Uttarakhand Char Dham
Uttarakhand Char Dham

उत्तराखंड के चार धाम या हिमालय के चार धाम (छोटा चार धाम)

उत्तराखंड के चार धाम को छोटा चार धाम, हिमालय के चार धाम के नाम से जानते हैं। उत्तराखंड के चार धाम में गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ शामिल हैं।



हिमालय के चार धाम

पौराणिक गाथाओं व हिन्दू धर्मग्रंथो के अनुसार गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा करने मात्र से मनुष्य के इस जन्म के पाप धुल जाते है, वरन जन्म-मृत्यु के बंधन से भी मुक्ति मिल जाती है। यह भी माना जाता है, की इन स्थानों पर पृथ्वी एवं स्वर्ग एक हो जाते है

हिमालय के चार धामों को कुछ समय पूर्व तक छोटा चार धाम के नाम से जाना जाता था, जो की बदल कर हिमालय के चार धाम कर दिया गया, क्योंकि ये चारों धाम हिमालय के गोद में स्थित है।

1. गंगोत्री (Gangotri)

Uttarakhand Char Dham Gangotri Temple
Gangotri Temple
स्थानउत्तरकाशी
समुद्र तल से ऊँचाई3042 मीटर
राष्ट्रीय राजमार्गNH108
स्थापना गोरखाओं के सेनापति अमरसिंह थापा द्वारा 18वीं शताब्दी में
पुनरुद्धार जयपुर के राजा माधो सिंह द्वितीय ने
कपाट खुलते हैअक्षय तृतीया के दिन
कपाट बंद होते हैदीपावली के दिन

शिवलिंग चोटी के आधार स्थल पर गंगा पृथ्वी पर उतरी जहां से उसने 2,480 किलोमीटर गंगोत्री से बंगाल की खाड़ी तक की यात्रा शुरू की। इस विशाल नदी के उद्गम स्थल पर इस नदी का नाम भागीरथी है जो उस महान तपस्वी भागीरथ के नाम पर है जिन के आग्रह पर गंगा स्वर्ग छोड़कर पृथ्वी पर आयी। देवप्रयाग में अलकनंदा व भागीरथी नदी के संगम के पश्च्यात बनी इस नदी का नाम गंगा हो जाता है।

प्राचीन काल में गंगोत्री धाम में कोई मंदिर नहीं था। यहाँ भागीरथी शिला के निकट एक मंच था, जहां साल के तीन-चार महीनों के लिये देवी-देताओं की मूर्तियां रखी जाती थी और इन मूर्तियों को गांवों के विभिन्न मंदिरों जैसे श्याम प्रयाग, गंगा प्रयाग, धराली तथा मुखबा आदि गावों से लाया जाता था। तथा बाद में फिर उन्हीं गांवों में लौटा दिया जाता था।

लेकिन 18वीं सदी में गढ़वाल के गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा ने गंगोत्री मंदिर का निर्माण करवाया। ये भी माना जाता है कि जयपुर के राजा माधो सिंह द्वितीय ने 20वीं सदी में इस मंदिर की मरम्मत करवायी।

प्रत्येक वर्ष मई से अक्टूबर के महीनो के बीच गंगा मैया के दर्शन करने के लिए लाखो श्रद्धालु तीर्थयात्री यहां आते है। गंगोत्री का पतित पावन मंदिर शीतकाल मे पूर्णरूप से हिमाछादित रहता है। इस लिए अक्षय तृतीया (अप्रैल-मई) के पावन पर्व पर मंदिर के कपाट खुलते है और दीपावली (अक्टूबर-नंवबर) के दिन कपाट बंद हो जाते है।

पौराणिक मान्यता (Mythical beliefs)

कहा जाता है की, पृथ्वी पर गंगा का अवतरण राजा भागीरथ के कठिन तप से हुआ, जो सूर्यवंशी राजा तथा भगवान राम के पूर्वज थे। मंदिर के बगल में एक भागीरथ शिला (एक पत्थर का टुकड़ा) है जहां भागीरथ ने भगवान शिव की तपस्या की थी।

