उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने हेतु कई आन्दोलन हुए। उत्तराखंड राज्य आंदोलन में महिलाओं की भूमिका अहम थी। यह आंदोलन उत्तराखंड के प्रमुख आंदोलन हैं जिनकी वजह से उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश से अलग हो एक राज्य बन पाया। उत्तराखंड की महिलाओं ने वन आन्दोलनों में भी अहम भूमिका निभाई।
उत्तराखंड को एक अलग राज्य का दर्ज देने की मांग भारत की आजादी से पहले भी उठती रही थी। अंग्रेज शासन में भी कई जगह अधिवेशन करके अलग राज्य की मांग उठाई गयी थी। परंतु आजादी के पश्चात भी उत्तराखंड को अलग राज्य का दर्जा मिलने में कई वर्ष लग गए। और कई वर्षों के संघर्ष और कई बलिदानों के बाद 9 नवंबर सन 2000 को उत्तराखंड को अलग राज्य का दर्जा मिला।
उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने हेतु किये गए आन्दोलन
उत्तराखंड को राज्य बनाने की मांग सर्वप्रथम 5-6 मई 1938 को श्रीनगर में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Indian National Congress) के विशेष अधिवेशन में उठाई गई थी।
- 1938 में पृथक राज्य के लिए श्रीदेव सुमन ने दिल्ली में ‘गढ़देश सेवा संघ’ का एक संगठन बनाया और बाद में इसका नाम बदल कर ‘हिमालय सेवा संघ’ हो गया।
- 1950 में हिमाचल और उत्तराखंड को मिलकर एक वृहद हिमालयी राज्य बनाने के लिए पर्वतीय विकास जन समिति का गठन किया गया।
- 1957 में टिहरी नरेश मान्वेंद्रशाह ने पृथक राज्य आन्दोलन को अपने स्तर से शुरू किया।
- 24-25 जून 1967 में रामनगर में आयोजित सम्मलेन में पर्वतीय राज्य परिषद का गठन किया गया।
- 3 अक्टूबर 1970 को भारतीय कमुयुनिस्ट पार्टी के महासचिव पी. सी. जोशी ने कुमाऊ राष्ट्रीय मोर्चा का गठन किया।
- 1976 में उत्तराखंड युवा परिषद का गठन किया और 1978 में सदस्यों ने संसद (Parliament) का भी घेराव करने की कोशिश भी की।
- 1979 में जनता पार्टी के सांसद त्रेपन सिंह नेगी के नेत्रत्व में उत्तराँचल राज्य परिषद की स्थापना की।
- 1984 में ऑल इण्डिया स्टूडेंट फेडरेशन ने राज्य की मांग को लेकर गढ़वाल में 900 कि.मी. की साईकिल यात्रा के माध्यम से लोगो में जागरूकता फेलाई।
- 23 अप्रैल 1987 को तिवेन्द्र पंवार ने राज्य की मांग को लेकर संसद में एक पत्र बम फेंका।
- 1987 में लालकृष्ण आडवाणी की अध्यक्षता में अल्मोड़ा के पार्टी सम्मलेन में उत्तर प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र को अलग राज्य का दर्जा देने की मांग को स्वीकार किया।
- 1988 में शोबन सिंह जीना की अध्यक्षता में ‘उत्तरांचल उत्थान परिषद्’ का गठन किया।
- फरवरी 1989 में सभी संगठनो ने संयुक्त आन्दोलन चलाने के लिए ‘उत्तराँचल संयुक्त संघर्ष समिति’ का गठन किया।
- 1990 में जसवंत सिंह बिष्ट ने उत्तराखंड क्रांति दल के विधायक के रूप में उत्तर प्रदेश विधानसभा में पृथक राज्य का पहला प्रस्ताव रखा।
- 20 अगस्त 1991 को प्रदेश की भाजपा सरकार ने पृथक उत्तराँचल का प्रस्ताव केन्द्र सरकार के पास भेज दिया, लेकिन केंद्र सरकार ने कोई निर्णय नही लिया।
- जुलाई 1992 में उत्तराखंड क्रांतिदल ने पृथक राज्य के सम्बन्ध में एक दस्तावेज जरी किया तथा गैरसैण को प्रस्तावित राजधानी घोषित किया , इस दस्तावेज को उत्तराखंड क्रांतिदल का पहला ब्लू-प्रिंट माना गया।
- कौशिक समिति ने मई 1994 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमे उत्तराखंड को पृथक राज्य और उसकी राजधानी गैरसैंण में बनाने की सिफारिश की गई।
