मध्य प्रदेश के इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाएँ (Important Events in the History of Madhya Pradesh) : भारत में स्थित मध्य प्रदेश राज्य का इतिहास बहुत पुराना है। माना जाता है कि किसी भी देश या राज्य का इतिहास उसके आर्थिक विकास को बेहद प्रभावित करता है। प्राचीन काल में मध्य प्रदेश में कई ऐतिहासिक घटनाएं घटी थी जिसके कारण इस प्रदेश की भौगोलिक स्थिति एवं आर्थिक विकास में कई परिवर्तन हुए थे। मध्य प्रदेश को भारत का हृदय कहा जाता है क्योंकि यह भारत के मध्य में स्थित है। केंद्रीय स्थान में होने के कारण इस प्रदेश पर कई ऐतिहासिक घटनाओं ने अपना सुस्पष्ट निशान छोड़ा है।
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मध्य प्रदेश के इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाएँ
मध्य प्रदेश का पाषाण काल (Stone Age of Madhya Pradesh)
पाषाण काल का तात्पर्य पत्थर वाले काल से है। यह काल मुख्य रूप से नूतनकाल के प्रथम पड़ाव को प्रदर्शित करता है जिसमें जलवायु परिवर्तन के कारण ग्रीष्म जलवायु का अवसान एवं घास के अत्यधिक मैदान विकसित हुए थे। इस काल में विभिन्न क्षेत्रों में मानवों के निवास योग्य स्थान भी प्रस्थापित हुए थे। इसके अलावा पाषाण काल इतिहास का वह युग है जब मनुष्य का जीवन मुख्य रूप से पत्थरों पर आश्रित था। इस युग में मुख्य रूप से पत्थरों के माध्यम से आग उत्पन्न करना, पत्थरों की सहायता से नुकीले हथियार बनाकर शिकार करना, पत्थरों की गुफाओं में शरण लेना इत्यादि जैसे कार्य किए जाते थे। मध्य प्रदेश के पाषाण काल में आदिमानव मुख्य रूप से पत्थर के बने उपकरणों का उपयोग किया करते थे।
मध्य प्रदेश का पुरापाषाण काल (Palaeolithic Age of Madhya Pradesh)
पुरापाषाण काल में आदम मुख्य रूप से पत्थरों से निर्मित वस्तुओं का उपयोग किसी हथियार या औजार की तरह किया करते थे। मध्य प्रदेश में स्थित नर्मदा घाटी के समीप ऐसे कई साक्ष्य मिले हैं जिससे यह कहा जा सकता है कि पुरापाषाण युग में पत्थरों के हत्यारों के साथ-साथ हस्तकुठार (हत्थे वाली कुल्हाड़ी), खुरचन, बिना हत्थे वाली कुल्हाड़ी एवं मुष्ठ आदि जैसे हथियारों का भी उपयोग किया जाता था। माना जाता है कि मध्य प्रदेश में पुरापाषाण काल के लगभग 850 से भी अधिक हथियार पाए गए हैं। कहा जाता है कि यह काल लगभग 25-20 लाख साल पूर्व से लेकर 12000 साल पूर्व तक चला था। कहा जाता है कि पुरापाषाण काल में मानव का शारीरिक एवं मानसिक रूप से लगभग 99% तक विकास हुआ था।
मध्य प्रदेश का मध्यपाषाण काल (Mesolithic period of Madhya Pradesh)
मध्य प्रदेश में मध्यपाषाण काल का युग पुरापाषाण काल के बाद आरंभ हुआ था। इसे उत्तरीय प्रस्तर का काल के नाम से भी जाना जाता है। मध्यपाषाण काल में पत्थरों के माध्यम से विभिन्न प्रकार के औजार या हथियार बनाए जाते थे। कुछ इतिहासकारों के अनुसार मध्यपाषाण काल का युग लगभग 12 हजार साल पूर्व से लेकर 10 हजार साल पूर्व तक चला था। इस युग में अधिकांश मनुष्य पशुपालन का कार्य करते थे एवं इसी युग में मनुष्यों ने खेती करने के साथ-साथ मछली पकड़ना, शिकार करना एवं शहद इकट्ठा करने जैसे कार्यों की भी शुरुआत की थी। मध्य पाषाण काल में निर्मित अधिकांश औजार पत्थरों के माध्यम से ही बनाए जाते थे जिन्हें सूक्ष्मपाषाण के नाम से जाना जाता है। मध्य प्रदेश में स्थित सोन घाटी से लगभग 465 औजार पाए गए हैं जो मध्यपाषाण युग के माने जाते हैं। यह औजार मध्य प्रदेश के इंदौर, भीमबेटका, मंदसौर, सीहोर आदि क्षेत्रों से पाए गए हैं।
