भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के कारण बताइए ? :- भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन Indian National Movement का उदय 19वीं शताब्दी में हुआ जो उस समय की एक प्रमुख घटना थी। इस घटना के प्रमुख कारण राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक आदि थे। Causes of Indian National Movement in hindi.
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भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के कारण
अंग्रेजी शासन के विरुद्ध इस भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का आरंभ होने के बहुत से कारण रहे थे जिनमें से कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –
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1857 का स्वतंत्रता संग्राम
1857 के स्वतंत्रता संग्राम को भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम कहा जाता है और ज्यादातर ब्रिटिश लेखकों ने इसको सैनिक विद्रोह की संज्ञा दी थी परन्तु यह सैनिक विद्रोह नहीं बल्कि स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए भारतीयों द्वारा किया गया पहला जन-विद्रोह था। 1857 के आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रेजों ने कई ऐसे अमानवीय कार्य किए जिससे कई निर्दोष भारतीयों को अपना जीवन त्यागना पड़ा। इस आंदोलन में भले ही उचित नेतृत्व, संचार माध्यमों, सैन्य व्यवस्था आदि की कमी होने से यह आंदोलन सफल नहीं हो पाया परन्तु इस आंदोलन में अंग्रेजों ने अमानवीयता का परिचय कराते हुए भारतीय नागरिकों को अंग्रेजों के प्रति क्रोध व स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए भारतीयों के विचारों को दृढ़ बना दिया और यही आंदोलन भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का एक बहुत बड़ा कारण बना। पढ़ें 1857 की क्रांति और 1857 की क्रांति कारण और परिणाम।
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पश्चिमी संस्कृति एवं शिक्षा का प्रभाव
पश्चिमी संस्कृति का भारतीय राष्ट्रवाद को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण योगदान रहा क्योंकि भारतीय नागरिक जब शिक्षित हुए तो उन्होंने पश्चिमी देशों की तुलना में भारत देश को बहुत बुरी स्थिति में पाया और यह देखते हुए भारतीय इस निष्कर्ष पर पहुंचे की देश की इस स्थिति का कारण विदेशी शासन है। यद्यपि लॉर्ड मैकाले द्वारा भारत में अंग्रेजी शिक्षा को लागू करने का उद्देश्य कम वेतन पर अच्छे क्लर्क प्राप्त करना और भारतीयों को उनके रीति-रिवाजों, परम्पराओं को भूलाकर अंग्रेजी सभ्यता और संस्कृति का प्रचलन करना था परन्तु भारतीयों ने जब अपने समाज के अस्तित्व को खोते हुए देखा तो उनमें एकता का भाव जाग्रत हुआ और उन्होंने अंग्रेजों का विरोध करना आरम्भ कर दिया। इस प्रकार एकता की भावना ने राष्ट्रीयता के विकास को बढ़ाया और यही भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का कारण रही।
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इल्बर्ट बिल विवाद
लॉर्ड रिपन की काउंसिल के एक सदस्य ने वर्ष 1883 में एक बिल पेश किया जिसका मुख्य उद्देश्य भारतीय न्यायाधीशों को भी अंग्रेजी अपराधियों को दंडित करने व मामले सुनने का अधिकार दिया जाना था, परन्तु इस बिल का आंग्ल-भारतीय प्रेस द्वारा विरोध किया गया और साथ ही एक उग्र आंदोलन का आरम्भ किया गया। अंग्रेजों ने इस बिल का विरोध करते हुए भारतीय को नीचा दिखाने का प्रयास किया और उनके लिए कई अत्याचारों के साथ बुरे शब्दों का भी प्रयोग किया गया। भारतीयों ने जब यह देखा कि एक न्यायपूर्ण बिल को पास करने के लिए सभी आंग्ल-भारतीय एकत्रित होकर विरोध कर सकते हैं तो क्यों न भारतीय भी अपने सम्मान को प्राप्त करने के लिए एक आंदोलन की नींव रखें और विरोध करना आरंभ करें और इस प्रकार एक बिल पास करने की वजह से भारतीयों को एकता व आंदोलन करने का मार्गदर्शन मिला जो भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन होने का एक कारण रहा।