- मुलायम सिंह यादव सरकार ने कौशिक समिति की सिफारिश को 21 जुलाई 1994 को स्वीकार किया और 8 पहाड़ी जिलों को मिला कर पृथक राज्य बनाने का प्रस्ताव विधानसभा में सर्वसहमति से पास कर केन्द्र सरकार को भेज दिया।
- खटीमा गोली कांड – 1 सितम्बर, 1994 को उधम सिंह नगर के खटीमा में पुलिस द्वारा छात्रों तथा पूर्व सैनिकों की रैली पर गोली चलने से 25 लोगो की मृत्यु हो गई, इस घटना के दुसरे दिन 2 सितम्बर, 1994 को मंसूरी में विरोध प्रकट करने के लिए आयोजित रैली में लोगों ने पी.ए.सी. (P.A.C) तथा पुलिस पर हमला कर दिया इस घटना से पुलिस उप-
अधीक्षक उमाकांत त्रीपाठी की मौत हो गई। इस घटना को मसूरी गोलीकांड के नाम से जाना जाता है - सितम्बर 1994 के अंतिम सप्ताह में दिल्ली रैली में जा रहे आन्दोलनकारियों पर रामपुर तिराहे मुजफ्फरनगर में पुलिस के कुछ लोगो द्वारा महिलाओं के साथ दुराचार किया और फायरिंग में 8 लोगो की मृत्यु हो गई।
- 25 जनवरी 1995 को उत्तराँचल संघर्ष समिति ने उच्चतम न्यायालय से राष्ट्रिपति भवन तक ‘संविधान बचाओ यात्रा’ निकली।
- 10 नवम्बर 1995 को श्रीनगर के श्रीयंत्र टापू पर आमरण अनशन पर बैठे आन्दोलनकारियों पर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज से यशोधर बेजवाल और राजेश रावत की मौत हो गई।
- 15 अगस्त 1996 को तत्कालीन प्रधानमंत्री एच. डी. देव गौडा ने उत्तराँचल राज्य के निर्माण की घोषणा की।
- 27 जुलाई 2000 को उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक 2000 के नाम से लोकसभा में प्रस्तुत किया गया।
- 1 अगस्त 2000 को विधेयक लोकसभा में और 10 अगस्त को राज्यसभा में पारित हो गया।
- 28 अगस्त 2000 को राष्ट्रपति के. आर. नारायण ने उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक को मंजूरी दे दी।
- 9 नवम्बर 2000 को देश के 27वें राज्य के रूप में उत्तरांचल का गठन हुआ और जिसकी अस्थाई राजधानी को देहरादून बनाया गया।
- इसी दिन पहले अंतरिम मुख्यमंत्री के रूप में नित्यानंद स्वामी ने प्रथम मुख्यमंत्री का पद संभाला।
- 1 जनवरी 2007 से उत्तरांचल का नाम बदलकर उत्तराखंड कर दिया गया।
पढ़ें समय-समय पर उत्तराखंड राज्य में हुए प्रमुख जन-आन्दोलन।
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अलग राज्य निर्माण हेतु हमारे पूर्वजो ने बहुत संघर्ष किया किन्तु वर्तमान में राज्य कि स्थिति बहुत गंभीर है जिस प्रकार गांव के गांव पलायन कर रहे हैं। वो दिन भी दूर नही लगता जब गांव में कोई नही होगा।
हम युवाओं को ही कुछ करना होगा क्योंकि सिस्टम के भरोसे 19 वर्ष बीत गए।
उत्तराखंड राज्य आंदोलन के लिए मुख्य भूमिका छात्रों की रही है जिस टाइम मंडल और कमंडल की बात चल रही चल रही थी छात्रों ने अपने मुख्य भूमिका अदा की उसके साथ साथ सभी राजनीतिक दलों ने भी सोचा कि छात्र इस आंदोलन में जुड़े हुए हैं क्यों ना इसको एक राजनीति को देखकर होता उत्तराखंड पृथक राज्य की आंदोलन रूपरेखा तैयार की जाए जिसमें उत्तराखंड के कुमाऊं यूनिवर्सिटी और गढ़वाल यूनिवर्सिटी के छात्र संगठनों ने कई संगठनों ने मिलकर एक रूपरेखा तैयार की मुख्य रूप से उत्तराखंड क्रांति दल सामने आया कुश्ती माता कांचा को देखते हुए सभी राष्ट्रीय राजनीतिक दल बीच में कूद पड़े Uttarakhand student Federation Uttarakhand Tiger force उत्तराखंड Sarv Gali sanyukt Morcha का गठन किया गया