उत्तराखंड का भूगोल व भोगोलिक संरचना

उत्तराखंड का भूगोल व भोगोलिक संरचना

उत्तराखंड का भूगोल व भोगोलिक संरचना : उत्तराखंड के 86 प्रतिशत भाग पर पहाड़ एवं 65 प्रतिशत भाग पर जंगल पाए जाते हैं। स्वतंत्रता के समय भारत में केवल एक ही हिमालयी राज्य ‘असम’ था। इसके बाद जम्मू और कश्मीर दूसरा तथा तीसरा राज्य नागालैण्ड बना, ऐसे ही उत्तराखंड 11वाँ हिमालयी राज्य बना। लेकिन वर्तमान में भारत की संसद द्वारा 31 अक्टूबर 2019 से ‘जम्मू और कश्मीर राज्य‘ को दो केंद्र शासित प्रदेशों के रूप में ‘जम्मू और कश्मीर’ और ‘लद्दाख’ में बदलने से उत्तराखंड 10वाँ हिमालयी राज्य बन गया है।

Geography of Uttarakhand
Districts of Uttarakhand

उत्तराखंड का ग्लोब पर विस्तार उत्तरी अक्षांश (North latitude) में 28º43’ से 31º27’ तथा पूर्वी देशांतर (East Longitude) में 77º34’ से 81º02’ के मध्य में स्थित हैं, उत्तराखंड का अक्षांशिय (Latitude) व देशांतरिय (Longitude) विस्तार क्रमशः 2º44’ और 3º28’ हैं। इसका आकर लगभग आयताकार है, तथा राज्य के पूर्व से पश्चिम तक की लम्बाई 385 किलोमीटर और उत्तर से दक्षिण तक इसकी चौड़ाई 320 किलोमीटर हैं

उत्तराखंड राज्य का कुल क्षेत्रफल 53,483 वर्ग किलोमीटर (सांख्यिकी डायरी के अनुसार) हैं, जो देश के कुल क्षेत्रफल का लगभग 1.69% हैं

क्षेत्रफल की दृष्टि से यह भारत का 18वाँ राज्य हैं, राज्य के कुल क्षेत्रफल का 86.07% भाग (46035 वर्ग किलोमीटर) पर्वतीय तथा 13.93% भाग (7448 वर्ग किलोमीटर) मैदानीय हैं। 

राज्य के पूर्व में नेपाल, पश्चिम में हिमाचल प्रदेश, उत्तर में हिमालय व तिब्बत तथा दक्षिण में उत्तर प्रदेश हैं, राज्य के 3 जिले पिथौरागढ़, चंपावत तथा उधम सिंह नगर नगर, नेपाल से तथा 3 जिले पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी तिब्बत (चीन) की अन्तर्राष्ट्रीय सीमा से लगे हैं तथा 5 ज़िले उधम सिंह नगर, नैनीताल, देहरादून, पौढ़ी गढ़वाल व हरिद्वार उत्तर प्रदेश से और 2 ज़िले देहरादून व उत्तरकाशी हिमांचल प्रदेश की सीमा को स्पर्श करते हैं

उत्तराखंड राज्य का सबसे पूर्वी जिला पिथौरागढ़, पश्चिमी जिला देहरादून, उत्तरीय जिला उत्तरकाशी तथा दक्षिणी जिला उधमसिंह नगर हैं। पौड़ी ज़िले की सीमा राज्य के 7 जिलों को स्पर्श करती हैं, जिसमे नैनीताल, अल्मोड़ा, चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी, देहरादून और हरिद्वार हैं। चमोली और अल्मोड़ा राज्य के 6-6 जिलों की सीमा को स्पर्श करती हैं

राज्य के केवल 4 ज़िले अल्मोड़ा, रुद्रप्रयाग, बागेश्वर, टिहरी  किसी भी राज्य व देश की सीमा को स्पर्श नही करते हैं। सर्वाधिक लम्बी अन्तर्राष्ट्रीय सीमा वाला जिला पिथौरागढ़ है

 उत्तराखंड का भौगोलिक विभाजन (Geographical Division of Uttarakhand)

उत्तराखंड का भौगोलिक विभाजन : धरातलीय विन्यास के आधार पर उत्तराखंड को 8 भौगोलिक क्षेत्रों में विभाजित किया गया हैं

  1. ट्रांस हिमालयी क्षेत्र
  2. वृहत्त (उच्च) हिमालयी क्षेत्र
  3. लघु (मध्य) हिमालयी क्षेत्र
  4. दून (द्वार) क्षेत्र
  5. शिवालिक क्षेत्र
  6. भाबर क्षेत्र
  7. तराई क्षेत्र
  8. गंगा का मैदानी क्षेत्र

ट्रांस हिमालयी क्षेत्र

इस क्षेत्र का कुछ भाग भारत व तिब्बत के नियंत्रण में हैं, इस क्षेत्र की ऊंचाई 2500 मीटर से 3500 मीटर तक हैं और इसकी चौड़ाई 20 से 30 किलोमीटर तक हैं इस क्षेत्र की पर्वत श्रेणियों को जैंक्सर श्रेणी कहा जाता हैं माणा, नीति, लिपुलेख, किंगरी-बिंगरी आदि दर्रे इसी क्षेत्र में हैं

