सम्राट अशोक का प्रारंभिक जीवन, सम्राट अशोक की कितनी पत्नियां थी, सम्राट अशोक के कल्याणकारी कार्य, सम्राट अशोक की मृत्यु कैसे हुई, अशोक के अभिलेख (अशोक के 14 शिलालेख), अशोक के अभिलेख किस लिपि में है, अशोक का सबसे बड़ा अभिलेख (अशोक के वृहद शिलालेख, अशोक के अभिलेख UPSC), अशोक के 7 स्तम्भ लेख आदि प्रश्नों के उत्तर यहाँ दिए गए हैं।
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सम्राट अशोक का प्रारंभिक जीवन
सम्राट अशोक का जन्म 304 ईसा पूर्व में बिहार के पाटलिपुत्र में हुआ था। सम्राट अशोक का पूरा नाम देवानांप्रिय (देवताओं का प्रिय) अशोक मौर्य था। वह मौर्य वंश के तीसरे एवं सबसे महत्वपूर्ण राजा के रूप में जाने जाते हैं। सम्राट अशोक के पिता का नाम बिंदुसार एवं माता का नाम सुभद्रांगी था। कई इतिहासकारों का मानना है कि सम्राट अशोक ने अपने 99 सौतेले भाइयों को मारकर राज सिंहासन प्राप्त किया था जिसके कारण लोग उन्हें चण्ड अशोक के नाम से भी संबोधित किया करते थे। सम्राट अशोक ने अपने शासनकाल में कई विश्वविद्यालयों की स्थापना की थी। सम्राट अशोक की गणना भारत के शक्तिशाली एवं विश्व प्रसिद्ध राजाओं में की जाती है।
सम्राट अशोक मगध के सम्राट माने जाते हैं जिसकी राजधानी बिहार में स्थित पाटलिपुत्र थी। माना जाता है कि अशोक का साम्राज्य कलिंग को छोड़कर संपूर्ण भारतवर्ष पर स्थापित था। सम्राट अशोक ने अपने साम्राज्य में विभिन्न स्थानों पर अशोक स्तंभ का निर्माण करवाया। इसके अलावा उन्होंने अपने शासनकाल में हजारों बौद्ध स्तूपों का भी निर्माण करवाया था। कई इतिहासकारों के अनुसार सम्राट अशोक ने 3 वर्षों के अंतराल में ही लगभग 84000 स्तूपों का निर्माण कराया था।
सम्राट अशोक ने 278 ईसा पूर्व में सिंहासन प्राप्त कर लिया था। जिसके बाद उन्होंने कश्मीर एवं खेतानी के विभिन्न क्षेत्रों को अपने साम्राज्य में मिलाने का कार्य किया था। माना जाता है कि सम्राट अशोक के साम्राज्य में दक्षिण भारत एवं अफगानिस्तान का एक बड़ा भूभाग शामिल था। सम्राट अशोक ने सिंहासन की प्राप्ति के लगभग 8 वर्षों बाद कलिंग पर आक्रमण करके उस पर अपना अधिकार स्थापित किया था जिसका उल्लेख अशोक के 13वें शिलालेख में देखने को मिलता है। माना जाता है कि कलिंग के युद्ध ने सम्राट अशोक के जीवन पर गहरा प्रभाव डाला था जिसके फल स्वरूप अशोक ने शस्त्र त्याग की घोषणा कर दी थी। इसके बाद सम्राट अशोक बौद्ध धर्म के अनुयायी बन गए थे। सम्राट अशोक ने अपनी प्रजा के नैतिक उत्थान हेतु अपने विचारों को अभिलेखों के माध्यम से प्रकट किया था जिसे धम्म के नाम से जाना जाता है। सम्राट अशोक ने अपने 10 वर्षों के शासन काल के पश्चात सर्वप्रथम बोधगया की यात्रा की थी।
सम्राट अशोक की कितनी पत्नियां थी
सम्राट अशोक की 5 पत्नियां थी जिनका नाम क्रमशः देवी, पद्मावती, असंधिमित्रा, कारुवाकी एवं तिष्यरक्षित था। सम्राट अशोक के पुत्र महेंद्र एवं पुत्री (संघमित्रा एवं चारुमति) की माता का नाम देवी था एवं उनके पुत्र कुणाल का जन्म पद्मावती के गर्भ से हुआ था। इसके अलावा उनके पुत्र तीवर का जन्म कारुवाकी के गर्भ से हुआ था।
सम्राट अशोक के कल्याणकारी कार्य
