नाटक और एकांकी क्या हैं एवं नाटक और एकांकी में अंतर

नाटक और एकांकी क्या हैं एवं नाटक और एकांकी में अंतर

नाटक और एकांकी क्या हैं एवं नाटक और एकांकी में अंतर : नाटक और एकांकी में अंतर (नाटक और एकांकी में अंतर उदाहरण सहित) आदि महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर यहाँ दिए गए हैं।

नाटक और एकांकी में अंतर (नाटक और एकांकी में अंतर उदाहरण सहित)

नाटक क्या है

नाटक काव्य का वह हिस्सा होता है जो दर्शकों को रसानुभूति का अनुभव कराता है। नाटक काव्य कलाकारों का एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है जिसमें अभिनय के माध्यम से समाज एवं व्यक्ति के चरित्रों को प्रदर्शित किया जाता है। यह सामान्य रूप से दृश्य काव्य के अंतर्गत आता है जिसका प्रदर्शन रंगमंच पर किया जाता है। इसे काव्य का एक अहम हिस्सा माना जाता है क्योंकि इसमें कई पात्रों की अहम् भूमिका होती है। नाटक का अभिनय करने वाले किरदारों की भूमिका अलग-अलग होती है। नाटक को आमतौर पर रंगमंच पर आयोजित किया जाता है जिससे दर्शकों को लुभाया जाता है। नाटक का आयोजन करने के लिए नाटक को तीन या उससे अधिक अंकों में विभाजित किया जाता है और प्रत्येक अंक विभिन्न दृश्यों में विभाजित किए जाते हैं। नाटक में किरदारों के चरित्र चित्रण के माध्यम से दर्शाया जाता है। यह मुख्य रूप से लेखक एवं दर्शक से जुड़ा हुआ होता है। इसके अलावा नाटक का संबंध निर्देशक, लेखक, पात्र, श्रोता एवं दर्शक आदि लोगों से भी होता है। इसमें श्रव्य काव्य की अधिकता होती है जिसके कारण यह लोक चेतना से अपेक्षा से अधिक सम्बद्ध होता है।

नाटक के प्रमुख तत्व

नाटक के सात प्रमुख तत्व होते हैं जो कुछ इस प्रकार हैं:-

  • पात्र एवं चरित्र का चित्रण
  • कथावस्तु
  • देशकाल एवं वातावरण चित्रण
  • नाटक का उद्देश्य
  • नाटक का संवाद
  • नाटक की शैली
  • अभिनय तथा रंगमंच
पात्र एवं चरित्र का चित्रण

अधिकतर नाटक पुरानी घटनाओं पर आधारित होते हैं। नाटक के प्रमुख पात्र को नायक के नाम से जाना जाता है। वह नाटक की कहानी को अंतिम छोर तक ले जाने का कार्य करता है। किसी नाटक का नायक वह किरदार होता है जो नाटक के फल का एकमात्र उपभोक्ता होता है। इसमें नायक की प्रेमिका या पत्नी को नायिका के नाम से जाना जाता है। नाटक में नायक के सहायक अभिनेताओं को पीठमर्द (नाटक में नायक का मुख्य सहयोगी) कहा जाता है। पात्र एवं चरित्र चित्रण मुख्य रूप से उपन्यास के आधार पर अभिनय करते हैं। इसमें पात्रों की मानसिक स्थिति एवं भावनात्मक परिस्थितियों का चित्रण करके उनकी आंतरिक एवं बाह्य शक्तियों का प्रदर्शन किया जाता है। एक नाटककार मुख्य रूप से तीन प्रकार से चरित्र का चित्र करते हैं पहला कथोपकथन द्वारा दूसरा कार्यकलापों द्वारा एवं तीसरा स्वागत कथन द्वारा।

कथावस्तु

नाटक की कहानी को कथावस्तु कहा जाता है। नाटक की कथावस्तु मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है पहला आधिकारिक एवं दूसरा प्रासंगिक। परंतु नाटककार उपन्यासकार की भाँति कथावस्तु के विस्तृत चुनाव के लिए स्वतंत्र नहीं होते। उन्हें एक उचित अवधि में अभिनय करने के लिए कथा सामग्री का उपयोग करना पड़ता है। कार्य एवं व्यापार के दृष्टिकोण से कथावस्तु की पांच प्रारंभिक अवस्थाएं होती हैं। यह अवस्थाएं कथा के विकास, चरम सीमा एवं समाप्ति कहलाती है।