मध्य प्रदेश का नवपाषाण काल (Neolithic Age of Madhya Pradesh)
नवपाषाण काल वह अवधि है जिसमें मानवों ने मुख्य रूप से प्रौद्योगिकी क्षेत्र में विकास करने की शुरुआत की थी। माना जाता है कि इस युग की शुरुआत 9500 ईसा पूर्व के आसपास हुई थी जब मध्य पाषाण युग का अंत हुआ था। नवपाषाण काल में मनुष्य ने कृषि एवं पशुपालन के कार्य को व्यापक रूप से करना आरंभ किया था यही कारण है कि इस अवधि के दौरान मनुष्यों ने स्थिरता से खेती करना आरंभ किया था। इसके अलावा नवपाषाण काल में अधिकांश मनुष्य पेड़-पौधों एवं पालतू जानवरों पर निर्भर रहते थे। केवल इतना ही नहीं भारत के कई राज्यों में इस युग में मिट्टी के बर्तन बनाने, बुनाई करने एवं शिल्प बनाने के कार्यों की भी व्यापक रूप से शुरुआत हुई थी। मध्य प्रदेश में नवपाषाण काल के औजार एवं उपकरण जबलपुर, सागर, होशंगाबाद, दमोह आदि क्षेत्रों से प्राप्त किए गए हैं।
मध्य प्रदेश का ताम्रपाषाण काल (Chalcolithic Period of Madhya Pradesh)
ताम्रपाषाण काल को तांबे के युग के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस अवधि के दौरान मध्य प्रदेश के साथ-साथ पूरे देश में तांबे से बने उपकरणों का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता था। माना जाता है कि इस युग में तांबे की धातु एवं पत्थर का उपयोग कई महत्वपूर्ण कार्यों के लिए किया जाता था। ताम्रपाषाण काल में विभिन्न मिश्रित धातु कांसे का प्रयोग भी किया जाता था जिसके कारण इस युग को कांस्य युग भी कहा जाता है। भारत में स्थित मध्य प्रदेश में ताम्र पाषाण काल के उपकरण नागदा, नवदाटोली, अवड़ा आदि क्षेत्रों से पाए गए हैं। इसके अलावा मध्य प्रदेश के मालवा नामक क्षेत्र में ताम्र पाषाण काल की कुछ मूर्तियां भी प्राप्त हुई हैं।
मध्य प्रदेश का ऐतिहासिक काल (Historical Period of Madhya Pradesh)
ऐतिहासिक काल उस अवधि को कहा जाता है जिसमें इतिहास से जुड़े कुछ लिखित साक्ष्य मौजूद हो। माना जाता है कि इस काल में लेखन कला बेहद प्रचलित हुई थी जिसके कारण इस युग को ऐतिहासिक काल कहा गया है। भारतीय इतिहासकारों ने ऐतिहासिक काल को तीन प्रमुख भागों में विभाजित किया है पहला प्राचीन काल इतिहास, दूसरा मध्यकालीन इतिहास एवं तीसरा आधुनिक इतिहास। कहा जाता है कि वर्तमान समय में ऐतिहासिक काल से संबंधित कई पुरातात्विक साक्ष्य एवं लिखित साक्ष्य पाए गए हैं जैसे अशोक के अभिलेख। इसके अलावा भारत में स्थित मध्य प्रदेश में ऐतिहासिक काल के साक्ष्य मुरैना, मालवा, भिंड आदि क्षेत्रों से प्राप्त किए गए हैं।
मध्य प्रदेश का वैदिक सभ्यता (Vedic Civilization of Madhya Pradesh)
मध्य प्रदेश में वैदिक सभ्यता का आरंभ आर्यों के आगमन के बाद हुआ था। कहा जाता है कि भारत देश में वैदिक सभ्यता की स्थापना 1500 से 1000 ईसा पूर्व में आर्यों ने की थी। इस प्रदेश में वैदिक काल की अवधि के दौरान विंध्य पर्वतों पर इंडो-आर्यन क्षेत्र की दक्षिणी सीमा का गठन भी किया गया था। कहा जाता है कि इसी दौरान महर्षि अगस्त्य के नेतृत्व में नर्मदा घाटी के समीप यादवों का एक समूह बसा था जहां सर्वप्रथम आर्यों का आगमन हुआ था। माना जाता है कि मध्य प्रदेश में इस युग का आरंभ कांस युग एवं प्रारंभिक लौह युग की अवधि के अंत के बाद हुआ था। इसके अलावा वैदिक सभ्यता के युग में भारत के अंतर्गत यदुवंश, राजवंश एवं कुरु साम्राज्य की शक्तियों में भी वृद्धि हुई थी। इस युग में विभिन्न प्रकार के पौराणिक ग्रंथ एवं हिंदू ग्रंथों का भी विकास हुआ था।