सम्राट अशोक ने अपने शासनकाल में कई जनकल्याणकारी कार्य किए थे। उन्होंने कलिंग युद्ध के पश्चात अपना संपूर्ण जीवन जनकल्याण एवं जनता की सेवा में बिताया था। सम्राट अशोक ने अपने साम्राज्य में धर्मशाला, सड़कें, कुएं, पौधारोपण, चिकित्सालय, विश्राम गृह आदि का निर्माण कार्य करवाया था। इसके अलावा सम्राट अशोक ने पशुओं हेतु अस्पतालों की भी स्थापना की थी जिससे अनाथ पशुओं की सुरक्षा एवं देखभाल की जा सके।
सम्राट अशोक की मृत्यु कैसे हुई
कई इतिहासकारों में सम्राट अशोक की मृत्यु को लेकर आज भी मतभेद देखने को मिलते हैं। माना जाता है कि सम्राट अशोक का निधन 232 ईसा पूर्व में हुआ था। तिब्बत की परंपराओं के अनुसार उनका देहावसान तक्षशिला में हुआ था।
अशोक के अभिलेख (अशोक के 14 शिलालेख) – अशोक के अभिलेख UPSC
सम्राट अशोक इतिहास का प्रथम शासक था जिसने अभिलेखों के माध्यम से अपनी प्रजा को संबोधित किया था। इसकी प्रेरणा उन्हें ईरानी शासक के माध्यम से मिली थी। सम्राट अशोक के 14 शिलालेख कुछ इस प्रकार हैं:-
पहला शिलालेख
सम्राट अशोक के पहले शिलालेख में पशु वध की कड़ी निंदा की गई है। इसे ‘गिरनार संस्करण’ के नाम से भी जाना जाता है। इसमें पशु बलि को पूर्ण रूप से निषेध किया गया है जिससे समाज में पशुओं की सुरक्षा होती है। सम्राट अशोक ने पशुओं का वध किए जाने पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाया था। पहले शिलालेख के माध्यम से सम्राट अशोक ने पशु पक्षियों का संरक्षण करने की विचारधारा को प्रस्तावित किया था।
दूसरा शिलालेख
सम्राट अशोक के दूसरे शिलालेख में विदेशों में धम्म प्रचार एवं मनुष्य और पशुओं के चिकित्सा पद्धति का वर्णन किया गया है। अशोक ने अपने दूसरे शिलालेख में कहा है कि उन्होंने पड़ोसी राज्यों में भी मनुष्य एवं पशुओं की चिकित्सा का प्रबंध किया है। यह उनके द्वारा किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण कार्य था।
तीसरा शिलालेख
सम्राट अशोक के तीसरे शिलालेख में रज्जुक, युक्ति एवं प्रादेशिक का उल्लेख किया गया है। इसमें राजकीय पदाधिकारियों को हर 5 वर्षों में राज्य का भ्रमण करने का आदेश दिया गया है। इसके अलावा इसमें कुछ धार्मिक नियमों का भी वर्णन किया गया है।
चौथा शिलालेख
इस शिलालेख में भेरीघोष के स्थान पर धम्मघोष का प्रतिपादन किया गया है। इसमें धर्म के अनुसार शासन करना एवं मनुष्य को शीलवान होना अति उत्तम कार्य बताया गया है।
पांचवा शिलालेख
सम्राट अशोक के पांचवे शिलालेख में धर्म महापात्रों की नियुक्ति के विषय में जानकारी मिलती है। सम्राट अशोक ने इस शिलालेख के माध्यम से यह बताया कि उन्होंने राज्याभिषेक के 13 वर्ष बाद धर्म महापात्रों की नियुक्ति की है।
छठा शिलालेख
इस शिलालेख में सम्राट अशोक ने आत्म नियंत्रण की शिक्षा को प्रतिपादित किया है। उन्होंने छठे शिलालेख के माध्यम से अपने प्रतिवेदकों को प्रजा के विषय में संपूर्ण जानकारी देने का आदेश दिया है। इसके अलावा इस शिलालेख में सभी जन मामलों से संबंधी प्रशासनिक सुधारों का उल्लेख भी किया गया है।
सातवां शिलालेख