वृहत्त (उच्च) हिमालयी क्षेत्र

यह ट्रांस हिमालय क्षेत्र के दक्षिण में स्थित हैं, सबसे ऊँची चोटियों वाले इस पर्वत श्रेणियों को महा या मुख्य हिमालय कहा जाता हैं, उत्तराखंड में इस पर्वत श्रेणी की ऊंचाई 4500 से 7817 मीटर ‘नन्दादेवी’ तक और इसकी चौड़ाई 15 से 30 किलोमीटर तक हैं यह श्रेणी राज्य के 6 जिलों (पिथौरागढ़, उत्तरकाशी, टिहरी गढ़वाल, रुद्रप्रयाग, चमोली और बागेश्वर) में पूर्व से पश्चिम में फैली हैं इस क्षेत्र में भागीरथी, अलकनंदा, धौली, गोरी गंगा आदि नदियों का उद्गम स्थल हैं और नंदादेवी, पंचाचूली, दूनागिरी आदि प्रमुख चोटियां स्थित हैं। Geography of Uttarakhand

लघु (मध्य) हिमालयी क्षेत्र

यह क्षेत्र वृहत्त हिमालय के क्षेत्र के दक्षिण में स्थित हैं, यह राज्य के 9 जिलों (चम्पावत का पूर्वी भाग, नैनीताल, अल्मोड़ा, चमोली, पौढ़ी गढ़वाल, रुद्रप्रयाग, टिहरी गढ़वाल, उत्तरकाशी और देहरादून का पश्चिमी भाग) में पूर्व से पश्चिम की और फैला हैं, इस क्षेत्र की ऊंचाई 1200 मीटर से 4500 मीटर तक हैं और इसकी चौड़ाई 70 से 100 किलोमीटर तक हैं

मध्य हिमालयी क्षेत्र का निर्माण वलित एवं कायांतरित चट्टानों से हुआ हैं, इस क्षेत्र में तांबा, ग्रेफाइट, जिप्सम एवं मैग्नेसाइट आदि खनिज तत्व मिलते हैं, इस हिमालय से सरयू, पश्चमी रामगंगा, लाधिया आदि नदियाँ निकलती हैं तथा इस क्षेत्र में कई ताल पाए जाते हैं। 

इस क्षेत्र में शीतोष्ण कटिबंधीय सदाबहार प्रकार के कोणधारी सघन वन पाए जाते हैं, इन वनों में बाँज (Oak), खरसों, देवदार, साल, चीड आदि वृक्ष काफी मात्रा में पाए जाते हैं। इस क्षेत्र में छोटे-छोटे घास के मैदान पाए जाते हैं जिन्हें वुग्याल एवं पयार कहते हैं

दून (द्वार) क्षेत्र

यह शिवालिक व मध्य हिमालय के बीच का क्षेत्र हैं, जिसकी ऊंचाई 350 मीटर से 750 मीटर तथा चौड़ाई 24 से 32 किलोमीटर तक हैं देहरादून, कोठारी, चौखम, कोटा, पछवा आदि राज्य के प्रमुख दून हैं इन क्षेत्रों में गहन कृषि की जाती हैं और मानव जीवन के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ होने के कारण यहाँ जनसंख्या घनत्व ज्यादा है। Geography of Uttarakhand

शिवालिक क्षेत्र

भाबर क्षेत्र के तुरंत उत्तर में स्थित पहाड़ी को वाह्य हिमालय या शिवालिक कहा जाता हैं यह पर्वत श्रेणी हिमालय के सबसे बाहरी (दक्षिणी) छोर पर स्थित हैं राज्य के 7 जिलों (दक्षिणी देहरादून, उत्तरी हरिद्वार, मध्यवर्ती पौड़ी, दक्षिणी अल्मोड़ा, मध्यवर्ती नैनीताल व दक्षिणी चम्पावत) में यह क्षेत्र हैं इस क्षेत्र की ऊँचाई 700 मीटर से 1200 मीटर तक हैं और चौड़ाई 10 से 20 किलोमीटर तक हैं यह श्रेणी हिमालय का सबसे नवीन भाग है। 

इस क्षेत्र की प्रमुख वनस्पतियां शीशम, साल, बुरांश, चीड, बांस आदि हैं, और प्रमुख खनिज बालू, संगमरमर, जिप्सम, फॉस्फेटिक आदि हैं

भाबर क्षेत्र

तराई क्षेत्र के उत्तर और शिवालिक क्षेत्र के दक्षिण के भाग को भाबर कहते हैं, इसकी चौड़ाई 10 से 12 किलोमीटर हैं और यह पूर्व में चम्पावत से दक्षिण में देहरादून तक फैला हुआ हैं  यह क्षेत्र उबड़-खाबड़ और मिट्टी कंकड़ पत्थर तथा मोटे बालू से युक्त हैं

तराई क्षेत्र

उधमसिंह नगर, हरिद्वार में गंगा के मैदान, पौड़ी गढ़वाल तथा नैनीताल के कुछ भाग को तराई कहा जाता हैं, इसकी चौड़ाई 20 से 30 किलोमीटर तक हैं, तराई क्षेत्र के भूमि का निर्माण महीन कणों वाली अवसादों से हुआ हैं।

यहाँ की भूमि दलदली होने के कारण यह क्षेत्र मैदान से अलग हैं। इस क्षेत्र में अधिक पानी के कारण धान व गन्ने की खेती अच्छी होती हैं, इसके अलावा यहाँ गेंहू, आलू की खेती भी होती है तथा इस क्षेत्र में पाताल तोड़ कुँए मिलते है। Geography of Uttarakhand

गंगा का मैदानी भाग

दक्षिणी हरिद्वार का अधिकांश भाग गंगा के समतल मैदानी क्षेत्र का ही हिस्सा हैं, यह क्षेत्र गंगा द्वारा लाए गए महीन कणों वाले अवसादों से निर्मित है। यह क्षेत्र अत्यंत उपजाऊ है, इस क्षेत्र में अधिकांश गन्ना, गेहूं, धान की फसल होती हैं

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