उत्तराखंड की प्रमुख बोलियाँ एवं भाषाएँ : उत्तराखंड में मुख्यतः पहाड़ी बोली का प्रयोग किया जाता है, जो हिंदी की पांच उपभाषाएं (Sub-Language) (पूर्वी हिन्दी, पश्चिमी हिंदी, राजस्थानी हिंदी, बिहारी हिंदी और पहाड़ी हिंदी के अंतर्गत आती है, तथा इस के अलावा अन्य भाषाओं के अंतर्गत 18 बोलियाँ है।
कश्मीर के दक्षिण-पूर्वी सीमा पर भद्रवाह से नेपाल तक के पूर्वी भाग में बोली जाने वाली भारतीय-आर्य भाषा (Indo-Aryan Language) परिवार के अंतर्गत प्राय: सभी बोलियां पहाड़ी उपभाषा में आती है।
पहाड़ी हिंदी को तीन वर्गों में बांटा गया है। पूर्वी पहाड़ी, मध्य पहाड़ी और पश्चिमी पहाड़ी(East Pahadi, Middle Pahadi and West Pahadi)। उत्तराखंड के लगभग संपूर्ण भाग मध्य पहाड़ी भाषा क्षेत्र में आता है। जिसके अंतर्गत मुख्यतः कुमाऊँनी (Kumoani) और गढ़वाली (Garhwali) बोलियां बोली जाती है।
इन बोलियों में साहित्य सर्जन (Literature Creation) और फिल्मों के भी निर्माण हुए है। अत: इन्हें भाषा का भी दर्जा प्राप्त है। इन बोलियों के लेखन में देवनागरी लिपि (Devnagari Script) का प्रयोग किया जाता है।
राज्य में हिंदी (Hindi) के अलावा उर्दू, पंजाबी, बांग्ला आदि भाषाएं बोली जाती है। भाषा और उसके बोलने वालों की संख्या इस प्रकार है :-
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♦ कुमाऊंनी बोली (Kumaoni Language)
राज्य में कुमाऊँनी क्षेत्र (Kumauni Area) के उत्तरी तथा दक्षिणी (North and South) सीमांत को छोड़कर शेष भू-भाग की भाषा कुमाऊनी है। इस भाषा के मूल रूप के संबंध में विद्वानों के अलग-अलग दृष्टिकोण सामने आते है।
- कुमाऊंनी भाषा का विकास दरद (Dard), खस (Khas), पैशाची (Paishachi) व प्राकृत (Prakrti) बोलियों से हुआ है।
- हिंदी की ही भांति कुमाऊंनी भाषा का विकास भी शौरसेनी (Shauraseni), अपभ्रंश (Apabhramsa) भाषा से हुआ है।
भाषा वैज्ञानिक (Language Scientist) डॉ. त्रिलोचन पांडे (Dr. Trilochan Pandey) के अनुसार उच्चारण (pronounced), ध्वनि तत्व (Sound elements) और रूप रचना (Creation as) के आधार पर कुमाऊँनी भाषा को चार वर्गों में तथा उसकी 12 प्रमुख बोलियां निर्धारित की गई है, जो इस प्रकार है :-
पूर्वी कुमाऊनी वर्ग
- कुमैया (Kumaya):- यह नैनीताल (Nainital) से लगे हुए काली कुमाऊं (Kali Kumaon) क्षेत्र में बोली जाती है।
- सौर्याली (Suryali) :- यह सौर (Saur) क्षेत्र में बोली जाती है। इसके अलावा इसे दक्षिण जोहार (South Johar) और पूर्वी गंगोली (Eastern Gangoli) क्षेत्र में भी कुछ लोग बोलते है।
- सीराली (Sirali) :- यह अस्कोट (Askot) के पश्चिम में सीरा (Sira) क्षेत्र में बोली जाती है।
- अस्कोटी (Askoti) :- यह अस्कोट क्षेत्र की बोली है। इस पर नेपाली (Nepali) भाषा का प्रवाह है।
पश्चिमी कुमाऊनी वर्ग
- खसपराजिया (Khasprajiya) :- यह बारह मंडल और दानपुर के आस-पास बोली जाती है।
- पछाई (Pchhai) :- यह अल्मोड़ा (Almora) जिले के दक्षिणी भाग में गढ़वाल सीमा पर बोली जाती है।
- फाल्दा कोटी (Falda Koti) :- यह नैनीताल (Nainital) के फाल्दाकोट (Faldakot) क्षेत्र और अल्मोड़ा (Almora) के कुछ भागों तथा पाली पछाऊ (Pali Pchhau) के क्षेत्र में बोली जाती है।