सम्राट अशोक के सातवें शिलालेख में उनकी सभी तीर्थ यात्राओं का वर्णन किया गया है। उन्होंने कहा कि उनके साम्राज्य के सभी क्षेत्रों में हर प्रकार के संप्रदाय के व्यक्ति निवास करें क्योंकि वे सब संयम एवं आत्म शुद्धि की कामना करते हैं। इसके अलावा अशोक के सातवें शिलालेख में सभी धार्मिक मतों के प्रति निष्पक्ष भाव का वर्णन भी किया गया है।
आठवां शिलालेख
सम्राट अशोक के सातवें शिलालेख की भांति इसमें भी अशोक के सभी धम्म यात्रा का उल्लेख किया गया है। इस शिलालेख में मुख्य रूप से बोधगया की यात्रा एवं बिहार की यात्रा के स्थान पर धम्म यात्रा का प्रतिपादन किया गया है। इसके साथ ही आठवें शिलालेख में यह भी बताया गया है कि सम्राट अशोक ने कुल 256 रातें अपनी धम्म यात्रा के दौरान बिताई थी। इसके अलावा इसमें यह भी बताया गया है कि अशोक ने राज्याभिषेक के 10वें वर्ष बाद धम्म यात्रा की शुरुआत की थी।
नौवां शिलालेख
इस शिलालेख में अशोक के सच्चे विधानों एवं सच्चे शिष्टाचार का वर्णन किया गया है। सम्राट अशोक के नौवें शिलालेख में धम्म मंगल को सर्वश्रेष्ठ घोषित किया गया है। इसके साथ ही इस शिलालेख में दासों एवं सेवकों को गुरुजनों के प्रति सम्मान का भाव रखने का उल्लेख भी किया गया है।
दसवां शिलालेख
सम्राट अशोक के दसवें शिलालेख में राजा एवं उच्चाधिकारियों को प्रजा के हित में कार्य करने का आदेश दिया गया है। इसमें यश एवं कीर्ति की मुख्य रूप से निंदा की गई है एवं राजाओं को धम्मनिति की श्रेष्ठता पर विचार करने का आदेश भी दिया गया है। इस शिलालेख के माध्यम से सम्राट अशोक धम्माचरण की श्रेष्ठता को घोषित करना चाहते थे।
ग्यारहवां शिलालेख
इस शिलालेख में धम्म की नीतियों को व्यवस्थित किया गया है एवं धम्मदान को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। इसके अलावा अशोक के ग्यारहवें शिलालेख में धम्म के तत्वों का प्रकाशन भी किया गया है।
बारहवां शिलालेख
इस शिलालेख में मुख्य रूप से स्त्री महामात्रों एवं व्रजभूमिकों का वर्णन किया गया है। इसमें सम्राट अशोक की धार्मिक सहिष्णुता को दर्शाने का कार्य किया गया है। इसके अलावा इस शिलालेख में संप्रदायों का सम्मान करने की बात भी कही गई है। सम्राट अशोक ने बारहवें शिलालेख के माध्यम से धार्मिक सहिष्णुता पर अधिक जोर दिया है।
तेरहवां शिलालेख
सम्राट अशोक के तेरहवें शिलालेख को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया गया है क्योंकि इसमें कलिंग युद्ध के पश्चात सम्राट अशोक के हृदय में आए परिवर्तन का उल्लेख किया गया है। इसके अलावा इस शिलालेख में कलिंग युद्ध के बाद की विजय की घोषणा एवं विदेशों में धम्म प्रचार का वर्णन भी किया गया है। इसके साथ ही इस शिलालेख में पड़ोसी राजाओं का भी उल्लेख किया गया है। सम्राट अशोक ने तेरहवें शिलालेख के माध्यम से आटविक जनजातियों (वन में निवास करने वाली जनजातियाँ) को धर्म का मार्ग चुनने का आदेश दिया है।
चौदहवां शिलालेख
इस शिलालेख में सम्राट अशोक ने जनता को धार्मिक जीवन जीने का संदेश दिया है। इसके अलावा इस शिलालेख में अन्य 13 शिलालेखों का पुनरावलोकन करने के साथ-साथ अशोक के साम्राज्य की श्रेष्ठता का वर्णन भी किया गया है।
अशोक के अभिलेख किस लिपि में है
