शक्ति साप्ताहिक (1918) :- शक्ति साप्ताहिक (1918) ने कुली बेगार प्रथा, अंग्रेजों के वन सम्बन्धी गलत नियमों, अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों एवं कई स्थानीय मुद्दों पर समय-समय पर आघात किये।
सन् 1918 में ‘अल्मोड़ा अखबार’ के बन्द होने के बाद 15 अक्टूबर 1918 को विजयदशमी के दिन बद्री दत्त पाण्डे ने ‘शक्ति’ नामक पत्र का प्रकाशन शुरू किया। ‘शक्ति’ पत्र में ब्रिटिश सरकार के दमनात्मक कार्यों का विरोध और स्वतन्त्रता संग्राम के सभी पक्षों का मुखर समर्थन किया।
‘शक्ति’ पत्र ने कुली बेगार तथा वन-आन्दोलनों के साथ राष्ट्रीय स्वतन्त्रता संग्राम एवं अन्य स्थानीय मुद्दों पर भी लोगों का ध्यान आकर्षित किया एवं कुमाऊँ में राष्ट्रवादी भावनाओं का प्रसार किया। अंग्रेजी शासन की आलोचना करने की वजह से ‘शक्ति’ पत्र के अधिकांश सम्पादकों को जेल जाना पड़ा और यातनाएँ सहनी पड़ीं।
‘शक्ति’ पत्र के सम्पादक के रूप में बद्री दत्त पाण्डे, बिक्टर मोहन जोशी, राम सिंह धौनी, दुर्गा दत्त पाण्डेय मनोहर पन्त, पूरन चन्द्र तिवारी, देवीदत्त पन्त, कृष्ण चन्द्र जोशी, मथुरा दत्त त्रिवेदी, कैलाश चन्द्र आदि ने कार्य किया।
सर्वप्रथम ‘शक्ति’ ने ही ‘कुली बेगार’ और ‘जंगलात’ सम्बन्धी स्थानीय मुद्दों को उठाया, ‘शक्ति’ के प्रारम्भिक अंको में इन दोनो आन्दोलनों के प्रति अत्यन्त उग्र और आक्रामक लेख लिखे गए।
‘शक्ति’ पत्र के अंग्रेज सरकार के प्रति इस आक्रामक रवैये के कारण 14 जून 1930 को ‘शक्ति’ के संस्थापक बद्री दत्त पाण्डे को गिरफ्तार कर लिया गया। 1930 में ही ‘शक्ति’ पत्र से जमानत स्वरूप 1 हजार माँगे गए जिस कारण प्रेस चार महीने तक बन्द रहा।
इस घटना के 2 साल बाद 2 अप्रैल 1932 को ‘शक्ति’ पत्र की कई कागजात अंग्रेजों ने जब्त कर लिए।
अंग्रेजों द्वारा शक्ति पत्र के संचालक मण्डल के सभी सदस्यों को 9 अगस्त 1942 को गिरफ्तार कर लिया गया जिसके कारण पत्र तीन वर्ष एवं पांच माह हेतु बन्द रहा।
1946 में ‘शक्ति’ पत्र एक बार फिर प्रकाशित हुआ।
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