देशकाल एवं वातावरण चित्रण

किसी नाटक में देश एवं देश के वातावरण का चित्रण किसी उपन्यास की भांति ही उपर्युक्त, पूर्ण एवं हृदयग्राही होती है। इसके माध्यम से किरदारों के व्यक्तित्व को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया जाता है। नाटक में मुख्य रूप से एक देश या युग का चित्रण उसकी संस्कृति, रीति-रिवाजों, सभ्यता, वेशभूषा एवं रहन-सहन के अनुरूप विस्तारित किया जाता है। इसके अलावा देशकाल तथा वातावरण चित्रण में रंगमंच की सभी सुविधाओं का भी विशेष ध्यान रखा जाता है।

नाटक का उद्देश्य

प्रत्येक नाटक में कहानी के रस की प्रधानता होती है। नाटक का उद्देश्य घटनाओं की स्थिति को विस्तारपूर्वक प्रदर्शित करना होता है। यह किसी घटना को आंतरिक एवं बाहरी रूप से समझाने एवं दिखाने का प्रयत्न करता है। प्रत्येक नाटकों में कोई ना कोई उद्देश्य या संदेश अवश्य होता है।

नाटक का संवाद

प्रत्येक नाटक में संवाद तत्व नाटक का आधार तत्व कहलाता है। नाटक लेखन में संवाद तत्व की एक विशेष भूमिका होती है जिसके माध्यम से लेखक अपनी बात को जनता तक पहुंचाने में सक्षम होता है। नाटक के पात्रों द्वारा बोले जाने संवाद के माध्यम से लेखक अपने विचारों को प्रकट करता है।

नाटक की शैली

एक नाटक की शैली वास्तव में एक प्रदर्शन की शैली को संदर्भित करती है। यह शैली मुख्य रूप से रंगमंच के कार्यों को प्रस्तुत करती है। नाटक की शैली कलाकारों को नाटकीय रूपरेखा प्रदान करने में मदद करती है।

अभिनय तथा रंगमंच

अभिनय तथा रंगमंच नाटक का प्रमुख अंग माने जाते हैं क्योंकि इसके माध्यम से एक घटना को कहानी के रूप में जनता तक पहुंचाया जाता है। अभिनय के चार प्रकार होते हैं वाचिक, आंगिक, सात्विक एवं आहार्य। अभिनय तथा रंगमंच के माध्यम से नाटक की सार्थकता संभव होती है।

नाटक के कुछ उदाहरण

  • त्रासदी एक प्रकार का नाटक है जिसमें मुख्य रूप से नाटक की प्रकृति को पूर्ण रूप से वर्णित किया जा सकता है। इस प्रकार के नाटक में एक विनाशकारी अंत को दर्शाया जाता है। विलियम शेक्सपियर का प्रसिद्ध नाटक ‘रोमियो एंड जूलियट’ (Romeo and Juliet) त्रासदी नाटक का एक उदाहरण है।
  • रोमांचक भी एक प्रकार का नाटक है जो मुख्य रूप से दर्शकों को रोमांचित करने का कार्य करता है। हिंदी रंगमंच पर समय-समय पर इस प्रकार के नाटकों का आयोजन किया जाता है जिससे जनता में उत्सुकता बनी रहती है।
  • भीष्म साहनी द्वारा लिखे गए ‘कबीरा खड़ा बाजार में’ नाटक में मुख्य रूप से सांप्रदायिक दंगों एवं तनाव के बीच की स्थिति को दर्शाया गया है। इसके अलावा यह नाटक कबीर की जीवनी एवं कविता के महत्व को भी समझाता है।
  • कुतूहल नाटक भी एक प्रकार का नाटक है जिसमें संपूर्ण मानव जीवन का रोचक एवं कुतूहलपूर्ण ढंग से वर्णित किया जाता है।

नाटक के प्रकार

नाटक मुख्य रूप से 6 प्रकार के होते हैं जैसे:-

  • त्रासदी नाटक (Tragedy Drama)
  • हास्य नाटक (Comedy Act)
  • कौतूहल नाटक (Curiosity Act )
  • प्रहसन नाटक (Skit)
  • अतिनाटक नाटक (Dramatic Play)
  • संगीतमय नाटक (Musical Drama)