सम्राट अशोक के समस्त अभिलेखों का वर्णन ब्राह्मी (धर्म लिपि), आरमेइक लिपि, ग्रीक लिपि एवं खरोष्ठी लिपि में उत्कीर्ण है। अशोक के अधिकांश अभिलेखों का वर्णन ब्राह्मी लिपि में किया गया है। सम्राट अशोक के अभिलेख के द्वारा उनके इतिहास की संपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। इनके लगभग 40 अभिलेखों को प्राप्त कर लिया गया है। अशोक के अभिलेख गुफाओं, शिलाओं, पत्थर के स्तंभों पर एवं मिट्टी से बने प्राचीन आकृतियों पर अंकित हैं। यह भारत के उपमहाद्वीप के साथ-साथ अफगानिस्तान में भी पाए गए हैं। भारत में पाए जाने वाले अधिकांश अभिलेख ब्रह्म लिपि में लिखी गई हैं परंतु अफगानिस्तान के अभिलेखों की भाषा खरोष्ठी एवं ग्रीक लिपि में लिखी गयी है।
अशोक का सबसे बड़ा अभिलेख (अशोक के वृहद शिलालेख)
सम्राट अशोक के तेरहवें अभिलेख को सबसे बड़ा अभिलेख माना जाता है। इसमें मुख्य रूप से अशोक की कलिंग विजय का उल्लेख किया गया है। इसके अलावा इस अभिलेख में अशोक के धम्म यवन, ग्रीक, सीलोन आदि राजाओं पर विजय स्थापित करने का भी वर्णन किया गया है। माना जाता है कि कलिंग युद्ध के बाद ही सम्राट अशोक का हृदय परिवर्तन हुआ था जिसके कारण उन्होंने अपने शस्त्रों का त्याग कर दिया था एवं उन्होंने धर्म के मार्ग का पालन किया। माना जाता है कि कलिंग के युद्ध में हुए नरसंहार के कारण अशोक की अंतरात्मा विचलित हो गई थी जिसके बाद उन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाकर शांति की राह का पालन किया था। सम्राट अशोक ने अपने साम्राज्य में हजारों बौद्ध स्तूपों का निर्माण कराया था। बौद्ध धर्म को अपनाने के बाद सम्राट अशोक ने केवल शांति एवं मोक्ष की कामना की थी।
अशोक के 7 स्तम्भ लेख
सम्राट अशोक के 7 स्तंभ लेख निम्नलिखित स्थानों से प्राप्त किए गए हैं:-
दिल्ली टोपरा
सम्राट अशोक के इस स्तंभ लेख को फिरोज शाह तुगलक के द्वारा टोपरा से दिल्ली तक लाया गया था। यह मुख्य रूप से टोपरा (अम्बाला, हरियाणा) में स्थित था जिसे फिरोज शाह द्वारा दिल्ली में स्थापित किया गया था।
प्रयाग
सम्राट अशोक के इस स्तंभ लेख को कौशांबी से इलाहाबाद के किले में स्थापित किया गया था। इस स्तंभ लेख को अकबर के द्वारा इलाहाबाद तक लाया गया था। कौशांबी में सम्राट अशोक के स्तंभ लेख को रानी अभिलेख के नाम से जाना जाता है। इस अभिलेख में समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति निहित है एवं इसमें जहांगीर द्वारा उत्कीर्ण अभिलेख भी मौजूद है।
रामपुरवा
इस स्तंभ लेख की खोज कारलायल द्वारा सन 1872 ईसवी में की गई थी। यह स्तंभ लेख चंपारण (बिहार) में स्थित है।
दिल्ली मेरठ
यह स्तंभ लेख मेरठ में स्थित था जिसे फिरोजशाह के द्वारा दिल्ली तक लाया गया था। इस अभिलेख को भी फिरोज शाह के द्वारा नवीन राजधानी दिल्ली में स्थापित किया गया।
लौरिया अरराज
सम्राट अशोक का यह स्तंभ अभिलेख उत्तरी बिहार के चंपारण जिले में स्थित है।
लौरिया नंदनगढ़
यह स्तंभ लेख भी बिहार के चंपारण जिले में मौजूद है जिसमें मोर की सुंदर आकृति बनी हुई है।
भाब्रु शिलालेख, जयपुर
सम्राट अशोक का स्तंभ लेख अन्य सभी स्तंभ से ऊंचा है।