मध्य प्रदेश का महाजनपद काल (Mahajanapada Period of Madhya Pradesh)
600 ईसा पूर्व में प्रसिद्ध जैन ग्रंथ ‘भगवतीसूत्र’ एवं बौद्ध ग्रंथ ‘अंगुतर निकाय’ के अनुसार महाजनपदों की संख्या 16 थी जिसमें अवंती एवं चेदि जनपद मध्य प्रदेश के अंतर्गत थे। जहां अवंती उज्जैन का प्राचीन नाम है तो वही चेदि खजुराहो का प्राचीनतम नाम है। मध्य प्रदेश में स्थित अवंती जनपद मध्य एवं पश्चिम मालवा क्षेत्र के समीप बसा था जिसके बीच से वेत्रवती (बेतवा) नामक नदी बहती थी एवं चेदि जनपद बुंदेलखंड के पूर्वी भाग के समीप बसा था जिसकी राजधानी उज्जयनी महिष्मति थी। जैन ग्रंथों एवं बौद्ध ग्रंथों के अनुसार अवंती के दो अन्य प्रसिद्ध नगर भी थे जो क्रमशः कुररघर एवं सुदर्शनपुर थे। माना जाता है कि चेदि राज्य का विस्तार नर्मदा घाटियों एवं सोन घाटियों के मध्य हुआ था जिसका विस्तार उत्तर दिशा में स्थित कालिंजर तक फैला हुआ था। मध्य प्रदेश में महाजनपद काल को जातक कथाओं के लिए प्रसिद्ध माना जाता था।
मध्य प्रदेश का मौर्य काल (Maurya Period of Madhya Pradesh)
प्राचीन भारतीय इतिहास में मध्य प्रदेश का मौर्य काल बेहद विशेष माना जाता है क्योंकि इस अवधि के दौरान मध्य प्रदेश के इतिहास के नए युग का आरंभ हुआ था। माना जाता है कि मौर्य काल के दौरान सर्वप्रथम राजनीतिक सत्ता के अंतर्गत संपूर्ण भारत का एकीकरण हुआ था। कहा जाता है कि मौर्य काल के दौरान ही देश की प्रशासन प्रणाली व्यापक रूप से विकसित हुई थी जिसका प्रमाण वर्तमान में भी प्रासंगिक है। मध्य प्रदेश की भूमि में इस अवधि के दौरान कई महत्वपूर्ण कार्य हुए थे। माना जाता है कि चाणक्य ने चंद्रगुप्त को इसी युग में तक्षशिला में सैन्य शिक्षा में निपुण किया था। इसके अलावा मौर्य काल के दौरान ही सम्राट अशोक में सांची स्तूप (स्तंभ लेख) का निर्माण विदिशा, भोजपुर, सतधारा, अंधेर आदि क्षेत्रों में करवाया था। कहा जाता है कि सम्राट अशोक ने अपने शासनकाल के दौरान लगभग 84 हजार स्तूपों का निर्माण करवाया था।
मध्य प्रदेश का गुप्त काल (Gupta Period of Madhya Pradesh)
मध्य प्रदेश के इतिहास में गुप्त काल की एक विशेष भूमिका रही है। मध्य प्रदेश में गुप्त वंश की स्थापना श्री गुप्त ने की थी। गुप्त काल की अवधि के दौरान इस प्रदेश को प्राचीन भारत का एक हिंदू साम्राज्य माना जाता था जिसने लगभग संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप पर अपने साम्राज्य का विस्तार किया था। कुछ इतिहासकारों ने गुप्त काल के युग को भारत का स्वर्ण युग भी कहा है। माना जाता है कि मध्य प्रदेश में गुप्त राजवंश की स्थापना तीसरी शताब्दी में हुई थी जिसके प्रमुख संस्थापक श्री गुप्त थे। इस युग को धार्मिक सहिष्णुता, शासन व्यवस्था की उचित स्थापना, भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार एवं आर्थिक समृद्धि का काल भी कहा जाता है।
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