UPSSSC PET exam paper 29 October 2023 - Shift 1 Official Answer Key

UPSSSC PET exam paper 29 October 2023 – Shift 1 Official Answer Key

UPSSSC PET exam paper 29 October 2023 Shift 1 Official Answer Key : UPSSSC PET exam paper 29 October 2023 with First Shift Official Answer Key. Uttar Pradesh Subordinate Services Selection Commission Preliminary Eligibility Test (UPSSSC PET) is conducted on 29 October 2023 in Uttar Pradesh state. UPSSSC PET Exam 2023 shall be conducted on 28th and 29th October 2023 and this examination will be organised in two shifts on both the days.

Exam :- UPSSSC PET exam 2023
Exam Organiser :- Uttar Pradesh Subordinate Services Selection Commission (UPSSSC)
Exam Shift :- First Shift (Shift 1)
Exam Date :- 29/10/2023
Total Question :- 100
Click here to view paper :- 28 Oct 2023 (Shift 1) / 28 Oct 2023 (Shift 2)29 Oct 2023 (Shift 2)

UPSSSC PET exam paper 29 October 2023 – Shift 1

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए: (प्र. 1-5)

हमारे बाल्यकाल के संस्कार ही जीवन का ध्येय निर्धारित करते हैं, अतः यदि शैशव में हमारी संतान ऐसे व्यक्तियों की छाया में ज्ञान प्राप्त करेगी, जिनमें चरित्र तथा सिद्धांत की विशेषता नहीं है. जिनमें संस्कारजनित अनेक दोष हैं, तो फिर उनके चरित्र पर भी उसी की छाप पड़ेगी और भविष्य में उनके ध्येय भी उसी के अनुसार स्वार्थमय तथा अस्थिर होंगे। शिक्षा एक ऐसा कर्तव्य नहीं है जो किसी पुस्तक को प्रथम पृष्ठ से अंतिम पृष्ठ तक पढ़ाने से ही पूर्ण हो जाता हो, वरन् वह ऐसा कर्तव्य है जिसकी परिधि सारे जीवन को घेरे हुए है और पुस्तकें ऐसे साँचे हैं जिनमें ढालकर उसे सुडौल बनाया जा सकता है।

आत्मनिर्भरता का अर्थ है अपने ऊपर निर्भर रहना । जो व्यक्ति दूसरे के मुँह को नहीं ताकते वे ही आत्मनिर्भर होते हैं। वस्तुतः आत्मविश्वास के बल पर कार्य करते रहना आत्मनिर्भरता है। आत्मनिर्भरता का अर्थ है – समाज, निज तथा राष्ट्र की आवश्यकताओं की पूर्ति करना । व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र में आत्मविश्वास की भावना, आत्मनिर्भरता का प्रतीक है । (स्वावलंबन जीवन की सफलता की पहली सीढ़ी है ) सफलता प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को स्वावलंबी अवश्य होना चाहिए । स्वावलंबन व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के जीवन में सर्वांगीण सफलता प्राप्ति का महामंत्र है । स्वावलंबन जीवन का अमूल्य आभूषण है, वीरों तथा कर्मयोगियों का इष्टदेव है। सर्वांगीण उन्नति का आधार है।

जब व्यक्ति स्वावलंबी होगा, उसमें आत्मनिर्भरता होगी, तो ऐसा कोई कार्य नहीं जिसे वह न कर सके । स्वावलंबी मनुष्य के सामने कोई भी कार्य आ जाए, वह अपने दृढ़ विश्वास से, अपने आत्मबल से उसे अवश्य ही पूर्ण कर लेगा। स्वावलंबी मनुष्य जीवन में कभी भी असफलता का मुँह नहीं देखता । वह जीवन के हर क्षेत्र में निरंतर कामयाब होता जाता है। सफलता तो स्वावलंबी मनुष्य की दासी बनकर रहती है। जिस व्यक्ति का स्वयं अपने आप पर ही विश्वास नहीं, वह भला क्या कर पाएगा ? परंतु इसके विपरीत जिस व्यक्ति में आत्मनिर्भरता होगी, वह कभी किसी के सामने नहीं झुकेगा । वह जो करेगा सोच समझकर धैर्य से करेगा। मनुष्य में सबसे बड़ी कमी स्वावलंबन का न होना है। सबसे बड़ा गुण भी मनुष्य की आत्मनिर्भरता ही है ।

1. सर्वांगीण सफलता प्राप्ति का महामंत्र लेखक के अनुसार क्या है ?
(A) आत्मविश्वास और सहनशीलता
(B) अच्छे संस्कार और कर्तव्य
(C) आत्मनिर्भरता और आत्मबल
(D) धैर्य और स्नेहयुक्त व्यवल

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Answer – C

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2. ‘स्वार्थमय’ तथा ‘अस्थिर’ शब्दों के विलोम रूप क्रमशः किस विकल्प में हैं ?
(A) निस्स्वार्थी – चंचल
(B) अचल – मतलबी
(C) निश्चल – परार्थी
(D) निःस्वार्थ – गतिहीन

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Answer – A

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3. “आत्मनिर्भरता” शब्दों “सफलता”, के लिंग क्रमशः हैं
(A) पुल्लिंग, पुल्लिंग और स्त्रीलिंग
(B) स्त्रीलिंग, पुल्लिंग और पुल्लिंग
(C) स्त्रीलिंग, पुल्लिंग और स्त्रीलिंग
(D) स्त्रीलिंग, स्त्रीलिंग और पुल्लिंग

