कालापानी भारत नेपाल सीमा विवाद क्या है

‘कालापानी’ भारत नेपाल सीमा विवाद क्या है ?

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‘कालापानी’ भारत नेपाल सीमा विवाद क्या है ?

कालापानी पर तीन देशों के बॉर्डर भारत, नेपाल और चीन मिलते हैं, कालापानी क्षेत्र से होकर महाकाली नदी गुजरती है जिसे भारत में शारदा नदी और नेपाल में काली नदी के नाम से जाना जाता है। भारत कालापानी को उत्तराखण्ड राज्य के पिथौरागढ़ जिले के धारचूला तहसील का हिस्सा बताता है। वहीं नेपाल कालापानी को नेपाल के दार्चुला जिले का हिस्सा बताता है।

(Kalapani, Indo-Nepal border dispute in Hindi)

Kalapani
स्रोत: गूगल मैप

भारत नेपाल कालापानी विवाद ख़बरों में क्यों है ?

यूँ तो कालापानी विवाद कोई नया नहीं है लेकिन वर्तमान में इसकी शुरुआत भारत सरकार द्वारा 2 नवंबर को भारत देश का नया नक्शा जारी करने के बाद शुरू हुआ है। जम्मू कश्मीर राज्य को केंद्र शासित प्रदेश बना देने के कारण भारत के इस नए मैप में 28 राज्य और 9 केंद्र शासित प्रदेश दर्शाये गए हैं। इस नए मैप पर 6 नवंबर को नेपाल के विदेश मंत्रालय ने आपत्ति जताई है क्यूंकि भारत ने कालापानी को भारत का हिस्सा बताया है जबकि नेपाल ‘कालापानी’ को अपने देश का अभिन्न अंग मानता है।

हालाँकि भारत का इस पर मत है कि हमारे द्वारा कई वर्षों से यही मैप जारी किया जा रहा है जिसमें कि कालापानी को सदैव भारत के हिस्से के रूप में दिखाया गया है और इस नए मैप में बस जम्मू कश्मीर राज्य को अब जम्मू कश्मीर और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेशों का ही बदलाव दर्शाया गया है और किसी अन्य सीमा को नहीं छेड़ा गया है।

कालापानी का भारत के लिए महत्व क्या है ?

कालापानी भी डोकलाम की तरह ट्रायजंक्शन पर है अर्थात जैसे डोकलाम में भारत, भूटान और चीन की सीमाएं मिलती हैं ठीक उसी प्रकार कालापानी में भारत, नेपाल और चीन की सीमाएं मिलती हैं। यह इस क्षेत्र की सबसे ऊँची जगह भी है इसलिए वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के समय से ही यहाँ पर इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस तैनात है और तब से यह हिस्सा भारतीय सेना के कब्जे में रहा है।

डिफेंस एक्सपर्ट मानते हैं कि ऊंचाई पर होने की वजह से यह भूभाग भारत के लिए अति महत्वपूर्ण है यही कारण है कि चीन ने कभी इस हिस्से पर कब्ज़ा करने का प्रयास नहीं किया है। भारत को डर है कि अगर वह कालापानी से अपनी सेना हटा देगा तो चीन वहां अपना कब्ज़ा कर लेगा जोकि हर तरह से भारत के लिए नुकसान देय होगा।

Kalapani on Map issued by Indian Government

कालापानी विवाद की वजह

कालापानी विवाद की वजह भारत और नेपाल के बीच कोई सीमा समझौता न होना है। वर्तमान में महाकाली नदी को ही भारत और नेपाल के बीच सीमा निर्धारण माना जाता है। महाकाली नदी एक पहाड़ी नदी है जोकि समय-समय पर अपना रास्ता और स्थिति बदलती रहती है जिसकी वजह से भारत नेपाल सीमा बदलती रहती है।

भारत और नेपाल के मध्य सीमा के सीमांकन पर सहमति नहीं है। वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली नेपाल यात्रा के दौरान कालापानी विवाद पर चर्चा हुई थी लेकिन अब तक इस मुद्दे को सुलझाया नहीं गया है।

कालापानी विवाद का इतिहास

कालापानी विवाद का इतिहास काफी पुराना है इसकी शुरुआत संगोली संधि जिसे सिंगोली की संधि (Singloi ki Sandhi) भी कहा जाता है से हुई थी। वर्ष 1790 में नेपाल के गोरखा कुमाऊँ के चन्द राजाओं को पराजित कर कुमाऊं पर अपना अधिपत्य जमा चुके थे और गढ़वाल पर आक्रमण करने की योजना बना रहे थे। उस समय वर्तमान उत्तराखंड कुमाऊं और गढ़वाल में बंटा हुआ था जहाँ अलग-अलग राजाओं का अधिपत्य था।

वर्ष 1791 में गोरखाओं ने गढ़वाल पर आक्रमण कर दिया लेकिन वो परास्त हुए फलस्वरूप गोरखाओं को तत्कालीन गढ़वाल नरेश से संधि करनी पड़ी जिसके तहत गोरखाओं ने प्रतिवर्ष 25000 रुपये कर गढ़वाल नरेश को देने और पुनः गढ़वाल पर आक्रमण न करने की शर्त स्वीकारी।