एकांकी क्या है

यदि एक अंक में किसी नाटक की समाप्ति होती है तो उसे एकांकी कहा जाता है। एकांकी को ‘वन एक्ट प्ले’ (One Act Play) के नाम से भी जाना जाता है। एकांकी एक सर्वथा स्वतंत्र विधा है जो पात्र, संवाद, घटना आदि के दृष्टिकोण से सीमित होता है। एकांकी या एकांक में मात्र एक अंक होता है। आधुनिक कहानी की तरह ही हिंदी एकांकी पर भी पश्चिमी का प्रभाव होता है। प्राचीन काल में पश्चिम में बड़े-बड़े नाटकों का आयोजन किया जाता था जहां एकांकी के नए दृष्टिकोण को मुख्य रूप से अपनाया गया था। एकांकी में मुख्य रूप से एक घटना होती है जिसके माध्यम से नाटक को बड़ी कुशलता से चरम सीमा तक पहुंचाया जाता है। इसमें संपूर्ण कार्य को एक ही स्थान एवं समय पर पूरा करने का प्रयास किया जाता है। एकांकी में कथानक के पांच मुख्य भाग होते हैं प्रारंभ, नाटकीय स्थल, द्वंद, चरम सीमा एवं परिणति। एकांकी का कथानक मुख्य रूप से इतिहास, पुराण, राजनीति, लोकतंत्र, चरित्र एवं समाज के माध्यम से लिया जाता है। इसका सीधा संबंध जीवन की किसी अहम् घटना से होता है।

एकांकी में कम से कम संवादों के माध्यम से भावों को व्यक्त करने का प्रयास किया जाता है। इसमें मुख्य रूप से संवाद, परिस्थिति एवं पात्रों की मानसिक स्थिति को प्रकट किया जाता है। एकांकी की भाषा सहज, स्वाभाविक एवं रोचक बनाई जाती है जिससे दर्शक पात्रों के स्वभाव को आसानी से समझ सके।

एकांकी के प्रमुख तत्व

एकांकी के प्रमुख तत्व कुछ इस प्रकार है:-

  • कथावस्तु
  • भाषा शैली
  • रंगमंचीयता
  • देशकाल वातावरण
  • पात्र एवं चरित्र चित्रण
  • उद्देश्य
कथावस्तु

नाटक की ही तरह एकांकी में भी कथावस्तु के माध्यम से एक एकांकीकार अपने उद्देश्य को प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करता है। कथावस्तु के माध्यम से दर्शक को लुभाया जाता है जिससे दर्शकों में आगे के दृश्य को जानने की उत्सुकता बनी रहती है। यह वास्तव में कौतूहल को बनाए रखने का कार्य करता है। एकांकी में कथावस्तु को तीन मुख्य भागों में विभाजित किया जा सकता है पहला प्रारंभिक, दूसरा विकास एवं तीसरा चरमोत्कर्ष।

भाषा शैली

भाषा शैली एकांकी का महत्वपूर्ण तत्व माना जाता है क्योंकि इससे एक समान विषय वस्तु के आधार पर कहानी की रचना एवं काव्य की रचना के माध्यम से नाटक को आयोजित किया जाता है। किसी भी कहानी के लिए भाषा शैली, वर्णन हेतु अधिक उपयुक्त होती है। संवाद में लिखी गई कहानी की भाषा शैली एकांकी की भाषा शैली से भिन्न होती है क्योंकि उसमें किसी भी प्रकार का नाटकीय तत्व नहीं होता। एकांकी की भाषा शैली में पात्र की शिक्षा एवं संस्कृति वातावरण परिस्थितियों के अनुरूप होता है।

रंगमंचीयता

एकांकी के सफल अभिनय हेतु एक उचित रंगमंच साज-सज्जा के साथ कुशल अभिनेता की उपस्थिति बेहद अनिवार्य होती है क्योंकि इसमें एकांकी के मूल उद्देश्य की अभिव्यक्ति का पूरा दायित्व रंगमंच एवं अभिनेताओं के ऊपर ही निर्भर करता है। इसके अलावा एकांकी के लिए रंगमंच को प्रभावशील बनाने के लिए प्रकाश का भी उचित उपयोग किया जाता है।