कहा जाता है कि जब राजा सगर ने अपना 100वां अश्वमेघ यज्ञ किया तो इन्द्रदेव ने अपना राज्य छिन जाने के भय से भयभीत होकर उस घोड़े को ऋषि कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। राजा सगर के 60,000 पुत्रों ने घोड़े की खोज करते हुए तप में लीन कपिल मुनि को परेशान एवं अपमानित किया। कपिल मुनि के क्रोधित होने पर उन्होंने अपने आग्नेय दृष्टि से तत्क्षण सभी को जलाकर भस्म कर दिया। क्षमा याचना किये जाने पर मुनि ने बताया कि राजा सगर के पुत्रों की आत्मा को तभी मुक्ति मिलेगी जब गंगाजल उनका स्पर्श करेगा। सगर के कई वंशजों द्वारा आराधना करने पर भी गंगा ने अवतरित होना अस्वीकार कर दिया। अंत में राजा सगर के वंशज राजा भागीरथ ने देवताओं को प्रसन्न करने के लिये 5500 वर्षों तक घोर तप किया। उनकी भक्ति से खुश होकर देवी गंगा ने पृथ्वी पर आकर उनके शापित पूर्वजों की आत्मा को मुक्ति देना स्वीकार कर लिया। देवी गंगा के पृथ्वी पर अवतरण के वेग से भारी विनाश की संभावना थी और इसलिये भगवान शिव को राजी किया गया कि वे गंगा को अपनी जटाओं में बांध लें। भागीरथ ने तब गंगा को उस जगह जाने का रास्ता बताया जहां उनके पूर्वजों की राख पड़ी थी और इस प्रकार उनकी आत्मा को मुक्ति मिली। माना जाता है कि महाकाव्य महाभारत के नायक पांडवों ने कुरूक्षेत्र में अपने सगे संबंधियों की मृत्यु पर प्रायश्चित करने के लिये देव यज्ञ गंगोत्री में ही किया था।

 2. यमुनोत्री (Yamunotri)

Uttarakhand Char Dham Yamunotri Temple
Yamunotri Temple
स्थानउत्तरकाशी
समुद्र तल से ऊँचाई3235 मीटर
राष्ट्रीय राजमार्गNH94
स्थापनावर्तमान मंदिर जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी में बनवाया था
कपाट खुलते हैंअक्षय तृतीया के दिन
कपाट बंद होते हैंदीपावली के दिन

यमुनोत्री का वास्तविक स्त्रोत बर्फ की जमी हुई एक झील और हिमनद है, जो समुद्र तल से 4421 मीटर की ऊँचाई पर कालिंद पर्वत पर स्थित है। एक पौराणिक गाथा के अनुसार यह असित मुनी का निवास था। वर्तमान मंदिर जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी में बनवाया था। जो भूकम्प से विध्वंस हो चुका था, जिसका पुर्ननिर्माण कराया गया।

मंदिर प्रांगण में एक विशाल शिला स्तम्भ है, जिसे दिव्यशिला के नाम से जाना जाता है। यमुनोत्री मंदिर परिशर 3235 मी. उँचाई पर स्थित है। यँहा भी मई से अक्टूबर तक लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते है। शीतकाल मे यह स्थान पूर्णरूप से हिमाछादित रहता है। इस लिए अक्षय तृतीया (अप्रैल-मई) के पावन पर्व पर मंदिर के कपाट खुलते है और दीपावली (अक्टूबर-नंवबर) के दिन कपाट बंद हो जाते है।

इस मंदिर के आस-पास जल के कई सोते है जो अनेक कुंडों में गिरते है इन कुंडों में सबसे सुप्रसिद्ध कुंड सूर्यकुंड है। यह कुंड अपने उच्चतम तापमान 80 डिग्री सेल्लियस के लिए विख्यात है। भक्तगण देवी को प्रसाद के रूप में चढ़ाने के लिए कपडे की पोटली में चावल और आलू बांधकर इसी कुंड के गर्म जल में पकाते है। देवी को प्रसाद चढ़ाने के पश्चात इन्ही पकाये हुए चावलों को प्रसाद के रूप में भक्त जन अपने अपने घर ले जाते हैं। सूर्यकुंड के निकट ही एक शिला है जिसे दिव्य शिला कहते हैं। इस शिला को दिव्य ज्योति शिला भी कहते हैं। भक्तगण, भगवती यमुना की पूजा करने से पहले इस शिला की पूजा करते हैं।

 पौराणिक मान्यता (Mythical beliefs)

यमुनोत्री के बारे मे वेदों, उपनिषदों और विभिन्न पौराणिक व्याख्यानों में विस्तार से वर्णन किया गया है। पुराणों में यमुनोत्री के साथ असित ऋषि की कथा जुड़ी हुई है। कहा जाता है की वृद्धावस्था के कारण ऋषि कुण्ड में स्नान करने के लिए नहीं जा सके तो उनकी श्रद्धा देखकर यमुना उनकी कुटिया मे ही प्रकट हो गई। इसी स्थान को यमुनोत्री कहा जाता है। कालिन्द पर्वत से निकलने के कारण इसे कालिन्दी भी कहते हैं।

एक अन्य कथा के अनुसार सूर्य की पत्नी छाया से यमुना व यमराज पैदा हुए यमुना नदी के रूप मे पृथ्वी मे बहने लगीं और यम को मृत्यु लोक मिला। कहा जाता है की जो भी कोई माँ यमुना के जल मे स्नान करता है वह आकाल म्रत्यु के भय से मुक्त होता है और मोक्ष को प्राप्त करता है। किंवदंती है की यमुना ने अपने भाई से भाईदूज के अवसर पर वरदान मांगा कि इस दिन जो यमुना में स्नान करे उसे यमलोक न जाना पड़े, अत: इस दिन यमुना तट पर यम की पूजा करने का विधान भी है।