1803 में गढ़वाल में विनाशकारी भूकंप आया जिसे इस भूभाग में आया अब तक का सबसे विनाशकारी भूकंप माना गया है। बताया जाता है कि रिक्टर स्केल पर इस भूकंप की तीव्रता 8.5 थी। विनाशकारी भूकंप से त्रस्त गढ़वाल पर फरवरी 1803 को अमरसिंह थापा और हस्तीदल चौतरिया के नेतृत्व में नेपाली गोरखाओं ने गढ़वाल पर आक्रमण कर दिया और गढ़वाल के कुछ हिस्सों पर कब्ज़ा कर लिया।

तत्कालीन गढ़वाल नरेश प्रद्युम्नशाह ने पुनः सेना जुटा गोरखाओं पर आक्रमण किया, 14 मई 1804 को देहरादून के खुड़बुड़ा के मैदान में हुए इस युद्ध में प्रद्युम्नशाह वीरगति को प्राप्त हुए। जिसके बाद सम्पूर्ण कुमाऊं और गढ़वाल नेपाली गोरखाओं के कब्जे में आ गया।

प्रद्युम्नशाह के पुत्र सुदर्शनशाह ने तत्कालीन अंग्रेज गवर्नर जनरल लॉर्ड हेस्टिंग्स से सहायता की मांग की जिसके बाद अक्टूबर 1814 को अंग्रेजी सेना ने गढ़वाल की तरफ कूच की और 1815 में गढ़वाल को गोरखाओं से स्वतंत्र करा लिया। अब केवल कुमाऊं क्षेत्र ही गोरखाओं के अधीन था।

अब अंग्रेजी सेना ने कुमाऊं पर से गोरखाओं का अधिकार मिटाने और अपनी सत्ता स्थापित करने के लिए कुमाऊं पर आक्रमण किया जिसके फलस्वरूप 27 अप्रेल 1815 को कर्नल गार्डनर और नेपाली गोरखा शासक बमशाह के बीच संधि हुई, जिसके तहत कुमाऊं की सत्ता अंग्रेजों को सौंप दी गयी।

28 नवंबर 1815 को बिहार के चम्पारण जिले के संगोली में अंग्रेजों और गोरखाओं के मध्य एक संधि हुई। जिसे संगोली संधि के नाम से जाना गया।

संगोली संधि को तत्कालीन नेपाल नरेश ने मानने से इनकार कर दिया। जिसके फलस्वरूप अंग्रजी सेना ने फरवरी 1816 में नेपाल पर आक्रमण कर दिया और काठमाण्डू के समीप गोरखाओं को हरा दिया जिसके परिणामस्वरूप मार्च 1816 में गोरखाओं को संगोली की संधि स्वीकारनी पड़ी।

संगोली संधि के तहत नेपाल को उसके नियंत्रण वाले भूभाग का लगभग एक तिहाई हिस्सा ब्रिटिश सेना (ईस्ट इंडिया कंपनी) को सौंपना पड़ा। जिसमें नेपाल के राजा द्वारा पिछले 25 वर्षों में जीते गये क्षेत्र पूर्व में सिक्किम, पश्चिम में कुमाऊं और गढ़वाल राजशाही और दक्षिण में तराई का अधिकतर क्षेत्र शामिल थे। साथ ही काठमाण्डू में एक ब्रिटिश रेजिमेंट रखना स्वीकार किया।

यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि संगोली संधि के तहत काली नदी के पश्चिम का क्षेत्र नेपाल के राजा ने ब्रिटिश सरकार को सौंप दिया। यानि कि काली नदी (भारत में शारदा) के पश्चिम का क्षेत्र ब्रिटिश इंडिया का और काली नदी के पूर्व का क्षेत्र नेपाल का होगा यह तय किया गया।

यहीं से इस विवाद की शुरुआत होती है क्योंकि काली और राप्ती नदियों के बीच का सम्पूर्ण तराई क्षेत्र भी इस संधि के तहत ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंपा गया था अतः कालापानी भारत का हिस्सा हुआ लेकिन काली नदी के पूर्व में होने के कारण नेपाल इसे अपना हिस्सा बताता है।

ब्रिटिशकाल में 1879 में तैयार कुमाऊंगढ़वाल के मानचित्र में कालापानी क्षेत्र को भारत का हिस्सा बताया गया है। यह मूल मानचित्र लंदन स्थित ब्रिटिश-भारत पुस्तकालय में उपलब्ध है।

 

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1 Comment

  1. नमस्कार (studyfry) के सभी सदस्यों को । मुझे आपकी साइट से काफी कुछ सीखने को मिलता है , श्रीमान मुझे बहुत ही ख़ुशी होती है जब मैं यहां से नित दिन नई जानकारी प्राप्त करता हूँ, आप सभी को मेरा राष्ट्रवादी प्रणाम ।
    धन्यवाद आपको हमेशा नई जानकारियों से अवगत कराने के लिए।

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