देशकाल वातावरण

एकांकी को नाटकीय रूप से सफल बनाने के लिए संकलन-त्रय को आधार बनाया जाता है। इसमें मुख्य रूप से देश में घटित संपूर्ण घटनाओं को अभिनय की सहायता से प्रदर्शित किया जाता है। देशकाल वातावरण में यदि दो घटनाओं में कुछ माह या वर्षों का अंतर होता है तो उसे एकांकी का विषय नहीं बनाया जाता। इसमें प्रासंगिक कथाओं को शामिल नहीं किया जाता जिससे व्यापार में क्रमिकता बनी रहती है।

पात्र एवं चरित्र चित्रण

एकांकी में नाटकों के पात्र एवं चरित्र चित्रण घटनाओं के माध्यम से नहीं बल्कि नाटकीय परिस्थितियां के माध्यम से किया जाता है। एकांकी के चरित्र चित्रण में मुख्य रूप से यथार्थता, स्वाभाविकता एवं मनोवैज्ञानिकता का विशेष ध्यान रखा जाता है। इसमें प्रत्येक पात्र अपने क्रियाकलापों के माध्यम से दर्शकों को संकेत देते हैं।

उद्देश्य

एकांकी का उद्देश्य समाज में महिलाओं की दशा को सुधारना एवं उनको उनके अधिकारों के प्रति जागरूक कराना होता है। एकांकी मुख्य रूप से उस पुरुष समाज का विरोध करता है जो महिलाओं को समानता का अधिकार देने से रोकता है। एकांकी के माध्यम से एक लेखक समाज में फैले रूढ़िवाद एवं कुरीतियों को दूर करने का प्रयास करते हैं। इसके अलावा एकांकी का उद्देश्य समाज में महिलाओं को पुरुषों के बराबर ही उच्च शिक्षा एवं सम्मान प्रदान कराना भी होता है।

एकांकी के उदाहरण

‘दीपदान’ एक ऐसी एकांकी है जिसमें बलिदान एवं त्याग के आदर्शों का वर्णन किया गया है। इसमें एक मां के द्वारा देश के लिए अपने पुत्र का बलिदान करने की घटना को दर्शाया गया है। दीपदान में कम से कम संवाद के भावों को व्यक्त करके चरित्र की दृढ़ता को प्रकट किया गया है।

एकांकी के प्रकार

एकांकी के कई प्रकार होते हैं जैसे:-

  • पौराणिक एकांकी (Mythological Single)
  • ऐतिहासिक एकांकी (Historical Monologue)
  • सामाजिक एकांकी (Social Monologue)
  • चरित्र प्रधान एकांकी (Character Single)
  • अर्थपूर्ण एकांकी (Meaningful Lonely)
  • राजनीतिक एकांकी (Political Solitary)

नाटक एवं एकांकी में अंतर

  • नाटक में आधिकारिक कथाओं के साथ-साथ सहायक गौण कथाएं भी सम्मिलित होती है जबकि एकांकी में केवल एक ही कथा एवं घटना को दर्शाया जाता है।
  • नाटक में अनेक अंक होते हैं परंतु एकांकी में केवल एक ही अंक होता है।
  • नाटक में मुख्य रूप से कथानक को विस्तारित रूप से दर्शाया जाता है जबकि एकांत के कथानक में ही घनत्व रहता है।
  • एक नाटक में चरित्र के विकास की गतिविधियों को दर्शाया जाता है जबकि एकांकी में पात्र के क्रियाकलापों एवं चरित्रों का संयोजन किया जाता है।
  • नाटक में कई किरदारों एवं पात्रों की मौजूदगी होती है जबकि एकांकी में पात्रों की संख्या कम से कम होती है।
  • नाटक पृष्ठभूमि एवं कथानक का एक विस्तृत रूप होता है परंतु एकांकी में पृष्ठभूमि एवं कथानक का विस्तार नहीं किया जाता।
  • नाटक में मुख्य रूप से छोटी से छोटी घटनाओं का भी विवरण किया जाता है परंतु एकांकी में छोटी-छोटी घटनाओं का वर्णन नहीं किया जाता है।
  • नाटक में कहानी के विचारों को विस्तारित किया जाता है जबकि एकांकी में विचार को केवल संकेत मात्र रखा जाता है।
  • एक नाटक में किरदारों के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर विचार किया जाता है परंतु एकांकी में उस किरदार के केवल एक पक्ष को ही लिया जाता है।
  • नाटक में स्थान एवं समय की सीमा का विस्तार किया जाता है जबकि एकांकी में घटना, स्थान एवं समय का वर्णन नहीं किया जाता।