- चोगर्खिया (Chogrkhia):- यह चोगर्खा परगना में बोली जाती है।
- गंगोई (Gangoi) :- यह गंगोली (Gangoli) तथा दानापुर (Danapur) की कुछ पट्टियों में बोली जाती है।
- दनपुरिया (Dnpuriya) :- यह दानापुर (Danpur) के उत्तरी भाग और जौहर (Jauhar) के दक्षिण भाग में बोली जाती है।
उत्तरी कुमाऊनी वर्ग
- जोहारी (Johari) :- यह जौहर (Jauhar) व कुमाऊ (Kumaon) के उत्तर सीमावर्ती क्षेत्रों में बोली जाती है। इस क्षेत्र के भोटिया (Bhotia) भी इसी भाषा का प्रयोग करते है। इस पर तिब्बती भाषा (Tibetan Language) का प्रभाव दिखाई पड़ता है।
दक्षिणी कुमाऊनी वर्ग
- नैनीताल कुमाऊनी या रचभैसी (Nainital Kumauni or Rachbhaisi) :- यह नैनीताल, भीमताल, काठगोदाम, हल्द्वानी (Nainital, Bhimtal, Kathgodam, Haldwani) आदि क्षेत्रों में बोली जाती है। कुछ जगह इसे नैणतलिया कि कहते है।
कुमाऊँ क्षेत्र की बोलियां
मझकुमैया (Mjhkumaya)
कुमाऊं तथा गढ़वाल (Kumaon and Garhwal) के सीमावर्ती क्षेत्रों में बोली जाती है। यह कुमाऊनी-गढ़वाली का मिला जुला (Mixed) रूप है।
गोरखाली बोली (Gorkha Language)
यह नेपाल (Nepal) से लगे क्षेत्रों तथा अल्मोड़ा (Almora) के कुछ स्थानों पर गोरखाओं द्वारा बोली जाती है। मूलरूप से यह नेपाली बोली (Nepali) है।
भावरी (Bhavari)
चंपावत (Champawat) के टनकपुर (Tanakpur) से उधम सिंह नगर (Udham Singh Nagar) के काशीपुर (Kashipur) तक भावरी बोली जाती है।
शौका (Shauka)
पिथौरागढ़ (Pithoragarh) का उत्तरी क्षेत्र शौका बहुल (Shauka-Majority) है, जो की शौका बोली बोलते है।
राजी (Raji)
पिथौरागढ़ (Pithoragarh) के अस्कोट, धारचूला और डीडीहाट (Askot, Dharchula and Didihat) के आस-पास के बनरौत (Banraut) लोग राजी बोली बोलते है।
बोक्साड़ी (Boksadhi)
कुमाऊं (Kumaon) के दक्षिणी छोर पर रहने वाले बोक्सा जनजाति के लोग बोक्साड़ी बोलते है। जबकि इसी भाग के थारु लोग अपनी बोली बोलते है।
पंजाबी (Punjabi)
कुमाऊं (Kumaon) का दक्षिणी भू-भाग सिक्ख बहुल (Sikh-Majority) है। जसपुर, बाजपुर, ऊधम सिंह नगर, रुद्रपुर, हल्द्वानी (Jaspur, Bazpur, Udham Singh Nagar, Rudrapur, Haldwani) आदि क्षेत्रों के पंजाबी भाषी लोग पंजाबी बोली का प्रयोग करते है।
बांग्ला (Bangla)
कुमाऊं (Kumaon) के दक्षिण भाग में बंगाली लोगों का भी निवास है, जो कि बांग्ला-भाषा बोलते है।
कुमाउनी लोक साहित्य (Kumauni Folk Literature)
कुमाऊनी लोक साहित्य के दो भाग है :- लिखित साहित्य (Written Literature) और मौखिक साहित्य (Oral Literature)
लिखित साहित्य (Written Literature)
कुमाऊनी के विद्वान डॉ. योगेश चतुर्वेदी (Dr. Yogesh Chaturvedi) अपनी पत्रिका ‘गुमानी ज्योति’ (Gumani Jyoti)’ में लिखते हैं कि – “लोहाघाट (Lohaghat) के एक व्यापारी के पास से चंपावत (Champawat) के चंद (Chand) राजा थोर अभय चन्द्र (Thor Abhay Chandra) का 989 ई. का कुमाऊनी भाषा में लिखित ताम्रपत्र मिला है, जिससे स्पष्ट होता है कि दसवीं सदी में भी कुमाऊनी भाषा के रूप में प्रतिष्ठित थी।”
सन 1871 में प्रकाशित “अल्मोड़ा अखबार (Almora Akhbar)” तथा 1918 में प्रकाशित “शक्ति (Shakti)” साप्ताहिक पत्रिका ने कुमाऊनी साहित्य के विकास में बहुमूल्य योगदान दिया है।