3. केदारनाथ (Kedarnath)

Uttarakhand Char Dham Kedarnath Temple
Kedarnath Temple
स्थानरुद्रप्रयाग
समुद्र तल से ऊँचाई3581 मीटर
राष्ट्रीय राजमार्गNH-109
स्थापनाआदिगुरु शंकराचार्य द्वारा
कपाट खुलते हैनिर्धारित नहीं है, शिवरात्रि की तिथि के अनुसार पंच पुरोहितों के द्वारा उखीमठ में इसका फैसला लिया जाता है
कपाट बंद होते हैभाई दूज (यामा द्वितीय) के दिन

चार धामों में सर्वाधिक ऊचांई पर स्थित धाम केदारनाथ है। केदारनाथ शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। भारत के 4 धाम (पूर्व में – जगन्नाथ, पश्चिम में- द्वारिका, उत्तर में- बद्रीनाथ, दक्षिण में- रामेश्वरम) की स्थापना करने के बाद शंकराचार्य जी ने इस मंदिर का निर्माण कराया था और इस मंदिर के पीछे शंकराचार्य जी की समाधि है। यह मंदिर कत्युरी निर्माण शैली का है। शीतकाल मे यह स्थान पूर्णरूप से हिमाछादित रहता है, इस लिए शीत काल में केदारनाथ की डोली को ओंमकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में रखा जाता है। यहां के पुजारी दक्षिण भारत के रावल होते है। यहां पर कुछ पवित्र कुण्ड है, जैसे गौरी कुण्ड, पार्वती कुण्ड, हंस कुण्ड आदि। भीमगुफा, ब्रह्म गुफा भी केदारनाथ में ही स्थित है। इस मन्दिर की आयु के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, पर एक हजार वर्षों से केदारनाथ एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल रहा है।

पौराणिक मान्यता (Mythical beliefs)

हिमालय के केदार के चोटी पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक पहाड़ की चोटी पर स्थित है।

पंचकेदार की कथा ऐसी मानी जाती है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने के बाद पांडव भ्रातृ-हत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। जिसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद लेना चाहते थे, लेकिन भगवान शंकर उन लोगों से रुष्ट थे। भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले। वे लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे। भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतर्ध्यान हो कर केदार चले गए। लेकिन पांडव उनका पीछा करते-करते केदार जा पहुंचे। यह बात भगवान शंकर को ज्ञात हो गई, की पांडव केदार आ चुके हैं तब उन्होंने बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हुआ की भगवान शिव पशु का रूप धारण कर चुके है। अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर अपने पैर फैला दिए। अन्य सब गाय-बैल तो भीम के पैरों के बीच से निकल गए, परन्तु भगवान शंकर, जिन्होंने बैल का रूप धारण किया था वह पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम बलपूर्वक इस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंतर्ध्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की पीठ पकड़ ली। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है। यहां शिवजी के भव्य मंदिर बने हुए हैं।

4. बद्रीनाथ (Badrinath)

Badrinath Temple Uttarakhand ke Char Dham
Badrinath Temple
स्थानचमोली
नदीअलकनंदा नदी के किनारे
पर्वतनर और नारायण पर्वतों के मध्य
समुद्र तल से ऊँचाई3133 मीटर
राष्ट्रीय राजमार्गNH-58

बदरीनाथ मंदिर, जिसे बदरीनारायण मंदिर भी कहते हैं, यह मंदिर भगवान विष्णु के रूप बदरीनाथ को समर्पित है। यह चार धाम व पंच-बदरी में भी है। यह समुद्रतल से 3,133 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। आठवीं शताब्दी के दार्शनिक संत आदि गुरु शंकराचार्य ने इसका निर्माण कराया था। इसके पश्चिम में 27 किमी. की दूरी पर स्थित बदरीनाथ शिखर कि ऊँचाई 7,138 मीटर है। महाभारत और पुराणों में इसे बद्रीवन, विशाला बद्रीकात्रम के नाम से जाना जाता था। यह मंदिर नर व नारायण नामक दो पर्वतों के मध्य में स्थित है। शीतकाल में बद्रीनाथ महाराज की डोली जोशीमठ के नरसिंह मंदिर में रखी जाती है। यहां के पुजारी दक्षिण भारत के रावल होते है।

पौराणिक मान्यताएं (Mythical beliefs)

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई, तो वह 12 धाराओं में बंट गई। जिनमे से एक धारा इस स्थान पर मौजूद धारा अलकनंदा के नाम से विख्यात हुई जिसे वर्तमान में अलकनंदा नदी के रूप में जाना जाता है। इस नदी के तट पर ही बद्रीनाथ धाम स्थित है, जो भगवान विष्णु का निवास स्थान माना जाता है। यह पंचबद्री में से एक है।

माना जाता है, की बद्रीनाथ मंदिर का निर्माण गढ़वाल के राजा द्वारा कराया गया था, जिसका पुनरूद्धार 8वीं शदी में आदि गुरु शंकराचार्य ने किया।

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