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लॉर्ड लिटन की दमनकारी नीति
वर्ष 1876-80 के दौरान लॉर्ड लिटन भारत का वायसराय था। उसके शासनकाल के समय कई ऐसी घटनाएं घटित हुई जिसने भारतीयों को अंग्रेजों के विरुद्ध और आंदोलन करने के लिए बाध्य कर दिया। लिटन के शासनकाल के समय ब्रिटेन से आने वाले कपड़ों पर आयात कर को हटा दिया गया जिससे भारतीय कपड़ा उद्योग पर इसका बहुत बुरा असर पड़ा। इसके अलावा अफगानिस्तान के साथ व लंबे समय के युद्ध के दौरान भारत आर्थिक रूप से तंग हो गया था और दिल्ली दरबार के आयोजन ने भारतीयों के क्रोध को इतना बढ़ा दिया कि वे अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन करने के लिए विवश हो गए।
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सामाजिक व धार्मिक आंदोलन
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन होने में 19वीं शताब्दी के सामाजिक व धार्मिक आंदोलनों का प्रमुख योगदान रहा। इन आंदोलनों में राजा राममोहन राय द्वारा ब्रह्म समाज, स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा आर्य समाज, स्वामी विवेकानंद द्वारा रामकृष्ण मिशन, श्रीमती एनी बेसेंट द्वारा थियोसोफिकल सोसाइटी की स्थापना की गई, जिसके माध्यम से भारतीय नागरिकों के हृदय में देश और समाज के प्रति अपने धर्म एवं संस्कृति के लिए जागरूकता व प्रेम उत्पन्न हुआ। इन आंदोलनों ने भारतीयों के मन में उनके समाज में फैली अनेक दोषों एवं कुरीतियों को दूर करने का प्रयास करने की इच्छा जागृत की। सामाजिक व धार्मिक आंदोलनों का परिणाम यह हुआ कि जनमत में अपने देश के प्रति सुधार की भावना उत्पन्न हुई और भारतीयों में नवजागरण का सूत्रपात हुआ जिसने भारतीयों को भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की ओर अग्रसर होने के लिए बाध्य किया।
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आर्थिक शोषण
अंग्रेजों का भारत आने का एकमात्र उद्देश्य यहाँ व्यापार करना था परन्तु भारतीयों की कमजोरी को देखकर वे यहाँ राजनीति करने में भी सफल हो गए। राजनीतिक क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित करते हुए अंग्रेजों ने देश का आर्थिक शोषण करना आरंभ कर दिया। इसके साथ ही उन्होंने भारत के उद्योगों एवं कृषि व्यवस्था का नाश कर दिया। भारत में आर्थिक शोषण की स्थिति को देख कई भारतीयों ने इसका विरोध करना आरम्भ कर दिया। कई अख़बारों, पत्रिकाओं, पुस्तकों एवं छोटे विद्रोह के माध्यम से भारतीयों ने अंग्रेजी शासकों का घोर विरोध किया। उस समय मुख्य रूप से हिन्दू पेट्रियाना, अमृत बाजार पत्रिका, इंडियन मिरर, बंगली सोम, प्रकाश, संजीवनी एडवोकेट, आजाद हिंदुस्तानी, केसरी, हिन्दू स्वदेश आदि समाचार पत्र प्रचलित थे, जिनके माध्यम से भारतीयों में स्वदेश की भावना उत्पन्न की जा सकती थी। भारतीयों में देशभक्ति की भावना को जाग्रत करने और अपने देश के प्रति प्रेम की भावना उत्पन्न करने में बंकिमचंद्र की आनंदमठ एवं उनका गीत वन्दे मातरम् अत्यधिक प्रचलित हुआ था। अतः अंग्रेजों के भारतीयों पर किए गए अमानवीय व असामाजिक कारण ही भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का कारण बने।
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विदेशी घटनाओं एवं विदेशी संपर्क का प्रभाव
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के समय विदेशों में भी कुछ इस प्रकार की घटनाएं घटित हुई जिससे भारत के इस आंदोलन को प्रोत्साहन प्राप्त हुआ। विदेशी घटनाओं में इंग्लैंड में सुधार कानूनों का पारित होना, अमेरिका में दास प्रथा की समाप्ति, फ़्रांस में तृतीय गणतंत्र की स्थापना व इटली, जर्मनी, रूमानिया तथा सर्विया के आंदोलन शामिल थे। इसके अलावा विदेशी संपर्क के माध्यम से भी भारतीय जागरूक हुए। विदेशी संपर्क के माध्यम से भारतीयों में लोकतांत्रिक, सिद्धांतों एवं संस्थाओं के अध्ययन को प्रोत्साहन मिला तथा भारतीयों में देशप्रेम की भावना जाग्रत हुई।
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