मौखिक लोक साहित्य (Oral Folk Literature)
मौखिक कुमाऊनी लोक साहित्य में लोकगीतों (Folk Songs), लोककथाओं (Folklore), लोकगाथाओं (Lokgathaon) आदि को सम्मिलित किया जा सकता है।
कुमाऊं क्षेत्र के लोकगीतों की एक समृद्ध परंपरा रही है। यहां के गीतों को कृषि गीत (Agriculture song), ऋतुगीत (Hritugeet), संस्कारगीत (Snskargeet), अनुभूति प्रधान गीत (Feeling Songs), नृत्य गीत (Dance Songs), तर्क प्रधान गीत (Argumental Song) आदि प्रकारों में बांटा जा सकता है।
♦ गढ़वाली बोली (Garhwali Languages)
कुमाऊँनी भाषा की भांति गढ़वाल की उत्पत्ति के विषय में भी विद्वानों में मतभेद है। मैक्समूलर (Maksmulr) ने अपनी पुस्तक ‘साइंस ऑफ़ लैंग्वेज (Science of Language)’ में गढ़वाली को प्राकृतिक भाषा (Prakrtik Language) का एक रूप माना है।
बोली की दृष्टि से गढ़वाली को डॉक्टर ग्रियर्सन (Doctor Griersn) ने 8 भागों :- श्रीनगर, नागपुरिया, दसौली, बधाणी, राठी, मांझ कुमैया, सलाणी एवं की टीहरयाली (Srinagar, Nagpuria, Dsauli, Bdhani, Rathi, Manjh Kumaya, Salani and Tihryali) में विभक्त किया है।
साहित्य की रचना के लिए विद्वानों ने टिहरी व श्रीनगर (Tehri and Srinagar) के आस-पास की बोली की को मानक गढ़वाली भाषा माना है।
गढ़वाली क्षेत्र की अन्य बोलियां
खड़ी हिंदी (Khadi Hindi)
गढ़वाल (Garhwal) के हरिद्वार, रुड़की, देहरादून (Haridwar, Roorkee, Dehradun) आदि नगरों में खड़ी हिंदी का प्रयोग होता है। इन क्षेत्रों में हरियाणवी खड़ी (Haryanvi Khadi) बोली भी बोली जाती है।
जौनसारी (Jaunsari)
गढ़वाल (Garhwal) क्षेत्र के ऊंचाई वाले स्थान तथा देहरादून (Dehradun) के जौनसार-बाबर (Jaunsar-Babar) क्षेत्र में जौनसारी बोली का प्रचलन है।
भोटिया (Bhotia)
यह बोली चमोली (गढ़वाल) (Chamoli (Garhwal)) तथा पिथौरागढ़ (कुमाऊं) (Pithoragarh (Kumaon))के सीमावर्ती क्षेत्रों में भोटिया लोगों द्वारा बोली जाती है।
गढ़वाली लोक साहित्य (Garhwali Folk Literature)
गढ़वाल के लोक साहित्य को दो भागो- लिखित साहित्य (Written Literature) और मौखिक साहित्य (Oral Literature) में बांटा जा सकता है।
लिखित साहित्य (Written Literature)
सामान्य तौर पर गढ़वाली भाषा में लिखित साहित्य का आरंभ 1750 ई. से माना जाता है। लेकिन भाषाविद श्याम चंद्र नेगी (Shyam Chandra Negi) ने, गढ़वाली नरेश सुदर्शन शाह (Garhwali King Sudarshan Shah) (1815-56) द्वारा लिखित ‘गोरखवाणी (Gorkhwani)’ से गढ़वाली लिखित साहित्य का आरंभ माना है। विकास की दृष्टि से गढ़वाली साहित्य को आरंभिक, गढ़वाली, सिंह, पांथरी और आधुनिक आदि कालों में बांटा जा सकता है।
मौखिक लोक साहित्य (Oral Folk Literature)
मौखिक लोक साहित्य से तात्पर्य उन रचनाओं से होता है, जो मौखिक रूप से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित (Transmitting) होती आ रही है। मौखिक लोक साहित्य में लोकगीत (Folk song), लोक कथाएं (folk tales), लोकोक्तियां (Folklore), पहेलियाँ (Puzzles), लोकवार्ता (Folklore) आदि सम्मिलित है।
पढ़ें उत्तराखंड राज्य के पारम्परिक परिधान।
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