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Answer – C

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4. जीवन की सफलता की पहली सीढ़ी कौन सी है ?
(A) आत्मनिर्भर बनना ।
(B) बच्चे में बाल्यकाल से अच्छे संस्कार विकसित करना ।
(C) दृढ़ विश्वास जाग्रत करना ।
(D) सहनशीलता उत्पन्न करना।

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Answer – A

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5. शैशव के शिक्षकों का बच्चे पर क्या असर पड़ता है ?
(A) बच्चे निर्दोष और अबोध होते हैं और शिक्षकों के स्वभावगत गुण-दोषों का खास असर नहीं होता ।
(B) शिक्षकों के चरित्र के गुण-दोष सहज ही बच्चे में आ जाते हैं।
(C) बच्चों को पढ़ाई से मतलब होना चाहिए, शिक्षक की व्यक्तिगत ज़िन्दगी से उन्हें क्या लेना-देना ।
(D) शिक्षक को बच्चे का पाठ्यक्रम पूरा करना है, और बच्चे से कुछ लेना-देना नहीं है।

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Answer – B

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए: (प्र. 6-10)

मृत्युंजय और संघमित्र की मित्रता पाटलिपुत्र के जन-जन की जानी बात थी । मृत्युंजय जन-जन द्वारा ‘धन्वंतरि’ की उपाधि से विभूषित वैद्य थे और संघमित्र समस्त उपाधियों से विमुक्त ‘भिक्षु’ । मृत्युंजय चरक और सुश्रुत को समर्पित थे, तो संघमित्र बुद्ध के संघ और धर्म को । प्रथम का जीवन की संपन्नता और दीर्घायुष्य में विश्वास था तो द्वितीय का जीवन के निराकरण और निर्वाण में । दोनों ही दो विपरीत तटों के समान थे, फिर भी उनके मध्य बहने वाली स्नेह-सरिता उन्हें अभिन्न बनाए रखती थी। यह आश्चर्य है, जीवन के उपासक वैद्यराज को उस निर्वाण के लोभी के बिना चैन ही नहीं था, पर यह परम आश्चर्य था कि समस्त रोगों को मलों की तरह त्यागने में विश्वास रखने वाला भिक्षु भी वैद्यराज के मोह में फँस अपने निर्वाण को कठिन से कठिनतर बना रहा था। वैद्यराज अपनी वार्ता में संघमित्र से कहते – निर्वाण (मोक्ष) का अर्थ है – (आत्मा का मृत्यु पर विजय )। संघमित्र हँसकर कहते – देह द्वारा मृत्यु पर विजय मोक्ष नहीं है। देह तो अपने आप में व्याधि है ।

तुम देह की व्याधियों को दूर करके कष्टों से छुटकारा नहीं दिलाते, बल्कि कष्टों के लिए अधिक सुयोग जुटाते हो । देह व्याधि से मुक्ति तो भगवान की शरण में है)। वैद्यराज ने कहा- मैं तो देह को भगवान के समीप जीते ही बने रहने का माध्यम मानता हूँ । पर दृष्टियों का यह विरोध उनकी मित्रता के मार्ग में कभी बाधक नहीं हुआ। दोनों अपने कोमल हास और मोहक स्वर से अपने-अपने विचारों को प्रस्तुत करते रहते ।

6. देह-व्याधि के निराकरण के बारे में संघमित्र का क्या विचार था
(A) संघमित्र देह व्याधि से मुक्ति भगवान शरण से मानते थे ।
(B) संघमित्र शरीर को व्याधि-मुक्त मानते थे।
(C) संघमित्र जीवन की संपन्नता और दीर्घायुष्य में विश्वास रखते थे ।
(D) संघमित्र के अनुसार देह-व्याधियों से मुक्ति संभव नहीं थी ।

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Answer – A

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7. “आत्मा का मृत्यु पर विजय ही मोक्ष है” ऐसा किसका मानना है ?
(A) मृत्युंजय का
(B) संघमित्र का
(C) चरक और सुश्रुत का
(D) बौद्ध धर्म का

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Answer – A

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8. व्याधि और सुयोग शब्दों में क्रमशः प्रयुक्त उपसर्ग है ?
(A) व्या और सु
(B) आधि और ओग
(C) वि + आ और सु
(D) वि और सु

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Answer – D

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9. संघमित्र और मृत्युंजय के विषय में कौन-सा विकल्प सही है ?
(A) मृत्युंजय सादा जीवन जीते सादा जीवन जीते हुए निर्वाण प्राप्ति समर्थक थे, संघमित्र जीवन की संपन्नता और दीर्घायुष्य में विश्वास रखते थे ।
(B) संघमित्र और मृत्युंजय दोनों मित्र थे और उनके जीवन-सिद्धांत एक जैसे ही थे ।
(C) संघमित्र जीवन को निरोग बनाकर आनंदपूर्वक जीने व दीर्घायु रहकर उपभोग का आनंद उठाने के समर्थक थे, मृत्युंजय चरक और सुश्रुत को समर्पित थे ।
(D) मित्र होते हुए भी उन दोनों के जीवन सिद्धांत विपरीत थे।

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Answer – D

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10. जीवन की संपन्नता और दीर्घायुष्य में किसका विश्वास था ?
(A) पाटलिपुत्र के राजा का
(B) पाटलिपुत्र की प्रजा का
(C) संघमित्र का
(D) मृत्युंजय का

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Answer – D

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