातार प्रकाशित हो रहा है।
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जन्म | 15 फरवरी, 1882 |
मृत्यु | 13 फरवरी, 1965 |
जन्मस्थल | कनखल, हरिद्वार |
1921 में कुली बेगार आंदोलन में बीडी पांडे की भूमिका को हमेशा याद किया जाता है। उन्हें कुमाऊं केसरी की उपाधि से भी नवाजा गया। बद्री दत्त पांडे 1921 में एक साल, 1930 में 18 माह, 1932 में एक साल, 1941 में तीन माह जेल में रहे। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी उन्हें जेल भेजा गया।
आजादी के बाद भी अल्मोड़ा में रहकर वह सामाजिक कार्यों में सक्रियता से हिस्सा लेते रहे। 1957 में दूसरी लोकसभा के लिए हुए चुनाव में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हरगोविंद पंत चुने गए, लेकिन कुछ ही माह में उनका निधन हो गया।
इसके बाद सितंबर 1957 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने बद्री दत्त पांडे को प्रत्याशी बनाया और वह विजयी हुए। बद्री दत्त पांडे बहुत बेबाक माने जाते थे। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को मिलने वाली पेंशन आदि का लाभ भी नहीं लिया। 1962 के चीन युद्ध के समय अपने सारे मेडल, पुरस्कार आदि सरकार को भेंट कर दिए। 13 फरवरी 1965 को पंडित बद्रीदत्त पाण्डेय का निधन हो गया।
नोट :- पंडित बद्रीदत्त पाण्डेय से सम्बन्धित कुछ बिंदु –
- कुली-उतार, कुली-बैगर व कुली बर्दयस आदि प्रथाओं के विरुद्ध आन्दोलन में पंडित बद्रीदत्त पाण्डेय के सफल नेतृत्व के लिए उन्हें कुर्वांचल केसरी (कुमाऊँ केसरी) की उपाधि दी गई ।
- ये स्वतंत्रा संग्राम के दौरान 5 बार जेल गए, अपने जेल प्रवास में उन्होंने कुमाऊ का इतिहास लिखा ।
- 1903 से 1910 तक देहरादून में लीडर नामक अखबार में काम किया।
- 1913 से वे अल्मोड़ा से प्रकाशित (अल्मोड़ा अखबार) के संपादक बने।
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Thank you he was brother of my great grandfather Shri Hari Datt Pandey